विधायक जी ने कहा - बेटी धरा ! आज मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हूं । भगवान सभी को ऐसी बेटी दें । मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं और इसीलिए तुम्हारी मां का इलाज मैं करवाऊँगा । उसका पूरा खर्च भी मैं उठा लूंगा लेकिन तुम्हारी इजाजत लेना चाहता हूं क्योंकि प्रिंसिपल सर ने मुझे बताया था कि तुम बहुत स्वाभिमानी हो । मैं तुम्हारी पढ़ाई के लिए भी मदद करने को तैयार हूं ।
धरा की आंखों में एक उम्मीद की रोशनी झिलमिला उठी और वह अपनी मां के इलाज के लिए तैयार हो गई । विधायक जी की मदद से धरा की मां का शहर के सबसे बड़े डॉक्टर से इलाज शुरू हुआ पर डॉक्टर ने कहा कि इनको हॉस्पिटल में रहना होगा और आप यही उनसे आकर मिल सकती हैं । उस दिन धरा बहुत रोई , इतने सालों में हालात कैसे भी रहे पर वह कभी मां से अलग नहीं हुई ,अब कैसे रहेगी ।
फिर अज्जी ने उसे समझाया कि हॉस्पिटल में ही उसका सही इलाज हो पाएगा और देखभाल भी और वह भी निश्चिंत होकर पढ़ाई कर सकेगी । अपने मन को कड़ा करके धरा ने मां को हॉस्पिटल भेज दिया ।
हफ्ते भर उसके पेट में ढंग से खाना नहीं गया । हर वक्त माँ.. माँ.. करती रहती । खुद अजी का भी मन नहीं लग रहा था । बेटी के जैसे इतने सालों से उसे संभाला था। वह धरा से बोली - तू झूठ कहती थी धरा कि मैं 30-35 की लगती हूं सच तो यह है कि अब मैं बूढ़ी हो गई हूं । धरा खिड़की से बाहर झाँकती रही , कोई जवाब नहीं दिया ।
तभी किसी की आवाज आएई "धरा का तो पता नहीं अज्जी पर आप बिल्कुल बुड्ढी नहीं हो.. अपनी कसम !अज्जी हैरान थी ..यह कौन है और इतने हक से घर में कैसे घुस आया और मेरे सवाल का जवाब भी दे रहा है ।
धरा भी उसकी आवाज सुन कर पलटी... वह भी उसे नहीं पहचानती थी । धरा और अजी को यूं हैरान होता देख लड़का बोला - अरे . अरे ! आप दोनों मुझे ऐसी नजरों से क्यों देख रही हैं ? मैं कोई चोर उचक्का, सेल्स बॉय, डिलीवरी बॉय नहीं हूं ।
"तो कौन हो ? और बिना पूछे अंदर कैसे आए ?"
धरा ने पूछा तो बोला - अरे मैडम ! दरवाजा खुला था और कोई दिखा नहीं तो किस से पूछता , चला आया अंदर और अपने पैरों पर । बाय द वे आप लोग मुझे और कुछ समझे इससे पहले मैं बता दूं कि मेरा नाम अनुज है और मुझे प्रिंसिपल सर ने भेजा है । वैसे मैं उनका भतीजा हूं, कल ही यहां आया और देखो ना आज ही काम पकड़ा दिया । वैसे आप काफी फेमस हो यहां पर ।
अज्जी को तो उसकी बातों पर हंसी आ गई पर धरा शांत रही और बोली- राम कथा सुनाने से अच्छा है यह बताओ कि यहां क्यों आए हो ?
"आया नहीं मिस ! भेजा गया हूं ।"
" हां हां वही ..! सर ने किस लिए भेजा है ?"
" हां ! अब सही पूछा है । वह क्या है कि चाचा जी ने कहा कि आपको बता दूं कि डॉक्टरी के प्रवेश के परीक्षा की अंतिम तिथि खत्म होने वाली है तो आप कॉलेज जाकर अपना फार्म भर दें वरना आप तो जानती हैं ...।"
धरा को याद आया कि उसे प्रवेश परीक्षा फॉर्म भरना था । वह बोली - सर को थैंक यू कहना ..मैं कल ही आकर फॉर्म भर्ती हूं ।
"वाह मैडम ! थैंक यू तो मेरा भी बनता है, इतनी दूर चल कर बताने आया , इतने बड़े-बड़े सवाल झेले और ना बैठने को कहा, ना एक गिलास पानी ही पूछा ।"
तब अज्जी बोली - अच्छा बैठो मैं पानी लाती हूं । पर धरा उसे बिल्कुल तवज्जो नहीं दे रही थी और उसे छोड़ वह पढ़ने चली गई ।
पानी पीकर अनुज बोला - अज्जी एक बात पूछूं, अगर आप नाराज ना हो तो ?
वह बोली हां पूछो....
" ये धरा जी बचपन से ही ऐसी है क्या.. खूंखार.."
" मतलब ?"
"अरे नहीं अज्जी ! आप कितने स्वीट हो और वह कांटों का ताज ।"
" बेटा वह ऐसी ही है , हंसना तो जैसे भूल गई है। जबसे उसकी मां हॉस्पिटल गई और भी परेशान है । उसकी बातों का बुरा मत मानना ।"
" ओह सॉरी अज्जी ! मुझे मालूम नहीं था ।"
अनुज धरा से मिलकर लौटा , पर अपना दिल वही छोड़ आया । जब उसे धरा की पूरी कहानी पता चली तब तो उसने यही तय कर लिया कि धरा को खुश रखना है, उसके चेहरे की मुस्कान वापस लानी है और उसे अपना बनाना है । उसने भी जिद करके मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपने घरवालों को मनाया ।
धरा और अनुज दोनों ने ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर ली और संयोग से दोनो को एक ही कॉलेज मिला । अब तो अक्सर धरा का सामना अनुज से हो जाता पर अनुज हमेशा ख्याल रखता कि धरा के आत्म सम्मान को चोट न पहुंचे ।
धीरे-धीरे अनुज और धरा की दोस्ती हो गई और धरा भी अब खुश रहने लगी । अनुज हमेशा उसकी मदद करता । धरा हर हफ्ते अपनी मां से मिलने हॉस्पिटल जाती और बहुत देर तक उनके साथ रहती । धरा की मां भी धीरे- धीरे ठीक हो रही थी । 1 दिन अनुज ने धरा से कहा कि वह भी उसके साथ हॉस्पिटल जाना चाहता है, उसकी मां से मिलने तो धरा मान गई और अगले शनिवार धरा अनुज को लेकर अपनी मां से मिलने पहुंची । थोड़ी देर में धरा की मां आई और दोनों को एक साथ देख कर मुस्कुरा उठी । वो धरा के कान में जाकर बोली - तुम्हारा पति तो बहुत अच्छा है, बिल्कुल मेरे पति जैसा । वह जब आएगा ना तो मैं उसे बताऊंगी इसके बारे में ।
यह बात सुन धरा के जख्म जैसे हरे हो गए, उसकी आंख भर आई । वह तुरंत वहां से चली गई, उसने अनुज का भी इंतजार नहीं किया ।
अनुज उसके पीछे- पीछे किसी तरह बस में बैठा ।
"धरा क्या हुआ ? तुम ऐसे क्यों चली आई ? "
धरा ने उसे कहा - आज से मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम अपना रास्ता देखो ! मेरी मंजिल अलग है ।
"धरा मै.अपना रास्ता नहीं बदलूंगा और मेरी मंजिल तुम हो .. जहां तुम हो वही मैं हूं "।
"क्या मिलता है तुम लोगों को किसी के साथ खिलवाड़ करके हां ? क्या मिलता है ? अरे टाइम पास ही करना है ना तो किसी ऐसे को चुनो जो तुम्हारे जैसा हो ।"
जरा तुम क्या बोले जा रही हो ? एक बात कान खोलकर सुन लो साफ-साफ , मैं तुमसे प्यार करता हूं , कोई टाइम पास नहीं और यह बात तुम चाहे जहां कहलवा लो मैं पीछे नहीं रहूंगा । और एक बात तुम नहीं तो कोई नहीं ...।
मुझे यह सब बकवास नहीं सुननी... मैं बस इतना चाहती हूं कि आज से मेरे सामने मत आना अनुज ।
धरा की बात सुन अनुज बहुत अपसेट हो गया था । उसने कहा - ठीक है ! मैं नहीं आऊंगा तुम्हारे सामने, रह लूंगा जिंदगी भर दूर , पर एक बात हमेशा याद रखना जिस दिन तुमसे प्यार हुआ , उस दिन से लेकर मेरी आखरी सांस तक मैं तुमसे ही प्यार करूंगा और तुम्हारा इंतजार करूंगा ।
यह कहकर अनुज अगले स्टॉप पर उतर गया । धरा बहुत रोई उस दिन । अनुज उससे नाराज भी था पर क्या करता वह उससे बहुत प्यार जो करता था इसलिए उसने उसकी बात का मान रखा ।
धरा अनुज को कैसे समझ आती कि, उसे डर था कि जिस दर्द ने उसकी मां को पागल बना दिया था उसी दर्द से उसे भी गुजरना पड़ सकता था और इसीलिए वह अनुज को खुद से दूर करना चाहती थी ।
कॉलेज में जब भी कभी धरा और अनुज आमने सामने होते तो अनुज तुरंत वहां से चला जाता हालांकि यह बात धरा ने हीं कही थी पर अब उसे ही यह बुरा लगता है । एक दिन वह घर में गुमसुम बैठी थी तो अज्ज जी आई और बोली - धरा ! क्या बात है बेटा ? देख रही हूं कई दिनों से तू उखड़ी - उखड़ी रहती है ..ना ठीक से खाती है ना पीती है .. ऐसा क्या हो गया जो तूने मुझको भी बताना जरूरी नहीं समझा ।
अज्जी की बात सुन धरा रो पड़ी । उसने अज्जी को सारी बात बताई । धरा की बात सुन अज्जी बोली -बेटा तेरा डर बिल्कुल जायज है पर जरूरी नहीं कि हर बार वही हो... यह भी तो हो सकता है कि वह तेरा दामन खुशियों से भर दे । और जहां तक मैं समझती हूं , वह सच में तुमसे बहुत प्यार करता है और मुझे नहीं लगता वह तुम्हें धोखा देगा ।
" अज्जी ! माँ ने भी यही सोचा होगा उस वक्त पर उनके साथ क्या हुआ ? सारी जिंदगी पागलपन में गुजार दी और वह आज तक नहीं लौटे ।"
"बेटा तभी तो कहती हूं कि वह आया ही नहीं ...क्या पता क्यों नहीं आया....? फिर भी सावधानी रखनी चाहिए। अगर उसे शादी करनी हैं तो पूरे रीति-रिवाज से, घरवालों और समाज के सामने तुझे अपनी दुल्हन बनाए तो कोई बुराई नहीं है । तू कहे तो मैं बात करूं ?"
"नहीं नहीं अज्जी !!!! हमारे और उसके बीच जमीन आसमान का फर्क है , ऐसा कभी नहीं हो पाएगा ...। और अज्जी जब तक माँ ठीक हो कर घर नहीं आएंगीं और वह नहीं कहेंगे कि , "हां धरा यह लड़का ठीक है, कर ले शादी" तब तक तो बिल्कुल भी नही ।"
"बेटा यह क्या जिद है ? तुम्हारी मां पता नहीं कब..
.?"
"अज्जी ऐसा मत कहो ! वह ठीक होकर घर आएंगीं ,मेरी शादी करवाएगी , मुझे यकीन है और आपको भी होना चाहिए ! उससे पहले कुछ नहीं । वह उठकर अज्जी के गले लग गई । अज्जी भी प्यार से उसे सहलाने लगी ।
वह दिन और आज का दिन धरा और अनुज दूर ही रहे एक दूसरे से । अनुज ने अपना वादा दिल से निभाया । धरा भी उसे प्यार तो करती थी पर इससे कहीं ज्यादा वह अपनी मां से प्यार करती थी । अनुज ने अपने घर में सबको बता दिया कि वो धरा से ही शादी करेगा वरना नहीं करेगा ।
दोनों का इंतजार रंग लाया... धरा की मां ठीक हो कर घर आ रही थी ।अज्जी और धरा की खुशी का ठिकाना नहीं था ।
अज्जी ...!! अज्जी...!! धरा की आवाज से अज्जी का ध्यान टूटा ।
"अरे ! वो लोग आते ही होंगे . जल्दी-जल्दी सब कर ।"
दरअसल धरा की मां को लेने अनुज और उसके चाचा जी गए थे । धरा ने कहा कि वह घर में अपनी मां का वेलकम करेगी और अज्जी भी ।
हॉस्पिटल में जब धरा की मां ने धरा को नहीं देखा तो अनुज से पूछा तो उसने बताया - आंटी वो आपके इंतजार में पागल हुई जा रही है , उसके आंसू नहीं थम रहे थे
इसीलिए नहीं आई और अज्जी का भी यही हाल है । रास्ते में अनुज और धरा की मां, धरा के बारे में ही बातें करते आए । अनुज जो भी जानता था धरा के बारे में वह सब उसने , उनको बताया ।
धरा की मां बोली - तुम धरा को पसंद करते हो ना ?"
अनुज इस बात पर चुप सा हो गया ।
" कुछ बोलो ना ?"
"आंटी ! मै धरा से प्यार करता हूं और शादी भी करना चाहता हूं । मैंने तो अपने घर वालों को भी मना लिया है पर पता नहीं क्यों उसे मुझ पर भरोसा नहीं , पता नहीं क्यों वह प्यार के नाम से ही भागती है ।"
" बेटा मैं जानती हूं ! कौन सा डर उसे सता रहा है? पर तुम फिकर ना करो मैं उसे समझा दूंगी थोड़ी ही देर में घर के सामने गाड़ी ने हॉर्न बजाया तो, धरा का दिल धक् से कर उठा । उसकी धड़कने बढ़ने लगी ।
अज्जी तो जल का लोटा लेकर निकली और गाड़ी के चारों तरफ जल डालकर धरा की मां को गाड़ी से उतारा और अंदर ले आई । धरा घर के अंदर ही दिल थामें बैठी रही । आंखें लगातार बरस रही थी , तभी उसके कंधे पर एक छुअन महसूस हुई ।
धरा झट से पीछे पलटी, सामने उसकी मां खड़ी थी मुस्कुराती हुई । उनकी भी आंखें भर आई । दोनों तरफ भावनाओं की नदी बह रही थी जिसमें शब्द खो गए थे । अज्जी और अनुज चुपचाप दूर खड़े देख रहे थे ।
मां बेटी के इस मिलन को वह इसमें कोई दखलंदाजी नहीं करना चाहते थे । कुछ देर तक यूं ही दोनों एक दूसरे को निहारते रहे तब धरा की माँ ने उसके माथे को चूमते हुए कहा - कैसी है मेरी बच्ची ? मेरी धरा.. मेरी बेटी...! और उन्होंने यह कहकर धरा को गले से लगा लिया ।
दोनों मां बेटी जी भर कर रोई । इन आंसुओं का बह जाना ही अच्छा था ...22 सालों का दर्द और घुटन समाया था ।
इतने मे अज्जी बोली - अरे हम भी खड़े हैं बेटा ! हमने भी बहुत इंतजार किया है तो वह उनके भी गले लग गई ।
अनुज खड़ा यह सब देख रहा था । उसे समझ आ गया था कि धरा ने क्यों उसे ऐसा कहा था । आज उसे अपने प्यार और अपनी पसंद दोनों पर गर्व हो रहा था ।
तभी धरा की माँ , धरा से बोली - बेटा हमारा इंतजार तो खत्म हो गया पर कोई और है जो अभी भी तुम्हारा इन्तजार कर रहा है । अब और देर ना करो बेटा
"मैं समझी नहीं मां !"
"बेटा ! पूरे रास्ते अनुज तुम्हारी ही बातें करता रहा । उसने बताया कि तुम दोनों का कोई झगड़ा हो गया है और तुम उससे बात भी नहीं करती । बेटा मैं समझ सकती हूं तुम्हारे डर की वजह पर मुझे लगता है अनुज का प्यार सच्चा है, वह तुम्हें बहुत खुश रखेगा और कभी धोखा भी नहीं देगा ।
अनुज बोला - धरा ! अब तो माँ ने भी कह दिया, अब तो हां कर दो !..
घरा बोली - पूरे रास्ते मां को मक्खन लगाते आए हो . वो तो तुम्हारी तारीफ करेंगी ही ।
" देखो धरा ! तुम अब अपने वादे से मुकर रही हो.. यह चीटिंग है ।"
"ठीक है ! ठीक है! अब मां कह रही है तो मैं ना कैसे कर सकती हूं , पर अभी मुझे तुम थोड़ा वक्त दो ..मैं मां के साथ रहना चाहती हूं , उनके लिए कुछ करना चाहती हूं ।"
"तुम इत्मीनान रखो धरा मैं वादा करता हूं मैं कभी तुम्हें तुम्हारी मां से दूर नहीं करूंगा ।"