अनजान समझा जिन्हें,
वो मेरा अपना ही था।
दर्द गहरे थे उनको,
जख्म अपना ही था।।
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रोते थे वो मेरी खातिर,
सोता था मैं भूल उनको।
गिरा जब अर्श से नीचे,
संभाला उनने ही था।।
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भूल कर फिर उनको,
दगा करा मैंने।
जख्म खुद को देकर,
हरा किया मैंने।।
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रोये वो मेरी खातिर,
दवा दी मुझको।
जुल्म सहे खुद पर,
रज़ा दी मुझको।।
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अनजान समझा जिन्हें,
वो मेरा अपना ही था।
दर्द गहरे थे उनको,
जख्म अपना ही था।।