बहुत समय पहले की बात है, रामपुर गांव में ननकू और उसकी पत्नी गुलाबवती रहते थे। ननकू को जमींदार के खेतों पर काम करक जो रूखा-सूखा मिलता था, उससे ही गुजारा चलता था। उसकी पत्नी गुलाबवती भगवान शिव की अनन्य भक्त थी, शिव के आर्शीवाद से ही बांकेलाल का जन्म हुआ था, लेकिन उसकी एक शरारत से क्रोधित होकर शिव ने उसे शाप दिया था कि तू हमेशा ही शरारते करता रहेगा लेकिन गुलाबवती के गिड़गिड़ाने पर उन्होंने कहा - मेरा शाप तो नहीं मिट सकेगा लेकिन बांकेलाल जो भी शरारते करेगा, उससे उसे अपयश के बजाए यश और धन की प्राप्ति होगी और इससे ही उसका जीवनयापन होगा। इसी तरह शरारते करते और यश और धन कमाते हुए बांकेलाल जवान हो गया। एक बार उसकी शरारत के कारण गांव के लोग भयानक बाढ़ से बचे। जब विशालगढ़ के राजा विक्रमसिंह को बांकेलाल के कारनामों की खबर मिली तो उन्होंने अपने मंत्री धर्मसिंह को भेजकर बांकेलाल को बुलवाया और उसे अपने महल में ही रहने का प्रस्ताव दिया। महल में पहुंचते ही बांकेलाल की नजर सदा विक्रमसिंह की राजगद्दी पर बन गई और उसका दिमाग राजा के खिलाफ शरारतों के लिए कुलबुलाने लगा।
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