क्वारंटाइन हुएपंडित
कोरोना का ऐसा कहर ना कभी देखा था ना कभी सुना था हम सबने अपने जीवन मे | एक बायरस ने सभी के जीवन को ऐसे डराऔर हिला के रख दिया कि कब क्या हो जाए किस घड़ी में इसी सोच में सब कोई जी रहे हैं |लेकिन कोरोना के टाइम में कुछ शब्द बड़ी प्रचलित हुए जैसे सोशल डिस्टेंस, क्वॉरेंटाइन उसी क्वॉरेंटाइन शब्द को लेकर मैने एक हास्य व्यंग लिखने की कोशिश की है कोशिश है कि आप सबको पसंद आएगी |
बात शहर बनारस की है पंडित पंडिताइन दोनों पति पत्नी अस्सी घाट के पास के मोहल्ले में रहते थे जब से लॉक डाउन हुआ सब पूजा पाठ चढ़ चढ़ावा कथा पूजन बंद हो गया , लोगों के अंदर डर समा गया था ,ना लोग मंदिर ही जाते ना कोई पूजा करवाते ,मंदिरों के कपाट बंद हो गए पंडित जी की पंडिताई गली और मोहल्ले तक ही सीमित रह गई कभी-कभी कुछ मिल पाता |पंडिताइन भी पंडित जी को दिन रात घर पर देख हरदम खिसीआई रहती , पंडित जी आज पंडिताइन से बोले भाग्यवान आज कढी खाने का मन है तनिक बनाओ तो कढी , पंडिताइन भी खिसिया के बोली हम ना बनईबे जब कुछ सामान तूम ना लईबो घर पर त हम कुछ ना बनईबे ,दिन भर तुम कुछ ना कुछ खाए जात हो ,जाओ खुद जाकर बना लो पंडित जी को भी आज अपनी पाक कला का हुनर दिखाने का धुन सवार था या यह कह लीजिए उन्होंने खुद से ही अपने पैर पर लाठी दे मारी |
ना आव देखा ना ताव कढी बरी बनाने रसोई में तुरंत जा पहुचे ,रसोई में वो ना जाते ना ऐसी नौबत देखने को मिलती |पंडित जी रसोई में गए कढ़ी बरी बनाने की सारी तैयारी में जी जान से जुट गए, सारी चीजें रसोई की इधर से उधर कर दी , पसीने जो छुटे वह अलग कहते है न जिसका काम उसी को साजे और करे तो घंटा बाजे वही हाल हुआ पंडित जी का किसी तरह से कढ़ी बरी तैयार हुई अब छौक लगाने की बारी आई तो सोचा पंडित जी ने छौक खूब अच्छे से लगाते हैं सरसों ,अजवाइन सूखा मिर्चा, हींग का छौक जैसे ही लगाने के लिए पंडित जी ने कलछुल गर्म किया सूखा मिर्चा डालने के कारण उनको खुब छीके एकाएक आने लगी छीके बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी तब तक की मस्टराइन आ गई बगल की,वो पंडित जी को छीकते देख तुरंत पुलिस को फोन घुमाई दी , पुलिस तो थी ही तैयार बैठी किस मुर्गे को पकड़ा जाए | अब बारी पंडित जी थी ,पंडित जी की लुटिया अच्छे से डूबी , पुलिस की गाड़ी आई पंडित को पकड़ ली ,पंडित जी से ना कुछ पूछा ना कुछ सुनने का कोशिश किए लोग पंडित जी लाख अपना पक्ष बताते रहे पर पुलिस क्वॉरेंटाइन करने के लिए लेते गई पंडित हुए क्वॉरेंटाइन दोबारा शायद कढ़ी बनाने की वह जीवन में भी ना सोचे, ना कढी मे छौक लगाते ना यह नौबत आती है क्योंकि उन 14 दिनों में पंडित जी ने क्या-क्या ना सहा खाने के लिए कितना तरसे कितने मच्छर काटे उनको वह सारी चीजें पंडित जी को अपने छौक लगाने की याद दिलाती रही और और पंडित जी की बेचारगी या फूटी किस्मत की कढ़ी का स्वाद भी ना ले पाए |हाय री मेरी जीभ ना कढी बनाने का मेरा मन पर धुन सवार होता ना ये नौबत आती पंडित जी जब 14 दिनों के बाद घर आए , पंडिताइन ने बड़े प्यार से पंडित जी का स्वागत करने के लिए कढ़ी बरी बनाई और पंडित जी को जैसी ही कढी बरी परोसी, पंडित जी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया वह बोले पंडिताइन तुम जले पर नमक छिड़कना अच्छे से जानत हो इसी कढी बरी के चक्कर में कौन कौन दशा भोगे हम 14 दिन मां , हटाओ सामने से ये मनहूस कढी बरी अब जीवन में हम ना खईबो |
सुरंजना पांडेय