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दर्द-ए-दिल

24 सितम्बर 2022

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रचनाएँ
दर्द-ए-दिल
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वर्तमान समय में भागदौड़ भरी जिंदगी में एक पल ऐसा भी आता है जब व्यक्ति अकेला बैठकर कुछ क्षण अपने आप से मिलता है, खुद से बातें करता है. जब मन एक अजीब सी उदासी से गुजरता हुआ, किसी ऐसे की चाहत करता है, जो सदा से उसका है, जिसकी अनुभूति में दर्द भी है, विरह भी है और कभी खत्म न होने वाली एक प्यास.... इसी भावो को इस पुस्तक में पिरोया गया है.
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दर्द-ए-दिल

24 सितम्बर 2022
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कह न सका, कहना था जो तुमको.... तुम्हारी आँखों में, छिपी है एक दास्ताँ.... कितना है दर्द,  बता देता गर तुमको.... जाती न कभी, छोड़ कर तुम हमको.... आएगा न कभी, दौर-ए-जुदाई का कभी.... खुला दिल मे

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कौन हूं मैं?

19 सितम्बर 2022
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कुछ पल अधूरे-अनचाहे-अनजान से, शायद मुझको भी पता नहीं कि क्यों। क्या पता-क्या चाहता हूं मैं, जो मुझको मिल नहीं पाया अब तक। क्या कहूं-क्या सुनूं मैं जानता नहीं, बस जो भी भा जाये, जान लेता हूं अब।

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दौड़ता हूँ

19 सितम्बर 2022
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दौड़ता हूँ अंतहीन राहो पर, बेतरतीब – बेइन्तहा... थक जाता हूँ दौड़कर जब, बैठ जाता हूँ उन्ही राहो पर.... करके बंद आंखे, फिर देखता हूँ वो सब... जो खुली आंखो से, देख न पाया कभी.... खामोशी के उस मं

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गुलाब की मुस्कान

20 सितम्बर 2022
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मधुर पवन खुले उपवन, महकते गुलाबों की सौंधी सुगंध, खुले नयन कहे मृग मन, छू लूँ हर पल, न हो कोई बंधन...... बहकते कदम झूमे तन मन, नैनो से गिरे मोती मंद-मंद, भवरो का गुंजन, फैला गगन, छोटी

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वो इक कराह

19 सितम्बर 2022
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अनजान समझा जिन्हें, वो मेरा अपना ही था। दर्द गहरे थे उनको, जख्म अपना ही था।। . रोते थे वो मेरी खातिर, सोता था मैं भूल उनको। गिरा जब अर्श से नीचे, संभाला उनने ही था।। . भूल कर फिर उनको, दगा

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वो इक कराह... जिससे दिल महक उठा

19 सितम्बर 2022
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दौड़ता हूं अंतहीन राहों पर, बेतरतीब-बेइन्तहां.... थक जाता हूं दौड़कर जब, बैठ जाता हूं उन्हीं राहों पर.... करके बंद आंखें, फिर देखता हूं वो सब.... जो खुली आंखों से, देख न पाया कभी.... खामोशी के

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नमाजी

19 सितम्बर 2022
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आता हूं रोज दर पर नमाजी बनकर, मिलते हैं कुछ नमाजी तो कुछ समाजी। . कुछ करते दिखते इबादत उसकी, कुछ करते दिखते हूज़ूरे इबलिस। . रोता हूं उनकी खातिर, जिनका मुझसे न कोई वास्ता। देखता हूं जब मैं उनक

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अज़ान

19 सितम्बर 2022
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अज़ान निकलती है दिल से बिना किसी आवाज़, जो सुन लेता है वो खुदा, जो कभी अज़ान है तो कभी सांस है मेरी.... 

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जरूरत है खुदा की हमें, काफि़र के कुफ्र की नहीं...

19 सितम्बर 2022
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दिले नादां कहता है, कभी काफिर बनकर तो देख, तुझे मजा न दिला दूं तो फिर कहना। . बन बैठा काफिर शैतां के कहने पर जब-जब, रोया ज़ार-ज़ार खूँ के आँसू दिल मेरा तब-तब। . मिल न सका वो सूकूं दिल को कभी, क

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खुदा का खेल

24 सितम्बर 2022
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हर घडी मिलता हूँ, अपने उस खुदा से… छुपकर जब वो देखता है, मुझे खिड़कियों से… खोलता हूँ एक दम, जब खिड़कियों को … छुप जाता है वो उसी पल, तभी झांकता है वो, सुराखों से, रोशनदानों से, देख देख कर फिर

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पाप

24 सितम्बर 2022
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 मैं साधू सा आलाप कर लेता हूं।  मंदिर में कभी जाप कर लेता हूं।  मानव से देव बन न जाऊं कहीं,  यह सोचकर कुछ पाप कर लेता हूं।  मैं पाप के अंजाम से अंजान नहीं,  अगर मैं पाप न करूं तो इंसान नहीं।  नि

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टूट जाता है दिल

24 सितम्बर 2022
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टूट जाता है दिल ये तब मेरा, बेवफा लोग जब मिलते है, दर्द होता है दिल में तब मुझको, फिर भी दर्द इ दिल का मज़ा मैं लेता हूँ, पूछता हु अक्सर खुद से ही फिर कभी, कही पत्थर दिल ऐसे ही तो नहीं होते....

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देवता और असुर

16 अप्रैल 2023
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देवता और असुर, ये दोनों थे अनेक,  अपनी शक्ति का उपयोग, करते थे दोनों चेतना से नेक। देवता सत्य, निष्कपट और निष्काम, असुर माया, मोह और काम में उलझे रहते थे व्यापक आराम। देवताओं की सभा में न्याय और श

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