[ दीवाली वरसेस ईद ] ( धारावाहिक- प्रथम भाग)
संयोग से इस वर्ष ईद और दीवाली दोनों त्योहार साथ साथ आने वाले थे । महीने भर पूर्व ही हमारे रायपुर शहर में हर तरफ़ हर्षो-उल्लास का वातावरण बन चुका था ।
हिन्दुओं के घर साफ़ सफ़ाई और रंग रोगन से चमकने लगे थे । उधर मुसलमान मुहल्लों में रमज़ान के कारण एक मुख़्तलिफ़ सा धार्मिक माहौल था । जो पूरे वातावरण में प्रेम मुहब्बत और भाई चारे का संदेश देते हुए नज़र आ रहे थे ।
शहर के ब्राहमण पारा और मौदहा पारा की दूरी 3/4 किमी से ज्यादा नहीं थी । अब ब्राह्मण पारा से रामधुन की गूंज और मौदहा पारा से अज़ान की गूंज दूर दूर तक व कुछ ज़ोर ज़ोर से सुनाई देने लगी । दोनों मुहल्ले का हर शख़्स ख़ुशी और उमंग से सराबोर प्रतित होने लगा था। कुछ लोग अपने अपने ख़र्च की प्लानिंग करके बाज़ार जा रहे थे तो कुछ लोग बेफ़िक्री के आलम में मस्त नज़र आ रहे थे ।
उधर मौदहा पारा में रमज़ान की 23 वीं रोज़ा की शाम थी, चहल पहल बहुत ही कम थी । कुछ अजीब से ख़ामोशी पसरी थी । आज शाम वहां के मस्जिद के इमाम साहब ने सराय में एक ज़रूरी मिटिंग बुलाई थी । साथ ही उन्होंने मुहल्ले के बाशिन्दों से अपील की थी कि एक अहम मुद्दे पर चर्चा करनी है । आप सभी अधिक से अधिक संख़्या में अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराएं ।
मीटिंग के बुलावे के तहत बहुत सारे लोग समय पर सराय पहुंचकर जहां स्थान मिला बैठ गये । सारे लोग इमाम साहब की बातों को सुनने बेताब नज़र आ रहे थे । इस मीटिंग में “रहीम दानी” भी अपने कई साथियों के साथ सही वक़्त पर पहुंच कर चौथी पंक्ति में बैठ गया । उसके साथ उसके दोस्त इरफ़ान , युनूस, अज्जू , और अज़हर भी थे । कुछ मिन्टों में वहां मंच पर इमाम चिश्ती साहब , मस्जिद के मौलवी इसराइल साहब , मुहल्ले के बुजुर्ग राही साहब और मौदहापारा के पार्सद मुनव्वर जी आसीन हो गये । उदघोषक के रूप में रौनक भाई सबका इस्तेक़्बाल करते नज़र आ रहे थे । 7;30 बजे तक सराय खचाखच भर चुका था । कुछ लोग अंतिम पंक्ति में खड़े होकर ही कार्यक्रम में अपनी भागीदारी दर्ज़ करा रहे थे ।
सबसे पहले इमाम साहब ने माइक संभाला और बड़े ही गंभीर आवाज़ में कहना प्रारंभ किया कि आप सबने पेपर में पढा होगा कि आसाम के कोकराझाढ जिले में वहां के हिन्दुओं ने हमारे मुसलमान भाइयों पर बहुत ज़ुल्म ढाया है । सैकड़ों लोगों को मार डाला गया है । बहू बेटियों की इज़ज़त लूटी गई है और हज़ारों मकानों को आग के हवाले कर दिया गया है । इस दुखद घटना के वास्ते हमें प्रशासन के आगे अपना विरोध दर्ज़ कराना है । इसके अलावा भी हम अपने आसाम के भाईयों के लिए क्या क्या कर सकते हैं इस विषय पर हमें आप सबके साथ गंभीर चर्चा भी करनी है ? हम अपनी क़ौम की सरक्षा के लिए क्या क्या कर सकते हैं ? इस विषय पर हमें आप सबकी राय जाननी है । आप सबका नज़रिया जानने के बाद फिर दिलो-जान से उस राह पर चल कर अपने मज़लूम भाइयों को माकूल मदद पहुंचानी है ।
विषय के समझते ही समूचे हाल में कुछ पलों के लिए इक अजीब सा सन्नाटा पसर गया । वहां उपस्थित हर शख़्स सोचने लगा कि इस कार्य में मेरा क्या सहयोग हो सकता है ? उधर रहीम दानी विषय की गंभीरता को समझते ही डर गया । उसको किसी अनहोनी का एहसास होने लगा । रहीम ने दो दिन पहले ही टीवी के माद्ध्यम से जाना था कि आसाम के पिछड़े इलाके में दो समूहों के बीच किसी बात पर झगड़ा हो गया । फिर झगड़ा इतना बढा कि मार पीट की नौबत आ गई। जिसके तहत दोनों समूहों के कई इंसान खुदा को प्यारे हो गये । लेकिन टीवी के उन समाचारों से रहीम को यह नहीं पता चला था कि यह झगड़ा हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच हुआ है । दस मिन्टों की खामोशी के बाद हाल में चारों तरफ़ फ़ुसफ़ुसाहट होने लगी। उसके बाद फ़ुसफ़ुसाहट शोर गुल में बदलने लगी। अब तो यह आलम था कि बाजू वाला शख़्स आपसे क्या कहना चाह्ता है समझ में ही नहीं आता था ?
तभी मौदहा पारा के पार्सद मुनव्वर जी की ज़ोरदारआवाज़ गूंजी । उनके मु:ख से निकला वाक्य था , “नारा-ए- तक़बीर” बदले में हाल में बैठे हर शख़्स के मुख से निकला “अल्लाह हो अक़बर” । इसके बाद पार्सद मुनव्वर ने कहना प्रारंभ किया । जिसका लब्बो लुआब यह था कि आसाम हुई घटना बेहद ही अफ़सोसनाक है । इसकी हम भर्तसना करते हैं । लेकिन सिर्फ़ निंदा या भर्तसना करने से काम नहीं चलेगा । कुछ सकारात्मक ,कुछ एक्टीव भूमिका अदा करनी होगी । सरकार को विरोध पत्र सौंपना होगा , सड़कों पर प्रदर्शन करना होगा । हममें से कुछ लोगों को आसाम जाकर भी भुक्त भोगी भाइयों की हौसला-अफ़ज़ाई करनी होगी । उनकी ताक़त को बढानी होगी । साथ ही वहां के पल पल की ख़बर चारों तरफ़ रहने वाले मोमिन भाइयों तक पहुंचानी होगी । ताकि हम भविष्य की रणनीति के बारे में सोच सकें । केन्द्र सरकार पर यह दबाव भी बनाना है कि आसाम के पोलिस को हटाकर उन झगड़ों वाली जगहों पर सेना की तैनाती करनी चाहिए । शहीद हुए हर मुसलमान भाई के परिवार को कम से कम 10 लाख रुपियों का मुआवज़ा देना चाहिए । इन सबके साथ हम सबको अपने शहर में अपनी ताक़त भी प्रदर्शित करनी होगी । ताकि कम से कम इस शहर के गैर मुस्लिम लोग यह सोचें कि हम लोगों से पंगा लेना मतलब अपनी शामत बुलानी होगी। उन्हें अपने भी अंजाम के बारे में भी सोचना होगा । पिछले 60 सालों से हम यूं ही ज़ुल्म सहते आ रहे हैं अब तो वक़्त आ गया है कि करो या मरो । हमें प्रतिकार करने वालों की श्रेणी से बाहर आकर प्रहार करने वालों की श्रेणी मंन अपनी क़ौम का नाम दर्ज़ कराना होगा । फिर पार्सद मुनव्वर ने हाल में बैठे लोगों से पूछा कि क्या आप लोग मेरी बातों से सहमत हैं ? तब जवाब मिला कि प्लान बताएं हम जान देने के लिए भी तैयार हैं । बहुत हो चुका गैरों के ज़ुल्म नामर्दों की तरह झेलते हुए । इसके बाद अल्लाह हो अक़बर के नारों से सारा हाल बहुत देर तक और बहुत ज़ोर ज़ोर से गूंजता रहा । फिर सभा में उपस्थित सदस्यों ने मंच पर बैठे माननीय लोगों को यह ज़िम्मेदारी सौंप दी कि आप मिलकर आगे की रणनीति जल्द से जल्द बनाइये। हम सब उस पर अमल करने की कसम खाते हैं और बेताब भी हैं कि आपकी रणनीति के तहत दुश्मनों के विरुद्ध काम करने के लिए ।
इस बीच रहीम ने खड़े होकर कहा कि घटना क्यूं हुई , कैसे हुई ? इसके बारे में हमें ज़रा भी जानकारी नहीं है । आप हमें एक जंग की ओर धकेलने की कोशिश कर रहे हैं । क्या आपको यह भी मालूम है कि वहां दोनों समूहों की लड़ाई में अगर 20 मुसलमान मरें हैं तो बोडो आदिवासी ( हिन्दू) कितने मरे हैं ? अगर हिन्दू समुदाय भी हमारी तरह ही सोचने लग जाये तो देश के गांव गांव व शहर शहर में दंगे भड़क जायेंगे । मेरा मत है कि वहां कि सारी बातें को किसी और सोर्स से कन्फ़र्म किया जाय । क्या क्या हुआ वहां और उसके पीछे कारण क्या रहे होंगे ? फिर इन सबका हमारे समुदाय के ग्यानी लोग विश्लेषण करें , उसके बाद कोई नीति बनाई जाये । सिर्फ़ न्यूज़ पेपर के माद्ध्यम से जानकारी लेकर कोई नतीज़े पर पहुंचना और फिर कोई विशेष फ़ैसला लेना बेमानी ही नहीं बेवकूफ़ी भी है । मैं आप लोगों के विचारों से सहमत नहीं हूं । आप लोग बेवजह हम मुसलमानों के दिमाग में गलत पिक्चर डाल कर हमें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं । इससे मुसलमानों का नुकसान ही होगा कोई फ़ायदा होने की तनिक भी गुन्जाइश नहीं है । रहीम के विचारों का बहुतों ने समर्थन भी किया पर अधिकान्श लोग पार्सद के विचारों व मंच के विचारों से ख़ुद को अलग नहीं कर पाये ।
[ क्रमश; ]