दधीच ऋषि
मानवता के लिए अपनी हड्डियाँ तक दान करने वाले
वैसे तो भारत के लगभग सभी ऋषियों ने मानवता के लिए अपने शरीर पुत्र संपत्ति आदि सभी कुछ मानवता को अर्पण कर दिया इन ऋषियों में मह्रिषी दधेच का नाम भी आता है यह भारत के उन महानतम ऋषियों में से एक हैं जिन्हों ने मानवता के लिए अपनी हड्डियों को दान में दे दिया था
ऋषि दाधीच का वर्णन अनेक पुराणों और हिन्दू धर्म गर्न्थों में मिलता है इनकी तपो भूमि उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में उल्लेख मिलता है इनकी माता का नाम शांति था और पिता का नाम ऋषि अथर्वा था यह परम तपस्वी थे कहीं पर इनकी माता का नाम चित्ति भी बताया गया है
ऋषि दाधीच भगवन शंकर के अनन्य भक्त थे कुछ ग्रंथों में इन्हें शुक्राचार्य का पुत्र भी बताया जाता है
देवराज इंद्र दाधीच से बहुत ही इर्ष्य करता था इंद्र के इर्ष्य करने के कई कर्ण अलग अलग ग्रन्थों में बताया गया है एक तो दाधीच ने अत्यंत घोर तपस्या की थी इंद्र को भय था कहीं यह तपस्या मेरे सिंघासन पाने के लिए करा रहे हैं इस लिए इंद्र ने इनकी तपस्या भंग करने के लियेअनेक युक्तियाँ की इंद्र ने इनकी तपस्या भंग करने के लिए काम देव और अत्यंत सुन्दर अप्सराएँ स्वर्ग से इनके पास भेजीं किन्तु कामदेव और अप्सराएँ इनके तप को भंग नहीं कर पायीं क्रोधित इंद्र इनकी हटी करनी चाही किन्तु वो इनकी हत्या के उद्देश्य को भी पूरा नहीं कर पाया
दुसरी कथानुसार ऋषि दाधीच को ब्रह्म विद्या का ज्ञान था जो उस समय विश्व में किसी को नहीं था इंद्र ब्रह्म विद्या को जानना चाहता था इस लिए उसने ऋषि दाधीच से ब्रह्म विद्या बताने के लिए कहा किन्तु ऋषि दाधीच ने कहा तुम इस विद्या को जानने के लिए उपयुक्त नहीं हो अत: तुम्हे इस विद्या को नहीं बताऊंगा क्रोधित इंद्र ने श्राप देते हुए कहा यदि तुम मुझे इस विद्या को नहीं सिखाओगे तो किसी अन्य को भी इस विद्या का ज्ञान मत देना यदि किसी को इस विद्या के बारे में बताया तो तुम्हारा सर धड से अलग हो जायेगा बाद में अस्वनी कुमार ने जब इस विद्या को बताने के लिए कहा तो ऋषि ने इंद्र के श्राप के बारे में उन्हें बताया तब अस्वनी कुमार ने ऋषि के धड पर घोड़े का सर लगाकर ब्रह्म विद्या को जाना ऋषि दाधीच के अश्व का सर को अलग हो गया बाद में अस्वनी कुमार ने उनके असली सर लगदिया इससे कुपित होकर इंद्र ने अश्वनी कुमारों को स्वर्ग से निष्काषित कर दिया
वृत्रासुर राक्षस और इंद्र का दाधीच से हड्डियों का मांगना
एक बार इंद्र की सभा में गुरु बृह्स्प्ती का आगमन हुआ इंद्र ने उनका सम्मान नहीं किया इससे कुपित होकर गुरु बृह्स्प्ती ने स्वर्ग और इंद्र का तिरस्कार कर दिया इसके बाद इंद्र ने विश्वरूप को अपना पुरोहित बनाया विश्वरूप देवताओं के अंश का कुछ हिस्सा दैत्यों को दे दिया करता था जब इंद्र को यह बात मालूम हुई तो उसने कुपित होकर विश्वरूप का सर धड से अलग कर दिया विश्वरूप चेष्टा ऋषि का पुत्र था चेष्टा ऋषि ने क्रोधित होकर बृत्तासुर को उत्पन्न किया बृत्तासुर ने स्वर्ग में भयंकर उत्पात करना शुरू किया जिससे डर कर इंद्र अन्य देवताओं के साथ स्वर्ग छोड़ कर मारे मारे फिरने लगे तब ब्रह्मा जी ने इंद्र को सलाह दी कि वे ऋषि दाधीच के हड्डियों से बने बज्र का यदि प्रयोग करें तो बृत्तासुर को मार सकते हैं इंद्र ऋषि दाधीच के पास सकुचाते और लजाते हुए गए और उनकी याचना करके उनकी हड्डियों को माँगा ऋषि दाधीच ने कहा यदि मेरा शरीर हद्दिय्याँ कुछ भी मानवता और लोक कल्याण के लिए उपयोग होती हैं तो मैं सहर्ष अपनी हड्डियों अर्पण करने के लिए तत्पर हूँ और उसके बाद उन्होंने योग विद्या से अपने प्राण त्याग दिया उस समय ऋषि की पत्नी गभस्तिनी कुटिया में नहीं थी ऋषि के देह त्यागने के बाद उनके शरीर से मांस अलग करने की समस्या उत्पन्न हुई जिसे बाद में कामधेनु ने चाट कर अलग कर दिया अब ऋषि का केवल अस्थि पंजर सामने था जिससे एक बज्र बनाया गया और उससे बृत्तासुर का बढ़ किया गया ऋषि की मृत्यु के उनकी पत्नी ने सती होने का निश्चय किया उस समय ऋषि की पत्नी गर्भवती थी इस लिए देवताओं ने सती होने के लिए मन किया लेकिन उनकी पत्नी ने हठ पकड लिया तब उनके गर्भ को पीपल के पेड़ में रख कर उनकी पत्नी गभस्तिनी सती हो गएँ बाद में उनके गर्भ से जो उन्होंने पीपल के पेड़ में रखा था से एक पुत्र ने जन्म लिया जी पिप्लाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ
ऋषि दाधीच के नाम से सीतापुर जिले के मिश्रिख तहसील में दाधीच कुंड स्थित है जाओ लोगन के बहुत ही श्रद्धा का स्थान है साल भर लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहाँ आते हैं