इतने मे अज्जी खीर लेकर आई और सबको देते हुए बोली - आज हमारे घर में दो-दो खुशियां आई हैं तो यह रोना - धोना छोड़ कर सब मुंह मीठा करो ।
आज धरा की मां उसकी जिंदगी में लौट आई और धरा अनुज की जिंदगी में ,अब सब ठीक हो गया है ।
धरा की मां के आने के बाद से धरा कि जिंदगी एकदम बदल गई । अब वह मन लगाकर पढ़ने लगी थी । अनुज और धरा दोनों ने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की और उसके बाद फिर शादी की । पर इसके बाद भी वह दोनों अपना सपना , अपना मकसद नहीं भूले । वह दोनों गांवों और स्लम बस्तियों में जाते और वहां के गरीब लोगों का इलाज करते । वह उनकी हर तरह से मदद करते ।
धरा जानती थी कि छोटी सी मदद कितनी महत्वपूर्ण होती है क्योंकि ऐसी एक मदद से उसको और उसकी मां को नई जिंदगी मिली थी ।
धरा ने "अज्जी आश्रम" के नाम से एक ऐसी संस्था बनाई जहां लाचार और मजबूर लड़कियों और महिलाओं को रखा जाता और उनको पढ़ा लिखा कर हर तरह से सक्षम बनाया जाता, उनकी मदद की जाती ।
इस काम में अनुज और उसका परिवार भी धरा की पूरी मदद करता । आज धरा अपना नाम सार्थक करते हुए हजारों लड़कियों और महिलाओं की मुस्कुराहट की वजह बन चुकी थी साथ ही वह अपने जैसी कई और धरा भी तैयार कर रही थी ।
समाप्त
कहानीकार - विद्या शर्मा
(फरीदाबाद हरियाणा )
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