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बिछड़ गये (कविता)

7 अगस्त 2015

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कल तक तो हम साथ-साथ थे , आज बिछड गए घर परिवार से, कल तक तो हम स्वतंत्र. थे, आज बंध गए दुसरो के बंधन मे, अकेली विरान सी बैठी यहॉ , यादो मे खोइ- खोइ सी , कोइ नही साथ यहॉ नही कोइ संगी, घन वन मे बैठी जैसे , चितवन चंद चकोरी , अब तो बस एक याद ही , बार -बार मन मे आती , चारो तरफ अंधियारी छाई , नही कही उजाला दिखती ! निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी की अन्य किताबें

महातम मिश्रा

महातम मिश्रा

वाह आदरणीया निवेदिता चतुर्वेदी जी वाह, बहुत बढियां शिल्प, पटल पर मित्र बनाने बनने के लिए हार्दिक आभार महोदया, सादर सुप्रभात

8 अगस्त 2015

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बाल कविता

7 अगस्त 2015
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बच्चे होते भोले भाले ,अपनो मे रहते मतवाले ,कभी खुशी मे झुम उठ उठते,कभी गुस्सा मे फुट पडते ,न ही किसी का डर उन्हे ,न ही किसी का रहता भय ,जो भी मन मे आए उन्हे ,करते हैै शीघ्र. पुरा उसे ,खेल -कूँद मे रहते आगे ,पढाई मे भी पिछे न हटते , सबसे वो बाजी लगाते ,पूरा करने मे आगे रहते ,बडो को भी सीख सीखाते ,तोत

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बिछड़ गये (कविता)

7 अगस्त 2015
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कल तक तो हम साथ-साथ थे ,आज बिछड गए घर परिवार से,कल तक तो हम स्वतंत्र. थे, आज बंध गए दुसरो के बंधन मे,अकेली विरान सी बैठी यहॉ , यादो मे खोइ- खोइ सी ,कोइ नही साथ यहॉ नही कोइ संगी,घन वन मे बैठी जैसे ,चितवन चंद चकोरी ,अब तो बस एक याद ही ,बार -बार मन मे आती , चारो तरफ अंधियारी छाई ,नही कही उजाला दिखती !न

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सावन

11 अगस्त 2015
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सावन मौसम है सुहाना ,खेत खलिहान मे झुमे धाना , चारो तरफ हरियाली देख ,मन प्रफुल्लीत होता अपना , इस मौसम मे आते है याद ,सब अपने नए पुराने ,सावन मे झुलो के साथ ,करते रहते मस्ती हजार , संगी - साथी सबके सब ,अपने मस्ती मे रंगा रंग , पेड की झुकी डाली से ,खिले फूल की कलियो से , प्रकृती को सुसज्जीत करती , ये

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बाट

11 अगस्त 2015
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नीर भरा इन आँखो से,खोजती रहती तेरी बाट,जब - जब आती तेरी याद,खटकता रहता जीवन बेकार,अमावस्या की रात जैसी ,काली घटा घनघोर जैसी ,हो गई. है जिंदगी हमारी ,कुछ . पल के लिए भी ,तु आ. जाती मेरे पास ,अपनी कमी पूरा कर ,जीवन मे भर देती खुशीया हजार! ......निवेदिता चतुर्वेदी ......

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