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चांद कहीं खो गया

9 नवम्बर 2021

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    अब तक उसने चार पैग गटक लिए थे और शराब का सुरूर चढ़ रहा था । सामने भुने हुए काजू की और नमकीन की प्लेट सजी हुई थी जिसमे से कुछ दाने वो निकाल कर चबा लेता था । रात 10 बजे के आसपास उसका पीना खत्म होता है, फिर उसका शानदार डिनर होता है । और डिनर के बाद गपशप करते रात 3 बजे के आसपास जनाब सोने चले जाते हैं ।

इस आधुनिक और विज्ञान की दुनिया ने उसे बेशुमार दौलत और साधन दिये हैं ,जिसके साथ उसकी दुनिया रंगीन रहती है ।

आज आदमी के पास प्रचुर साधन है लेकिन वक्त नही । उसके पास लोग तो हैं लेकिन वो प्रेम और अपनापन नही । हथेली में रखा मोबाइल और उसकी रोशनी ने रिश्तों को दूर कर दिया है। कुदरत को दूर कर दिया है उसके नजारों से दूर कर दिया है ।

मोबाइल को देखकर चार लाइनें बन गई ,,,,

दुनिया मेरी हथेली में पड़ोस कोसों दूर
रात मेरी रौशन है पर चांदनी कोसो दूर


   उसे याद नही कभी उसने आसमान की ओर झांक कर भी देखा हो । उसे पूनम और अमावस की रात के मायने भी नही मालूम । उसे देखकर मुझे लगता है कि उस जैसे तमाम लोगों के लिए चांद कहीं खो गया है ।उन्हें दिन और रात का अंतर नही मालूम । वे अपनी रंग बिरंगी और चांद की हूबहू रोशनी पैदा करने वाले खूबसूरत बल्ब की रोशनी को जानते हैं ।

अब चांद हमारी बिजली की जगमगाती रातों में कहीं खो गया है । हमने कुदरत के इस सुंदर नज़ारे को अपनी दुनिया से दूर कर दिया है । उसे देखकर मैं सोच रहा था ....

     अब दिन और रात का फर्क मिटता जा रहा है.क्योकि अब हमारे पास प्रकाश को बनाये रखने के साधन प्रचूर मात्रा में हो गये हैं . बिजली से हमने अब रात के अंधियारे से लड़ने का सामर्थ हासिल कर लिया है . अब सूरज हमारे हिस्से में न हो तो भी हमने इतनी रोशनी पैदा कर ली है कि उसकी जरूरत महसूस नहीं होती. हमारी रातें दिन से ज्यादा गुलजार होने लगी हैं.सारी महफ़िलें रात में ज्यादा खुबसूरत लगती है.अन्धकार से दूर रहने की छटपटाहट रंग लाने लगी है .

       तो अब क्या हम रात को दिन जैसा चाहते हैं ? हमने रात को आँखों में बसने वाली नींद से तौबा कर ली है. हम देर तक जागने लगे हैं कभी कभी तो सुबह तक, जब फिर से सूर्य के प्रकाश की बारी नहीं आ  जाती है . तो क्या हम केवल दिन दिन ही चाहते हैं ? इस जगमग दुनिया में रातें गायब होने लगी हैं और हमारा प्यारा चंदामामा हमारे लिये अजनबी हो गया है ,हमारे बच्चे आंगन और चांद सितारों से भरी रातें नही देखपाते उन्हें किताबो और कम्प्यूटर से हम रात के हसीन नजारों की कहानी सुनाते हैं  . 

अब हमारा जीवन २४ घंटे प्रकाश में है . दुनिया को हमने रोशन कर  दिया है . रात का वजूद संकट में है पर क्या कभी हमने सोचा है कि रात को यानी कि अँधेरे को चुनोती देकर हमने अपने आँखों से चैन कि नींद चुरा ली है . अब हमारी आँखें अँधेरे में रहकर सोने की  अपनी आदत बदल रहीं हैं ...

इस बदलाव का खामियाजा तो भुगतना पड़ेगा ...यदि इससे बचना है तो

     रात को रात रहने दो नहीं तो ये फर्क मिटाकर हम अपना  चैन,सुकून और प्यारी नींद खो देंगे . पहले का एक गीत है जब रात का वजूद था और रात को नकारात्मक यानि कि आलस्य और मदहोशी का पर्याय माना जाता था गीत है कि,.... उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन  कहाँ जो सोवत है .....जो सोवत है वो खोवत है जो जागत है सो पावत है ..आज इन पंक्तियों के भाव बदल गये हैं अब तो कहना पड़ रहा है कि

जो जागत हो सो रोवत  है ....जो सोवत है वो पावत है ...अर्थात तनाव और चिंता हमारी नींद खा जाती है और ये तनाव और चिंता ज्यादातर प्रकाश में आँखों को रखने से हो रहा है ... योग प्रणायाम में कहा जाता है आँखें बंद कर  लो मतलब प्रकाश से दूर अपनी आँखों में अंधकार लाकर चंचल  मन और विचार को शांत करो .....मतलब स्वस्थ काया के लिए मन को अशांति और तनाव से दूर रखा जाय और इसके लिये पर्याप्त नींद चाहिए और नींद अँधेरे में बंद आँखों से ही आती है खुली आँखों से नहीं...प्रकाश हमारी आँखे बंद नहीं होने देता ,,, क्या करें हमारी आँखे रंगिनियो को देखने से अघाती ही नहीं ....

देर रात तक काम करने वालो और जागने वालों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्या आने लगी है . अब डाक्टर कहते हैं देर रात रात तक मत जागिये पूरी नींद लीजिये ,और हमने नींद चुराने के,,देर तक जागने के हजार जतन कर रखे हैं ,,इसे हम अपनी सफलता में शुमार करते हैं ...

प्यारे आधुनिक मानव दोस्त ....

बस रात को रात रहने दो  ,,, अँधेरे उजाले का फर्क न मिटाओ कुदरत ने तुम्हे बुद्धि और युक्ति दी है तो उसकी चाल खराब न करो ,,, रात को रात रहने दो ....


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