[ दीवाली वर्सेस ईद ] ' कहानी [धारावाहिक] तीसरा भाग
सभा समाप्त होने के बाद वहा भी कुछ जवान लड़के सड़क पर खड़े होकर इसी विषय पर चर्चा करने लगे कि आसाम के बोडो आदिवासियों की मदद के लिए और क्या क्या किया जा सकता है ? इतने में ही वहां पर से सलीम भाई गुज़रने लगे तो उन लड़कों ने उन्हें रोक लिया । और सलीम भाई से इस विषय पर उनकी राय लेने लगे । वास्तव में सलीम भाई ब्राह्मण पारा में 50 सालों से रह रहे थे । उनकी वहां मोटर सायकिल बनाने की दुकान थी । सलीम भाई ने उन लड़कों से कहा कि ऐसे मसअलों पर हमें सोच समझ कर कोई कदम उठाना चाहिए । अधिकान्श समय ऐसी समस्याओं के पीछे सियासी लोगों का ही हाथ रहता है । इसमें हम उलझेंगे तो उलझते ही रह जायेंगे । हम क़ौम के आधार से अगर उलझेंगे तो हर क़ौम को इसका नुकसान होगा । हो सकता है किसी को कम नुकसान हो और किसी को ज्यादा नुकसान हो पर नुकसान तो हर समूह को होगा ही । हम लोग यहां 50 बरसों से मिलजुलकर रह रहे हैं । हमारे बीच आज तक कोई विवाद नहीं हुआ है और हम यहां से 2000 किमी में हुई कोई अन्जानी घटना के लिए लड़ने भिड़ने का वातावरण बना रहे हैं । तो क्या हम सालों से साथ रह रहे हैं वह सिर्फ़ एक दिखावा है ? क्या हम केवल मुखौटे पहन कर एक दूजे के साथ इतने लंबे समय से रह रहे हैं ?
अगले दिन के सारे अखबार ने इसी मुद्दे को तरह तरह के रंग लगा कर छापे थे । एक अखबार हिन्दू समूह की गल्ती बता रहा था तो दूसरा अखबार मुसलमान समूह की गल्ती बता रहा था । किसी अखबार ने लिखा था इस घटना के कारण 500 से ज्यादा बोडो आदिवासी मारे गये हैं तो दूसरा अखबार लिख रहा था कि इस दंगे में कम से कम 200 मोमिन भाई शहीद हुए हैं । अब तो सारे शहर का तापमान बढ चुका था । हर जगह हर ज़ुबान पर सिर्फ़ आसाम के दंगों की बात हो रही थी । शहर के हर मुहल्ले में या तो केसरिया या हरे रंग के हज़ारों झंडे छतों पर तैनात हो गये । एक आंदोलन सा माहौल रायपुर में जब बनने लगा तो छत्तीसगढ के विभिन्न गावों व शहरों से दोनों समुदाय के कई नामी गिरामी व्यक्ति रायपुर पहुंचने लगे । उसके पीछे उनकी सोच थी कि अपने अपने लोगों के आंदोलन में अपनी भी भागीदारी दर्ज़ करानी है । जब रायपुर पोलिस प्रशासन को लगा कि यहां का माहौल कुछ गर्म हो रहा है । हिन्दू और मुसलमान क़ौमें कोकराझाड़ में हुए दंगे पर उग्र प्रदर्शन करने वाले हैं तो आस पास के जिलों से और पोलिस बल बुला लिया गया ।
अब तो ईद और दीवाली के त्योहार दोनों बिल्कुल पास आ गये थे । चार दिनों बाद दोनों त्योहार एक ही दिन मनाया जाना था । दोनों क़ौम के लोग अपने अपने त्योहार की तैयारी तो कर रहें थे । पर उनके मन में एक डर भी स्थापित हो रहा था कि पता नहीं कोकराझाड़ के विषय के कारण कहीं रायपुर में तनातनी न हो जाय । ला-आर्डर की समस्या न खड़ी हो जाये जिससे त्योहार की ख़ुशियों में भी ज़रूर कुछ न कुछ नकारात्मक प्र्भाव पड़ने की गुन्जाइश दिख रही थी । आने वाले समय में क्या होने वाला है, कोई नहीं जानता था ? लेकिन अपनी अपनी क़ौमों के लंबरदार महसूस कर रहे थे कि इस समय त्योहारों में कुछ न कुछ न विध्न ज़रूर पड़ेगा ।
[ क्रमश ; ]