सप्त ऋषि अत्री ब्रह्मा विष्णु महेश के एक साथ दर्शन करने वाले एक मात्र ऋषि
भारत देश के महानतम ऋषियों में महर्षि अत्रि का नाम सर्वोपरी है यह एक मात्र ऋषि जिन्हें त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु और महेश ने एक साथ दर्शन दिए इसके आलावा इन्हीं ऋषि के यहाँ इन तीनो देवों ने अवतार लिया इन्हीं ने श्री राम चन्द्र जी का वन में मार्ग प्रशस्त किया था रिगु वेद के पांचवे मंडल में इन का महमा मंडान किया गया है इनके लेखे श्लोक अत्यंत दुर्लभा एवं उच्च कोटि के हैं
महर्षि अत्रि का जन्म
मह्रिषी अत्रि ब्रह्मा के मानस पुत्र थे इंनका जन्म ब्रह्मा के नेत्र से हुआ था ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्र हुए हैं जिनके नाम पुलस्त्य, बशिष्ठ, पुलह, कौशिक, मारीचि, क्रतु और नारद हैं
अत्रि का शब्दिक अर्थ नीं अवगुणों से रहित वे तीन गुण हैं रजो, तमो, और सतो
कहते हैं के इनके जन्म से पहले ही ब्रह्मा ने इन्हें तप करने का आदेश दिया अत: यह जन्म से तप में लीं रहने लगे जब इनकी तपस्या सफल हुई तो इन्होने तीनो देवो को एक सात द्र्श्नकारने की इच्छा की भगववान इनकी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हुए अत: उनोने ब्रह्मा, विष्णु व महेश ने एक साथ इन्हें दर्शन दिए उसके बाद इन्होने उनसे पुत्र रूप जन्म लेने का वरदान लिया समय आने पर उन तीनों भगवन ने इनके यहाँ पुत्र रूप में दर्शन दिया इनकी पत्नी का नाम अनुसूया था अनुसूया महान पतिव्र्ती के रूप में सारे संसार में प्रसिद्ध हैं इस्नके तीनो पुत्रों के नाम दुर्वासा, दत्तत्रेय, और चन्द्र है
ऋषि अत्रि ज्ञान, तपस्या, भक्ति तथा सदाचार की एक जीवंत स्वरूप थे