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बीमार हुं मैं

4 सितम्बर 2021

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बीमार हूं मैं कविता 
पथरीले कंकरीट के इस दुनिया में 
आजकल हर कोई बीमार सा हो गया है
है घुली हवा मे बस जहर ही जहर
ना शुद्ध भोजन मिल रहा किसी को
ना शुद्ध हवा हर चीज मे है मिलावट
खुद को कैद सा कर रखा है
सभी ने अपने को आशियाने में 
अक्सर हालचाल पता करने पर
पता चलता है यहा बीमार है हर कोई
मै बीमार हु ये शब्द आज हर जहा
में तैरता हुआ सा लगता है
कोई सेहत से बीमार तो कोई
अपनी सोच से है बीमार
तो कोई ईष्या द्वेष से बीमार
तो कोई किसी की खुशी
 देख के हुआ कोई बीमार
बीमारी की अपनी ही
अपनी भाव भंगिमाए है
अपनी अपनी अलग 
अलग प्रतिक्रियाए है
है बीमारी बढी जीवन के 
कयासो और बढते प्रदूषण से
और सहज मानव निर्मित 
हमारी ही गलतियो से
हो गया है बीमार हर कोई
 हम खुद है जिम्मेदार यहां 
हम करते रहे प्रकृति का सदा ही दोहन
किए ना कभी भी इसका संवर्धन
नित्य खाते रहे फास्टफुड
 सेहत का ना रखा ध्यान
तो हो गया सभी का सेहत खराब
पहले बीमारी मे लोग अक्सर हालचाल
पुछने चले आते थे और बीमार व्यक्ति की
तब आधी बीमारी बस
हालचाल पूछने से चली जाती थी
और टूटती हुई आशाओ मे उम्मीद
 की किरण एक लहराती थी
अब है स्थिति बिल्कुल ही विपरीत
अब लोग गेट वेल सुन का
 एक छोटा मैसेज लिख
अपना फर्ज निभाते है और बीमार व्यक्ति
को देखने जाने से अब कतराते है
आज बीमार है हम सभी अपनी ही सोच से
नही किसी को फुरसत सब मशगुल है
अपनी ही दुनिया मे रमे है। 
सुरंजना पांडेय

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प्रवीण कुमार शर्मा

बहुत खूब लिखा है आपने।मेरे उपन्यास प्रेम का पुरोधा को भी पढ़ें।इसे पढ़कर आपको अच्छा लगेगा ।इसी उम्मीद में।

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