हे चितचोर पिया !
काहे छोड़ मुझे तू गया?
पल-पल आँखें,
दरश को तरसे।
सावन की बारिश,
सी आँखें बरसे।
हिय का मेरे चैन चुराकर,
आखिर, छोड़ मुझे तू गया।
हे चितचोर पिया!
काहे छोड़ मुझे तू गया?
तेरे बिना है छायी उदासी
गोकुल, मथुरा व काशी।
ऐसा लगे तुम बने वनवासी,
तेरा राह टके ब्रजवासी।
तुम हो नीर
मैं मीन सी तड़पी,
दरश को तेरे प्यासी।
भरी हुई थी, स्नेह की मटकी
जिसे तोड़ के तू है गया।
हे चितचोर पिया!
काहे छोड़ मुझे तू गया?
हे ऊधौ!
मोहन से कहना,
ब्रजवासियों की बिरह-वेदना।
दूरियां पलभर की
न काटी जाये,
लगे जो सालों-साल।
दर्शन को तेरे राधिका आतुर,
बाबा नन्द,मैया यशोदा व्याकुल।
श्याम के आने की आहट से
रैन में भी भोर होये।
हे चितचोर पिया!
काहे छोड़ मुझे तू गया?