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ब्रह्मऋषि विश्वामित्र

21 जुलाई 2022

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 ब्रह्मऋषि विश्वामित्र 

राजा से राजऋषि राजऋषि से ब्रह्म ऋषि तक पहुचने वाले एक मात्र ऋषि 


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राजा से राज ऋषि राज ऋषि से ब्रह्म ऋषि बनने वाले महँ ऋषि विस्वमित्र का नाम तमाम हिदू ग्रन्थों में आदर के साथ लिया जाता है यह एक मात्र ऐसे ऋषि हुए हैं जिनका आरम्भिक जीवन अहंकारी लोभी और हठी रूप में व्यतीत हुआ लेकिन बाद में यही ऋषि अत्यंत परोपकारी तत्वज्ञानी हुए 

इन ऋषि ने ही गायत्री मन्त्र की रचना की इन्हीं के मार्ग दर्शन से श्री राम ने रावन जैसे आततायी से विजय पायी इन्हीं ऋषि के कारण अहिल्या का उद्धार हुआ कुल मिलाकर विस्वमित्र का जीवन मानव के परोपकार में व्यतीत हुआ और इनके उपकार से मानव हमेशा ऋणी रहेगा 

विश्वामित्र की राजा से राज ऋषि बनने की कथा 

पुराने समय में भारत में गाधि नामक राजा हुए यह प्रजापति के पुत्र कुश कुश के पुत्र कुशनाभ के पुत्र थे इनके पुत्र विश्वरथ थे जो आगे चल कर विश्वामित्र के नाम से प्रसिद्द हुए कुश वंश के होने के कारण इन्हें कौशिक भी कहा जाता था विश्वरथ बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे व अस्त्र शास्त्र आदि विद्याओं में सिद्ध हस्त थे यह काफी बलशाली भी थे इसके आलावा यह महत्वाकांक्षी भी थे 

अपनी इसी महत्वाकांक्षा के होते हुए इन्होने अपने राज्य की सीमा बढाने का निश्चय किया इस कार्य के लिए इन्हें बहुत से सैनिकों की आवस्यकता थी इसके लिए इन्होने अपने राज्य के सभी युवाओं को सेना में बल पूर्वक भारती करा लिया इससे इनके पास एक विशाल सेना तैयार हो गयी अपने राज्य के आस पास के राज्यों पर अपना अधिपत्य स्थापित करने के बाद अब इहोने शेष पृथ्वी पर अपना अध्टी स्थापित करना चाहा इसके लिए यह अपनी विशाल सेना लेकर अन्य राज्यों पर अपना अधिपत्य करने के लिए निकल पड़े 

एक बार यह अपनी समस्त सेना के साथ बशिष्ठ के आश्रम के पास निकले आश्रम का रमणीक वातावरण देख कर इन्होने कुछ देर वहा रुकने का न्र्ने लिया यह बशिष्ठ के पास गए और उन्हें प्रणाम किया बशिष्ठ ने इनसे कुशल क्षेम पूछा और आने का प्रयोजन पूछा विश्वामित्र ने कहा मैं इधर से निकल रहा था आपके दर्शन की इच्छा से आपके पास आया हूँ बशिष्ठ ने जलपान के लिए पूछा किन्तु अपनी विशाल सेना को देख कर और बशिष्ठ के आश्रम को देख कर संकोच वश उन्हें मन कर दिया किन्तु बशिष्ठ के विशेष आग्रह पर विश्वामित्र ने अपनी सेना के साथ वहां रुकने का निर्णय लिया 

बशिष्ठ के पास कामधेनु की बछिया (गाय का बच्चा) थी जिसका नाम नंदिनी था वह बछिया मायावी थी उसकी सहायता से विस्वमित और उनकी सेना के लिए यथा योग्य जलपान का प्रबंध कर दिया 

उसके बाद विश्वामित्र ने वहां से प्रस्थान कर के अपने राज्य में आगये चूँकि विस्वमित्र ने अपने राज्य के सभी युवाओं को सेना में भारती कर लिया था अत: उनके राज्य में कृषि आदि के कार्य नहीं हो पाए थे जिससे उनके राज्य में भयंकर भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गयी 

जब विस्वमित्र के पास राज्य की भुखमरी की बात आयी तो उन्हें चिंता हुई अपनी प्रजा को भुखमरी से बचाने के लिए उन्हें बशिष्ठ की चमत्कारी गाय का ध्यान आया वे बशिष्ठ के पास उस गाय को मांगने के लिए गए किन्तु बशिष्ठ ने मन कर दिया गाय को पाने के लिए विश्वामित्र ने बशिष्ठ को कई तरह के प्रलोभन दिए किन्तु बशिष्ठ किसी भी तरह से नहीं माने अब विश्वामित्र को क्रोध आ गया उन्होंने गया पाने के लिए अपने बल का प्रयोग करने का निर्णय लिया और बशिष्ठ के आश्रम पर अपनी सेना के साथ चढ़ाई कर दिया किन्तु विस्वमित्र किसी भी तरीके से बशिष्ठ से गाय हासिल नहीं कर पाए बशिष्ठ ने नंदिनी गाय की मदद से विश्वामित्र की सेना को बुरी तरह से हरा दिया अपनी सेना को हारते देख कर विस्वमित्र के सौ पुत्रों ने बशिष्ठ को मरने का प्रयत्नं किया बशिष्ठ ने विस्वमित्र के एक पुत्र को छोड़ कर उनके सभी पुत्रों को भस्म कर दिया अपने पुत्रो के हताहत होने से विस्वमित्र ने तपस्या करने का निर्णय लिया और अपने बचे हुए पुत्र को राज गड्डी पर बिठा कर हिमालय पर तपस्या करने चले गए यहाँ से विस्वमित्र का ऋषि बनने की शुरुआत हो गयी 

बशिष्ठ से प्रतिशोध 

हिमालय की तपस्या से विश्वामित्र को अनेक दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति हुई विश्वामित्र दुबारा उन अस्त्रों के साथ बशिष्ठ के आश्रम प् पहुंचे और उन्होंने बशिष्ठ पर उन दिव्य अस्त्रों से प्रहार काना शुरू कर दिया किन्तु बशिस्थ ने उन सभी अस्त्रों के प्रहार को नष्ट कर दिया 

जब किसी भी तरह विस्वमित्र बशिष्ठ से युद्ध में नहीं जीत पाए तो उन्होंने दोबारा तपस्या करने का न्र्ने लिया दोबार कठिन तपस्या की इससे ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उन्होंने विश्वामित्र को राज ऋषि की उपाधि से विभूषित किया किन्तु विस्वमित्र राज ऋषि की उपाधि से संतुष्ट नहीं हुए और इसके बा ड उन्होंने फिरसे घोर तपस्या करने का निर्णय लिया 

मेनका का मोह 

विश्वामित्र की घोर तपस्या को देखकर इंद्र का मन शंका से भर गया इंद्र ने सोचा कहीं यह मेरा स्थान लेने के लिए इतनी घिर तपस्या तो नहीं कर रहे है इसके लिए इंद्र ने पहले रम्भा को विश्वामित्र की तपस्या को भंग अकरने के लिए भेजा किन्तु विश्वामित्र ने अपने तपबल से रम्भा को पत्थर का बना दिया उसके बाद इंद्र ने मेनका को भेजा विस्वमित्र मेनका के मोह जाल में फंस गए मेनका से एक पुत्री उत्पन्न हुई जब विस्वमित्र को मेनका के मोहा जाल से मुक्ति मिली तो उन्होंने मेनका को छोड़ कर पुन: तपस्या को पूर्ण किया मेनका भी अपनी पुत्री को कण्व ऋषि के आश्रम में छोड़ के वापस स्वर्ग में चली गयी इस पुत्री कण माँ शकुंतला था जो बाद में दुष्यंत इ विवाह कर के एक पुत्र का जन्म दिया जिसका नाम भरत था इन्हीं भरत के नाम से हमारे देश का नाम भारत पड़ा 

नवीन स्वर्ग का निर्माण 

उस समय भारत में एक रजा राज्य करते थे यह राजा इक्शावाकू वंश के थे इनका नाम सत्यब्रत था यह हरिश्चंद्र के पिता थे इनके मन में सशरीर स्वर्ग जाने की इक्षा हुई इसके लिए यह बशिष्ठ के पास गए और उनसे सशरीर स्वर्ग भेजने के लिए कहा किन्तु बशिष्ठ ने उन्हें मन कर दिया अब यह बशिष्ठ के पुत्रों के पास गए किन्तु उन्होंने भी मना कर दिया और कहा जिस कार्य को मेरे पिता ने मन कर दिया उसी कार्य को तुम उझ्से करवाना चाहते हो ऐसा लगता है कि तुम मेरे पिता का अपमान करना चाहते हो इससे सत्यब्रत ने उन्हें अपशब्द कहे जिससे कुपित होकर बशिष्ठ के पुत्रों ने उन्हें चंडाल हो जाने का श्राप दे दिया 

चांडाल हो जाने के बाद सत्यब्रत के सगे संबंधी मंत्री दरबारियों ने उनका साथ छोड़ दिया किन्तु उनके मन से सशरीर जाने की इच्छा नहीं गयी इसके बाद सत्यब्रत विश्वामित्र के पास गए और उनसे याचना की विश्वामित्र ने उन्हें सशरीर स्वर्ग भेजन स्वीकार कर लिया और उनके लिए यग्य करने का निर्णय लिया इसके लिए समस्त ऋषियों को यग्य में शामिल होने का निमन्त्रण दिया सभी ऋषि इस यग्य में शामिल हुए किन्तु बशिष्ठ के पुत्रों ने यह कह कर यग्य में शामिल होने से इनकार कर दिया कि जिसका पुरोहित क्षत्रिय और यजमान चांडाल हो उस यग्य में बहग नहीं ले सकते हैं इससे कुपित होकर विश्वामित्र ने बशिष्ठ के पुत्रों को चांडाल होने का श्राप दे दिया 

विश्वामित्र के श्राप के भय से शेष ऋषियों ने यग्य में भाग लिया और विश्वामित्र ने यग्य पूर्ण कर लिया किन्तु जब देवताओं को यग्य का भाग लेने के लिए आवाहन किया तो किसी भी देवता ने यग्य का भाग लेना स्वीकार नहें किया इससे कुपित होकर विश्वामित्र ने अपने तप के बाले से सत्यब्रत को स्वर्ग भेजने का न्र्न्य लिया और अपने तपबल से सत्यब्रत को स्वर्ग को भेजने लगे उधर जबइंद्र ने देखा कि कोई सशरीर स्वर्ग आरहा है तो उन्हों अपने बल से उन्हें बापस धरती की ओर भेज दिया सत्यबरत उलटे धरती की ओर गिरने लगे सत्ब्र्ट ने विस्वमित्र को सहायता के लिए बुलाया विश्वामित्र ने उन्हें आकाश में रोक दिया इससे सत्ब्र्ट का नाम त्रिशंकु पड़ा और अपना नया स्वर्ग बनाना शुरू कर दिया विश्वामित्र ने सृष्टि की राचन करनी शुरू कर दिया तब देवताओं ने उनकी विनती के तो उन्होंने कहा जो स्वर्ग मैंने बना दिया है त्रिशंकु अब इसी स्वर्ग में राज्य करेगा इस तरह से विश्वामित्र ने त्रिशंकु के लिए नए स्वर्ग की रचना की 

विश्वामित्र को ब्राह्मणत्व की प्राप्ति

इसके बाद विस्वमित्र को अपने ब्रह्म ऋषि न होने को लेकर खेद इसके लिए उन्हों कठोर तपस्या कने का निर्णय लिया और उपवास काके तपस्या करने लगे कई दिन तपस्या करने के बाद ब्रह्मा इनकी तपस्या से प्रसन्न हुए और इन्हें प्रसाद दिया किन्तु उसी समय इंद्र ने ब्राह्मण भिक्षुक बन कर उनसे उस प्रसाद की मांग की जिसे उन्होंने कठोर तपस्या से प्राप्त किया था विश्वामित्र ने बिना किसी संकोच के उन्हें वह प्रसाद दे दिया और यस सोच कर शायद अभी उनकी तपस्या की अवधि पूर्ण नहीं हुई दोबारा तपस्या से करने लगे तब दोबारा ब्रह्मा जी ने प्रसन्न हो कर इन्हें ब्रह्म ऋषि होने का वरदान दिया किन्तु यह बशिष्ठ के द्वारा ब्रह्म ऋषि की उपाधि पाना चाहते थे तबै सभी देवतों ने बशिष्ठ से विस्वमित्र को ब्रह्म ऋषि की उपाधि देने के लिए कहा बशिष्ठ ने इन्हें ब्रह्म ऋषि की उपाधि दी इस तरह से विस्वमित्र ब्रह्म ऋषि हो गए 

इसके बाद रामायण में श्री राम के साथ हरिश्चंद्र की परीक्षा लेने आदि कई कार्यों के लिए विश्वामित्र का नाम स्मरण किया जाता है 

विश्वामित्र ने गायत्री मन्त्र की स्थापना की 

गायत्री मन्त्र 

ॐ भुर्बुव: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्॥ 

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