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निराश क्यों हुआ जाए

3 अगस्त 2022

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आज मेरा मन कुछ अच्छा नही था । देश मे लगातार हो रही आतंकी घटनाएं और साम्प्रदायिक दंगों ने मुझे बहुत दुखी और निराश कर दिया था । मैं अपने प्रिय प्रोफेसर श्रीमान रमेश कुमार जी से मिलने चला गया। 
रमेश कुमार उन लोगों में थे, जिन्होंने भारत के विभाजन का दर्द झेला था । देश आजाद होने के पहले ही जिन्ना की आत्मघाती जिद के कारण दो टुकड़ों में बंट गया था । और आजादी के लिए अपना बलिदान देने वालों के लिए यह बहुत दुःखद था ।

     रमेश कुमार जी का परिवार भी लाहौर के एक कस्बे में बड़े सुकून से रह रहा था। खेती थी, बाग बगीचे थे और हिन्दू मुस्लिम सब साथ मिलकर काम करते थे । उनके प्रेम और सहयोग में कभी जाति और मजहब आड़े नही आया । लेकिन नेताओं के द्वारा लगाई गई आग से सबकुछ तबाह हो गया । रातों रात उन्हें पाकिस्तान छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी । अपनी पढ़ाई पूरी करके वे कॉलेज में प्रोफेसर हो गए थे । 
     मैं उनका विद्यार्थी था । वे  मेरी बहुत सी जिज्ञासा को शांत करते । मेरी समझ को बढ़ाते और हमेशा देश के लिए सोचने को कहते । 

आज मैं उनसे मिलने आया था।

-सर प्रणाम ! मैंने कहा 

- स्वस्थ रहो, प्रसन्न रहो ,,,उनका हमेशा यही आशीर्वाद रहता । उन्होंने बैठने का इशारा करते हुए कहा, कहो कैसे आना हुआ अजय ,,,,? 

- इन दिनों कुछ अच्छा नही लग रहा है सर,
मन बहुत निराश है,,, आप कहते हैं कि देश के बारे में हमें सोचना चाहिए,,, 
मैं तो कुछ सोच ही नही पा रहा इस माहौल और खून खराबे को देखकर ।

उन्होंने कहा, देखो  हमारे विचार एक एक व्यक्ति से होकर राष्ट्र की प्रेरणा बनते हैं। यदि ऐसा नही होता तो क्या गांधी जी,नेता जी और चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंग के काम जन जन की प्रेरणा बन पाते । 
उनके प्रयासों ने और बलिदान ने जन जन के भीतर क्रांति की ज्वाला भड़का दी और अंग्रेज जाने को मजबूर हुए । अगर वे लोग भी हताश और दुखी होकर बैठ जाते तो देश का क्या होता । यह आगे भी सदियों तक गुलाम ही रहता ।
थोड़ा रुककर पेपर एक ओर रखते हुए उन्होंने आगे कहना शुरू किया,,,
निराश न हो मेरे बच्चे,,
स्नेह से उन्होंने फिर समझाना शुरू किया । 

कभी कभी जीवन में ऐसा मोड़ भी आता है, जब निर्णायक लड़ाई के लिए आगे आना होता है, तब सत्य और अहिंसा की राह पर चलकर दृढ निश्चय के साथ उसका सामना किया जाय तो जीत होती ही है. इसका उदहारण गाँधी जी कि वह घटना है, जिसने उन्हें अन्याय ,असमानता और रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई लड़ने को प्रेरित किया. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वकालत करने के लिए जब वे दक्षिण अफ्रीका के शहर प्रिटोरिया से मेरित्स्बर्ग की यात्रा ट्रेन में कर रहे थे, तब उस यात्रा के दौरान उनका अपमान हुआ. उनके पास प्रथम दर्जे की टिकिट होने के बावजूद ट्रेन से आधी रात को कडकडाती ठण्ड में उन्हें बाहर फेंक दिया गया. तब उस अपमान और तिरस्कार से वे क्रोधित जरुर हुए, पर उस रात उन्होंने अपने क्रोध को महान संकल्प में बदल दिया. उन्होंने इस अन्याय का विरोध सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चल कर करने का संकल्प लिया, वहां के लोगों में यह भाव जगाया कि यदि गुलामी से मुक्त होना है, तो इसके लिए शारीरिक ताकत से विरोध करके नहीं, बल्कि आत्मशक्ति के साथ बलिदान के लिए समर्पित होने की जरूरत है. यह भाव जगाकर सदियों से हो रहे भेदभाव और शोषण के खिलाफ उन्होंने लोगों को संगठित किया और ताकतवर हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई । उनकी यह संकल्प शक्ति ने इतना विराट रूप लिया कि हमारा देश भारत उनके नेतृत्व में अंग्रेजो की दासता से मुक्त हुआ । गांधी जी की अहिंसक लड़ाई हमे यह मानने पर मजबूर कर देती है कि दुनिया में जितने भी सितमगर हुए उन्हें देखकर लगा कि वे कभी पराजित नहीं होंगे पर आख़िरकार सत्य और अहिंसा के आगे उनकी हार हुई ।

    गाँधी जी हमेशा कहा करते कि ईट का जवाब पत्थर से दिया गया तो ये दुनिया ही खत्म हो जाएगी, आँख के बदले आँख की भावना से यदि काम किया जाय तो सारी दुनिया अंधी हो जाएगी । हमे बदले की भावना से नहीं बल्कि प्रेम और क्षमा से प्रेरणा जगाकर बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए ।

      देखा जाय तो आज दुनिया में कोई देश किसी और देश का गुलाम नहीं है, किन्तु फिर भी हर देश नफरत,अलगाव और हिंसा से त्रस्त है । ऐसे समय में गाँधी जी का जीवन दर्शन हम सबको प्रेरित करता है, उन्होंने साधनों के लिए नही बल्कि मनुष्यता के लिए जीने का संदेश दिया । उन्होंने हमेशा उन लोगों के लिए जीना मरना सिखाया, जिन्हें आज भी दो वक्त की रोटी और सर पर छांव नसीब नहीं है । चंपारण सत्याग्रह के दौरान गरीब,अधनंगे किसानो को देखकर उन्होंने उसी समय अपने कपड़ो का त्याग कर दिया और आजीवन सिर्फ धोती ही पहनते रहे, उनके जीवन में कथनी और करनी में कभी भेद नही रहा । जो कहा उसे पालन करने में वे कभी पीछे नहीं हटे । उन्होंने जीवन को सादगी, सहजता और पूरी सच्चाई से जीने का सूत्र दिया ताकि लोग यह समझ सकें कि अपरिग्रह से ही समाज में समानता आयेगी क्योकि यह धरती सबकी जरूरतें तो पूरी कर सकती है, पर किसी का लालच पूरा नहीं कर सकती । यह विचार आज और भी ज्यादा प्रासंगिक लगता है, जब दुनिया नित नये भोग विलास के साधनों के पीछे भाग रही है । इन साधनों से लगता जरुर है की जिन्दगी आसान हो गयी और परिस्थितियां सुखद हो गयी , किन्तु ऐसा हुआ नहीं, बल्कि हमारी जीवन शैली और भी ज्यादा बिगड़ गयी,पर्यावरण में असंतुलन आ गया , आज श्रम की न्यूनता के कारण मानसिक रोग और तनाव ज्यादा हो रहा है । 
    नित नये साधनों को पाने की लालसा में सब अंधी दौड़ में शामिल हो गये।  हममे आत्म अनुशासन नहीं रह गया  । हम भौतिक साधनों को सर्वस्व मानने लगे । आज परमार्थ और सेवा न होकर स्वार्थ की भावना होने के कारण समाज में बिखराव होने लगा है,संयुक्त परिवार जैसी अवधारणा खत्म हो रही है, घर के बुजुर्गो का जीवन उपेक्षित और एकाकी हो रहा है, ऐसे निराशाजनक माहौल में गाँधी जी का जीवन दर्शन और उनके विचार सर्वाधिक उपयोगी जान पड़ते हैं । एक नये युग की शुरुआत के लिए हमे उन रास्तों को अपनाना होगा जिस पर चलकर महापुरुष गये हों । 
इतना कहकर वे चुप हो गए और पेपर उठाकर उस पर नजर फिराने लगे ।

   उनकी इस सारगर्भित बातों से मेरा मन कुछ हल्का हुआ । मैं उत्साह और साहस लेकर इस संकल्प के साथ वहाँ से निकला कि  जब कभी निराशा और हताशा घेर ले तब हमें इतिहास की महानतम घटनाओं को,आजादी के किस्से को और देश के लिए मरमिटने वाले बलिदानियों को याद करना चाहिये । कितनी मुश्किलों और कठिनाइयों को सहकर और  देश के लिए अपने प्राण तक गंवाए थे । 

आज स्वत्रंत भारत में हम क्यों डरें ? क्यों चितिंत हों ? ये देश हमारा है और कुछ दुष्टों और हरामियों की करतूत से हम इसे इस हाल में कदापि नही छोड़ सकते ।  आतंक और देश विरोधी काम करने वालों को हम अपने दृढ़ विचारों से कठोर सबक सिखाएं । उन्हें बिल्कुल भी पनाह न दें ,,। 



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