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डाक टिकटों की कहानी

जितेन्द्र गढ़वीर

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डाक टिकट चिपकने वाले काग़ज़ से बना एक साक्ष्य है, जो यह दर्शाता है कि डाक सेवाओं के शुल्क का भुगतान हो चुका है। आमतौर पर यह एक छोटा आयताकार काग़ज़ का टुकड़ा होता है, जो एक लिफाफे पर चिपका रहता है, जो यह यह दर्शाता है कि प्रेषक ने प्राप्त कर्ता को सुपुर्दगी के लिए डाक सेवाओं का पूरी तरह से या आंशिक रूप से भुगतान किया है। डाक टिकट, डाक भुगतान करने का सबसे लोकप्रिय तरीका है; इसके अलावा इसके विकल्प हैं, पूर्व प्रदत्त-डाक लिफाफे, पोस्ट कार्ड, हवाई पत्र आदि। डाक टिकटों को डाक घर से ख़रीदा जा सकता है। इनके संग्रह को 'डाक टिकट संग्रह' या 'फ़िलेटली' कहा जाता है। डाक टिकट इकट्ठा करना मानव के कई शौक़ों में से एक है। इतिहास सबसे पहले इंग्लैंड में वर्ष 1840 में डाक-टिकट बेचने की व्यवस्था शुरू की गई। हालाँकि इसके पहले ही डाक वितरण व्यवस्था शुरू हो चुकी थी, परंतु पत्र पहुँचाने के लिए पत्र भेजने वाले को डाक घर तक जाना ही पड़ता था। पहले किसी भी पत्र भेजने वाले को डाक घर जाकर पत्र पर पोस्ट मास्टर के दस्तख्त करवाने पड़ते थे पर डाक-टिकटों के बेचे जाने ने इस परेशानी से मुक्ति दिला दी। जब डाक-टिकट बिकने लगे तो लोग उन्हें ख़रीद कर अपने पास रख लेते थे और फिर ज़रूरत पड़ने पर उनका उपयोग कर लेते थे। 1840 में ही सबसे पहले जगह-जगह लेटर-बॉक्स भी टाँगे जाने लगे ताकि पत्र भेजने वाले उनके जरिए पत्र भेज सकें और डाक घर जाने से छुट्टी मिल गई। पहले पत्र भेजने में कई प्रकार की दिक्कतें पेश आती थीं, लेकिन आज पत्र भेजना आसान हो गया है। अब तो संदेश भेजने के लिए पत्र से बहुत तेज़ सुविधाएँ भी हमें उपलब्ध हैं। पहला डाक टिकट विश्व में पहला डाक टिकट आज से लगभग डेढ़ सौ साल से पहले ब्रिटेन (इंग्लैंड) में जारी हुआ था। उस समय इंग्लैंड के राजसिंहासन पर महारानी विक्टोरिया विराजमान थीं, इसलिए स्वाभाविक रूप से इंग्लैंड अपने डाक टिकटों पर महारानी विक्टोरिया के चित्रों को प्रमुखता देता रहा। पहले डाक टिकटों पर रानी विक्टोरिया के चित्र छपने के कारण वहाँ की महिलाओं में अपनी रानी के चित्र वाले डाक टिकटों को इकट्ठा करने का जुनून सवार हो गया। ये महिलाएँ ही डाक टिकट संग्रह के शौक़ की जननी बनीं। इंग्लैंड में राजा विलियम प्रथम (सन 1066-1087) से राजशाही का दौर चला आ रहा है। विश्व का पहला डाक टिकट 1 मई, 1840 को ग्रेट ब्रिटेन में 

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