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धरा भाग 1

25 अप्रैल 2023

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आज वह घर आ रही थी पूरे 2 साल बाद , पूरी तरह ठीक होकर ,अपने पूरे होशो हवास में । धरा की बेचैनी शब्दों की मोहताज नहीं रह गई थी । वह उसके चेहरे और उसकी बातों से बरबस छलक पड़ती थी ।

"अज्जी ! वह मुझे कैसे पहचानेगीं ? उसे कुछ याद होगा कि नहीं ?" धरा अनेकों तस्वीरों में अपनी मां के साथ खुद को बेचैनी से ढूंढती । बीच-बीच में वह अपनी अज्जी से सवाल भी करती जा रही थी - अज्जी बोलो ना ! आज क्या पहनूँ? अज्जी खीर बन गई ना ? अज्जी यह चादर कब बदलेगी ? पर अजी पर उसकी  बातों का असर नहीं हो रहा, वह चुपचाप मुस्कुराती हुई अपने काम में लगी थी ।

           धरा अज्जी के गले में बाहें डाल कर , किसी छोटी बच्ची की तरह बोली - अज्जी बोलो ना ! ऐसे चुप क्यों हो ? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा क्या करूं ?"

           "22 सालों से तुझे देखती आ रही हूं , पाल पोस कर बड़ा किया है पर इतनी बेचैन कभी नहीं देखा । हमेशा शांत रहती, तभी तो तेरा नाम धरा रखा पर आज कैसी बावली हुई जा रही है ।

            1 महीने की थी जब तू तेरी मां के साथ मुझे मिली थी अस्पताल में तब से .....!! "

            " अज्जी कितनी बार तो सुना चुकी हो ये कहानी अब नहीं सुननी ।"

            " हां हां मत सुन ! अब तो तू कहेगी ही , मैं बूढ़ी जो हो गई हूं ।"

            "अरे मेरी प्यारी अज्जी ! बूढ़े हो आपके दुश्मन आप तो अभी भी 30 - 35 से ज्यादा की नहीं लगती हो । अच्छा बताओ ना अज्जी ? वो मुझे पहचान तो लेंगीं ना ?

            " सालों तक मां बनकर तूने उसे पाला है । पहचानेगी कैसे नहीं .....यह कहते-कहते अज्जी की आंखें भीग गई ।"

            अजी की बातें सुन धरा खुशी से झूम उठी और फिर से घर को संवारने में लग गई पर अज्जी 22 साल पहले की उस रात में खो गई ।

            22 साल पहले .....

     सिस्टर अंजना का आज रिटायरमेंट है पर वह कोई समारोह ना करके सादगी से अपने ड्यूटी करते हुए यह दिन बिताना चाहती थी । पति की मौत के बाद अंजना का इकलौता बेटा ही उसका एकमात्र सहारा था लेकिन जब इकलौता बेटा विदेश गया तो वही का होकर रह गया । इकलौते बेटे की जुदाई का गम और अकेलापन उन्हें काटने लगा तो ऐसे में नर्सिंग की डिग्री उनके काम आई और उन्होंने अस्पताल में बतौर नर्स काम करना शुरू किया और इस तरह से मन लगाकर मरीजों की सेवा की कि इतने सालों में अस्पताल का हर मरीज और स्टाफ उनका अपना परिवार बन चुका था । उनसे एक बड़ा ही प्यारा और मानवीय रिश्ता भी बन चुका था । सब उन्हें प्यार से अज्जी कहते ।

     आज उनके रिटायरमेंट के दिन हर कोई उन्हें स्पेशल फील करवाना चाहता था लेकिन वह इन सब से दूर रह बस अपनी ड्यूटी कर रही थी ,जैसे रोज करती थी ।

     आज उन्होने सुबह से पांच डिलीवरी कराई थी और इत्तेफाक देखो पांचों लड़के पैदा हुए । सिस्टर अंजना को बधाई और बहुत से उपहार मिले । 4:30 बज चुके थे , आधे घंटे और बचे थे सिस्टर अंजना के इस हॉस्पिटल में तभी एक लड़का , एक लड़की के साथ आया और बोला -  सिस्टर ! यह मेरी पत्नी है इन्हें लेबर पेन हो रहा है ,प्लीज सिस्टर इन्हें देखिए ।

     सिस्टर अंजना भला कहां पीछे हटने वाली थी । उन्होंने तुरंत उस लड़की को दाखिल कर लिया और लड़के को सारी कागजी कार्रवाई पूरी करने को कहा । लड़के ने सारी कार्रवाई पूरी कर , पैसे भी जमा कर दिये और बोला - मैं अपने घर वालों को लेकर आता हूं ।

      इस बीच उस लड़की ने एक प्यारी सी लड़की को जन्म दिया । खूबसूरत इतनी की अज्जी के मन में उसी वक्त खयाल आया  "काशी !  मेरी बेटी या पोती होती ।"

       बच्चे रो नहीं रही थी डॉक्टर और अज्जी ने बहुत कोशिश की पर वह बच्ची नहीं रोई , बस टुकुर - टुकुर देखती जा रही थी ।

       डॉक्टर ने कहा - बच्ची स्वस्थ है चिंता की बात नहीं , पर बच्चे की मां को होश नहीं आ रहा है । कुछ देर बाद बड़ी मुश्किल से तो उसे होश आया पर वह बेहद कमजोर थी और बार-बार अपने पति को पूछ रही थी.." शशांक कहां है ? वह कब आएगा ?"

        दिन बीता, हफ्ते बीते लेकिन वह नहीं आया । अस्पताल में उसने जो नाम, पता और नंबर लिखवाया था वह भी गलत था । जब उस लड़की को पता चला की उसका पति तीन हफ्तों से उससे मिलने नहीं आया, ना ही उसका कुछ पता चल पा रहा है तो वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठी ।

         रिटायर होने के बाद भी अज्जी  रोज हॉस्पिटल आ जाती और उन दोनों की देखभाल करती । बच्ची अक्सर भूखी रह जाती क्योंकि उसकी मां को इस बात को होश नहीं रहता कि बच्ची ने दूध पिया या नहीं । फिर भी वह बच्ची नहीं रोती, बस मुस्कुराती रहती इसीलिए अज्जी ने उसका नाम 'धरा' रख दिया । सारा स्टाफ भी उसे इसी नाम से बुलाता था । बहुत छानबीन की गई पर बच्चे के पिता या परिवार का कोई पता नहीं चला पर अस्पताल में उसे बहुत दिनों तक नहीं रखा जा सकता था इसलिए सब ने तय किया कि उसे किसी नारी निकेतन में भेज दिया जाए और बच्चे को अनाथालय में भेजा जाए । पर उस छोटी बच्ची की टुकुर-टुकुर आंखें अज्जी के दिल में घर कर गई उन्हें यह बात बेहद तकलीफ दे रही थी कि यह बच्चे और उसकी मां एक अनाथ वाली जिंदगी जिएंगे । उन्होंने मन ही मन फैसला लिया कि जब तक इस बच्ची का परिवार नहीं मिल जाता तब तक वह उन दोनों की देखभाल करेंगी ।

         धरा और उसकी मां के आने से अज्जी का जीवन ही बदल गया । वह सच में 30 35 की उम्र वाली फुर्ती से अब सब काम करने लगी है साथ में धरा की मां की भी देखभाल करती ।

         अज्जी इस बीच कई डॉक्टरों से मिली पर धरा की मां की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ । धरा जैसे - जैसे बड़ी होने लगी अपने नाम को सार्थक करने लगी । अज्जी ने उसे बचपन से ही सारी बातें बता रखी थी पर उन्हें धरा से इतना लगाव था कि वह मन ही मन प्रार्थना करती की धरा को लेने कभी कोई ना आए ।

          बेटे के जाने के बाद जो तकलीफ हुई थी उसका दर्द धरा के आने से खत्म हो गया था । धरा जैसे-जैसे बड़ी होने लगी उसने अपनी मां का ख्याल रखना शुरू कर दिया। छोटी सी उम्र में ही वह मां के सारे काम करती हैं उन्हें नहलाती , खाना, दवाइयां सब ....पता ही नहीं लगता की वो बेटी है या मां । अब तो अज्जी डांट भी लगा देती " क्या अज्जी !   शुगर की दवा अब तक नहीं ली ? क्या करूं मैं आपका ? मैं एक नन्ही सी जान , दो दो मांओं को कैसे संभालूं ?

           अज्जी उसकी इस बात पर हंसने लगती । धरा पढ़ने में भी बहुत होशियार थी, उसे इस बात का अहसास था कि उसके ऊपर अपनी मां के साथ- साथ अज्जी की भी जिम्मेदारी है । अब वह भी उम्र की ढलान पर थी ।

            धरा 9 साल की थी तब एक दिन किसी ने उसके पिता के बारे में पूछ लिया था तब वह बड़ी समझदारी से बोली -  जब वह आएंगे तब मिला दूंगी । पर उसका दिल जानता था कि उन्हें आना होता तो वह उसे छोड़कर ही क्यों जाते । अज्जी ना होती तो क्या होता ? इसलिए तो वह अज्जी का बहुत ख्याल रखती और उनकी हर बात मानती । धरा के अंदर आत्म सम्मान भी कूट-कूट कर भरा था ।

             बचपन से ही वह पढ़ाई के साथ-साथ कुछ ना कुछ बनाती रहती और उन्हें बेचकर जो पैसे मिलते हैं उन्हें इकट्ठा करती जाती । अज्जी को उनका बेटा कभी कभार पैसे भेजता था और अज्जी रिटायरमेंट के बाद भी आसपास के मोहल्ले में डिलीवरी करवाने जाती या गर्भवती महिलाओं की जांच करती है तो जो उससे पैसे मिलते उसी से घर का खर्च चलता । यह बात धरा बहुत अच्छे से समझती थी

               एक दिन अज्जी कहीं डिलीवरी करवाने गई थी । धरा जब स्कूल से लौटी तो देखा उसकी मां अंदर से दरवाजे को जोर जोर से धक्का मार रही थी क्योंकि अज्जी ने दरवाजा बाहर से बंद कर रखा था ।

               वह बार- बार बोले जा रही थी   "वो आ गए ...वो आ गए... मुझे जाना है । धरा ने जब दरवाजा खोला तो वह धरा को धक्का देकर बाहर की ओर जाने लगी लेकिन धरा ने उन्हें पकड़ लिया तब वह बोली - मुझे जाने दे ! मुझे रोका तो मैं अपनी जान दे दूंगी ।

               मासूम धरा यह सुनकर सहम गई अपनी मां से उसे बहुत प्यार था । भले ही वह अपने होश में नहीं थी, ना ही वह धरा को अपनी बेटी जानती थी पर धरा तो जानती थी कि वह उसकी मां है । उस वक्त अपनी परवाह न करते हुए धरा ने मां को जोर से पकड़ लिया । धरा की मां ने खुद को छुड़ाने की बहुत कोशिश की और धरा को बहुत मारा भी पर धारा की पकड़ जरा भी ढीली नहीं हुई । वह मां को पीछे की तरफ खींचती गई और खींचते - खींचते गिर गई पर उसने मां को नहीं छोड़ा ।

               कुछ ही देर में अज्जी आई और सब देखा तो जल्दी से धरा और उसकी मां को उठाया । छोटी सी धरा जितने जख्म तन पर थे उससे कहीं ज्यादा उसके मासूम दिल पर ।

               उसने रो-रोकर अज्जी को सारी बात बताई "अज्जी ! आज माँ कहीं चली जाती तो ?"

               "धत् !  कहां जाएगी ? हर कोई उसे जानता है मोहल्ले में , एक घर भी पार नहीं कर पाती सब उसे पकड़ कर वापस लाते । "

               "अज्जी ! अगर चली जाती तो ? "

               अज्जी ने उसे कसकर सीने से लगा लिया । "अज्जी ! मां ठीक नहीं हो सकती क्या ? "

               अज्जी ने हमेशा की तरह इस बार भी धरा से सच बोला ।

               " बेटा ! मेरी गुड़िया! ठीक हो सकती है तेरी मां पर बड़े शहर के बड़े डॉक्टर से इलाज करवाना होगा और...."

               " और हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं ..है ना ?"

               "अज्जी ! वह अमेरिका वाले अंकल, आपके बेटे ,वह हमें उधार नहीं देंगे क्या ?"

               "बिटिया हम किसी के आगे हाथ नहीं फैलायेंगे । जो ठाकुर जी की इच्छा होगी वही होगा..."

               " धरा अपनी मां के पास आई अब तक वो सो गई थी । वह आँसुओ की धार जो उसके गालों पर सूख चुकी थी , धरा के दिल में किसी खंजर के जैसे लग रही थी । धरा ने जो काजल, बिंदी उन्हें लगाकर सहारा था वह सब बिखर गए थे । धरा ने उन्हें धीरे से चादर उढ़ाया । उसे लगा अभी मां उठेगी और कहेगी  'धरा बेटा ! तूने अब तक खाना क्यों नहीं खाया ? कब की आई है स्कूल से और ला तेरे बालों में तेल लगाकर अच्छी सी चोटी बना दूँ .. मेरी लाडो ! मेरी लाडली ! ...और ऐसा कह के मां उसे गले से लगाकर बहुत प्यार करेगी । पर उसका यह सपना आज तलक सपना ही है और पता नहीं कब सच होगा ।

               आज मां की यह हालत देख धरा ने मन ही मन ठान लिया कि वह अपनी मां को ठीक कराके रहेगी ।उस दिन से वह और मेहनत से पढ़ने लगी थी, मां की और अच्छे से देखभाल करती साथ ही अज्जी का भी बहुत ध्यान रखती ।

                सब कहते अज्जी धरा को नहीं , धरा अज्जी और अपनी मां दोनों को पाल रही है । और सच भी था नर्सिंग के कई गुण धरा ने अज्जी से सीख लिए थे । धरा बड़ी हो रही थी और साथ ही बड़ी हो रही थी अपनी मां को ठीक करने की उसकी ख्वाहिश ।

                वह हर साल अपने कक्षा में पहला स्थान लाती जिससे सभी टीचर उससे बहुत खुश रहते और उसकी मदद करते । उसे अब पढ़ाई के लिए फीस की चिंता नहीं थी क्योंकि उसे स्कॉलरशिप जो मिलने लगी थी । अब उसका पूरा ध्यान पढ़ाई पर आ गया था इसी तरह उसने 12वीं में भी मेरिट में जगह बनाई और स्कॉलरशिप हासिल की । यह खबर अखबार में छपी तो अज्जी बहुत खुश हुई पर उन्हें घरा की फिक्र होती । हालातों ने उसे वक्त से पहले बहुत बड़ा बना दिया था । अगर  उन्हें कुछ हो गया तो बेचारी कैसे रहेगी ? अज्जी हमेशा कहती कि कोई अच्छा सा लड़का तुझे पसंद कर ले तो तेरी शादी करवा दूंगी ।

                बस इसी बात पर धारा खफा हो जाती । अज्जी से उसकी बस यही एक लड़ाई थी । उस दिन भी जब धरा अपनी मां को यह खबर पढ़कर सुना रही थी, मोहल्ले की रमिया चाची आई थी और अज्जी से कह रही थी कि अज्जी तू कब तक इसका साथ देगी ? कोई अच्छा सा लड़का ढूंढ कर इस के हाथ पीले कर दे ना । तेरा कुछ पता ठिकाना नहीं, ना इसकी मां का ।

                अज्जी कुछ बोलती इससे पहले ही धरा भड़क गई ..' चाची ये शादी - ब्याह की बात मत किया करो और कोई कहीं नहीं जा रहा, ना अज्जी ना मेरी मां । और चाची आप देखना मेरी मां ठीक होगी, वह मुझे अपनी बेटी कहेगी , आप देखना ।

                कहते-कहते उसका गला भर आया तभी दरवाजे पर किसी ने अज्जी को पुकारा तो वह बाहर आई । बाहर कई सारे लोग खड़े थे और धरा को पूछ रहे थे । शोर सुनकर धरा भी  बाहर आई तो पता लगा कि उसकी मेरिट तो पूरे जिले में थी पर उसने अपने स्कूल में टॉप किया था इसीलिए उसके स्कूल के प्रिंसिपल , उसके टीचर और वहां के विधायक उसका सम्मान करने आए थे । साथ में कुछ मीडिया वाले भी थे ।

                प्रिंसिपल ने उसे बहुत सराहा , लोगों को उससे प्रेरणा लेने के लिए कहा और ₹10000 और एक फूलों का गुलदस्ता दिया ।  विधायक जी ने भी ₹25000 और फूलों का गुलदस्ता दिया । मीडिया के लोग उससे उसके पढ़ाई के साथ-साथ उसके परिवार के बारे में भी सवाल कर रहे थे। एक सवाल के जवाब में जब धरा ने बताया कि वो इन सब का श्रेय अपनी मां और अज्जी को देती है तो सब ने अज्जी और उसकी मां को बुलाने के लिए कहा।

                 धरा जरा भी नहीं हिचकी और गर्व से सर ऊंचा किए अपनी अज्जी और मां को बाहर लाकर सबके सामने बैठाया । उसकी मां को देख सब समझ गए कि वह नॉर्मल नहीं है इसलिए खुसर- फुसर करने लगे ।

                 तब धरा ने माइक उठाया और बोली - आप सब सही समझ रहे हैं । मेरी मां आप लोगों की तरह नॉर्मल नहीं है पर वह दिल की बहुत भोली है, बिल्कुल किसी छोटे बच्चे की तरह । मैं और अज्जी इनका ख्याल रखते हैं । मेरे पिता इस दुनिया में नहीं है ,अज्जी ने हीं मुझे पाल - पोस कर बड़ा किया है । मैं इसलिए इतनी मेहनत से पढ़ाई कर रही हूं ताकि पढ़ - लिखकर कुछ बड़ा करूं, बहुत पैसे कमाऊं और अपनी मां का इलाज कराओ मैं उनके मुंह से यह सुनने के लिए दिन-रात तरसती हूं कि 'धरा ! आ मेरी बच्ची ,मेरी धरा !।'

                 मैं तरसती हूं कि कब वह अपने होशो- हवास में मुझे गले लगाएंगी और मुझे यकीन है वह दिन जरूर आएगा । यह कहते-कहते धरा की आंखें डबडबा आई थी । वह अपनी मां को देख रही थी जो मुस्कुराते हुए ताली बजा रही थी । उसके बाद सभी तालियां बजाने लगे और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच विधायक जी उठे तो सब शांत हो गए हैं ।    

  विधायक जी ने कहा - बेटी धरा ! आज मैं तुम्हारे आगे नतमस्तक हूं । भगवान सभी को ऐसी बेटी दें । मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं और इसीलिए तुम्हारी मां का इलाज मैं करवाऊँगा । उसका पूरा खर्च भी मैं उठा लूंगा लेकिन तुम्हारी इजाजत लेना चाहता हूं क्योंकि प्रिंसिपल सर ने मुझे बताया था कि तुम बहुत स्वाभिमानी  हो । मैं तुम्हारी पढ़ाई के लिए भी मदद करने को तैयार हूं ।

    धरा की आंखों में एक उम्मीद की रोशनी झिलमिला उठी और वह अपनी मां के इलाज के लिए तैयार हो गई । विधायक जी की मदद से धरा की मां का शहर के सबसे बड़े डॉक्टर से इलाज शुरू हुआ पर डॉक्टर ने कहा कि इनको हॉस्पिटल में रहना होगा और आप यही उनसे आकर मिल सकती हैं । उस दिन धरा बहुत रोई , इतने सालों में हालात कैसे भी रहे पर वह कभी मां से अलग नहीं हुई ,अब कैसे रहेगी ।

     फिर अज्जी ने उसे समझाया कि हॉस्पिटल में ही उसका सही इलाज हो पाएगा और देखभाल भी और वह भी निश्चिंत होकर पढ़ाई कर सकेगी । अपने मन को कड़ा करके धरा ने मां को हॉस्पिटल भेज दिया ।

      हफ्ते भर उसके पेट में ढंग से खाना नहीं गया । हर वक्त माँ.. माँ.. करती रहती । खुद अजी का भी मन नहीं लग रहा था । बेटी के जैसे इतने सालों से उसे संभाला था। वह धरा से बोली - तू झूठ कहती थी धरा कि मैं 30-35 की लगती हूं सच तो यह है कि अब मैं बूढ़ी हो गई हूं । धरा खिड़की से बाहर झाँकती रही , कोई जवाब नहीं दिया ।

      तभी किसी की आवाज आएई  "धरा का तो पता नहीं अज्जी पर आप बिल्कुल बुड्ढी नहीं हो.. अपनी कसम !अज्जी हैरान थी ..यह कौन है और इतने हक से घर में कैसे घुस आया और मेरे सवाल का जवाब भी दे रहा है ।

       धरा भी उसकी आवाज सुन कर पलटी... वह भी उसे नहीं पहचानती थी । धरा और अजी को यूं हैरान होता देख लड़का बोला -  अरे . अरे ! आप दोनों मुझे ऐसी नजरों से क्यों देख रही हैं ? मैं कोई चोर उचक्का, सेल्स बॉय, डिलीवरी बॉय नहीं हूं ।

       "तो कौन हो ? और बिना पूछे अंदर कैसे आए ?"

       धरा ने पूछा तो बोला - अरे मैडम ! दरवाजा खुला था और कोई दिखा नहीं तो किस से पूछता , चला आया अंदर और अपने पैरों पर । बाय द वे आप लोग मुझे और कुछ समझे इससे पहले मैं बता दूं कि मेरा नाम अनुज है और मुझे प्रिंसिपल सर ने भेजा है । वैसे मैं उनका भतीजा हूं, कल ही यहां आया और देखो ना आज ही काम पकड़ा दिया । वैसे आप काफी फेमस हो यहां पर ।

       अज्जी को तो उसकी बातों पर हंसी आ गई पर धरा शांत रही और बोली-  राम कथा सुनाने से अच्छा है यह बताओ कि यहां क्यों आए हो ?

       "आया नहीं मिस ! भेजा गया हूं ।"

       " हां हां वही ..! सर ने किस लिए भेजा है ?"

       " हां ! अब सही पूछा है । वह क्या है कि चाचा जी ने कहा कि आपको बता दूं कि डॉक्टरी के प्रवेश के परीक्षा की अंतिम तिथि खत्म होने वाली है तो आप कॉलेज जाकर अपना फार्म भर दें वरना आप तो जानती हैं ...।"

        धरा को याद आया कि उसे प्रवेश परीक्षा फॉर्म भरना था । वह बोली  - सर को थैंक यू कहना ..मैं कल ही आकर फॉर्म भर्ती हूं ।

         "वाह मैडम ! थैंक यू तो मेरा भी बनता है, इतनी दूर चल कर बताने आया , इतने बड़े-बड़े सवाल झेले और ना बैठने को कहा, ना एक गिलास पानी ही पूछा ।"

          तब  अज्जी बोली - अच्छा बैठो मैं पानी लाती हूं । पर धरा उसे बिल्कुल तवज्जो नहीं दे रही थी और उसे छोड़ वह पढ़ने चली गई ।

          पानी पीकर अनुज बोला - अज्जी एक बात पूछूं, अगर आप नाराज ना हो तो ?

          वह बोली हां पूछो....

          " ये धरा जी बचपन से ही ऐसी है क्या.. खूंखार.."

          " मतलब ?"

          "अरे नहीं अज्जी ! आप कितने स्वीट हो और वह कांटों का ताज ।"

          " बेटा वह ऐसी ही है , हंसना तो जैसे भूल गई है। जबसे उसकी मां हॉस्पिटल गई और भी परेशान है । उसकी बातों का बुरा मत मानना ।"

          " ओह सॉरी अज्जी ! मुझे मालूम नहीं था ।"

           अनुज धरा से मिलकर लौटा , पर अपना दिल वही छोड़ आया । जब उसे धरा की पूरी कहानी पता चली तब तो उसने यही तय कर लिया कि धरा को खुश रखना है, उसके चेहरे की मुस्कान वापस लानी है और उसे अपना बनाना है । उसने भी जिद करके मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपने घरवालों को मनाया ।

            धरा और अनुज दोनों ने ही मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर ली और संयोग से दोनो को एक ही कॉलेज मिला । अब तो अक्सर धरा का सामना अनुज से हो जाता पर अनुज हमेशा ख्याल रखता कि धरा के आत्म सम्मान को चोट न पहुंचे ।

            धीरे-धीरे अनुज और धरा की दोस्ती हो गई और धरा भी  अब खुश रहने लगी । अनुज हमेशा उसकी मदद करता । धरा हर हफ्ते अपनी मां से मिलने हॉस्पिटल जाती और बहुत देर तक उनके साथ रहती । धरा की मां भी धीरे- धीरे ठीक हो रही थी । 1 दिन अनुज ने धरा से कहा कि वह भी उसके साथ हॉस्पिटल जाना चाहता है, उसकी मां से मिलने तो धरा मान गई और अगले शनिवार धरा अनुज को लेकर अपनी मां से मिलने पहुंची ।  थोड़ी देर में धरा की मां आई और दोनों को एक साथ देख कर मुस्कुरा उठी । वो धरा के कान में जाकर बोली - तुम्हारा पति तो बहुत अच्छा है, बिल्कुल मेरे पति जैसा । वह जब आएगा ना तो मैं उसे बताऊंगी इसके बारे में ।

             यह बात सुन धरा के जख्म जैसे हरे हो गए, उसकी आंख भर आई । वह तुरंत वहां से चली गई, उसने अनुज का भी इंतजार नहीं किया ।

अनुज उसके पीछे- पीछे किसी तरह बस में बैठा ।

"धरा क्या हुआ ? तुम ऐसे क्यों चली आई ? "

धरा ने उसे कहा - आज से मेरे साथ दोस्ती बढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है, तुम अपना रास्ता देखो ! मेरी मंजिल अलग है ।

"धरा मै.अपना रास्ता नहीं बदलूंगा और मेरी मंजिल तुम हो .. जहां तुम हो वही मैं हूं "।

"क्या मिलता है तुम लोगों को किसी के साथ खिलवाड़ करके हां ? क्या मिलता है ? अरे टाइम पास ही करना है ना तो किसी ऐसे को चुनो जो तुम्हारे जैसा हो ।"

जरा तुम क्या बोले जा रही हो ? एक बात कान खोलकर सुन लो साफ-साफ , मैं तुमसे प्यार करता हूं , कोई टाइम पास नहीं और यह बात तुम चाहे जहां कहलवा लो मैं पीछे नहीं रहूंगा । और एक बात तुम नहीं तो कोई नहीं ...।

   मुझे यह सब बकवास नहीं सुननी... मैं बस इतना चाहती हूं कि आज से मेरे सामने मत आना अनुज ।

   धरा की बात सुन अनुज बहुत अपसेट हो गया था । उसने कहा - ठीक है ! मैं नहीं आऊंगा तुम्हारे सामने, रह लूंगा जिंदगी भर दूर , पर एक बात हमेशा याद रखना जिस दिन तुमसे प्यार हुआ , उस दिन से लेकर मेरी आखरी सांस तक मैं तुमसे ही प्यार करूंगा और तुम्हारा इंतजार करूंगा ।

       यह कहकर अनुज अगले स्टॉप पर उतर गया । धरा बहुत रोई उस दिन । अनुज उससे नाराज भी था पर क्या करता वह उससे बहुत प्यार जो करता था इसलिए उसने उसकी बात का मान रखा ।

       धरा अनुज को कैसे समझ आती कि, उसे डर था कि जिस दर्द ने उसकी मां को पागल बना दिया था उसी दर्द से उसे भी  गुजरना पड़ सकता था और इसीलिए वह अनुज को खुद से दूर करना चाहती थी ।

        कॉलेज में जब भी कभी धरा और अनुज आमने सामने होते तो अनुज तुरंत वहां से चला जाता हालांकि यह बात धरा ने हीं कही थी पर अब उसे ही यह बुरा लगता है । एक दिन वह घर में गुमसुम बैठी थी तो अज्ज जी आई और बोली  - धरा ! क्या बात है बेटा ? देख रही हूं कई दिनों से तू उखड़ी - उखड़ी रहती है ..ना ठीक से खाती है ना पीती है .. ऐसा क्या हो गया जो तूने मुझको भी बताना जरूरी नहीं समझा ।

        अज्जी की बात सुन धरा रो पड़ी । उसने अज्जी को सारी बात बताई । धरा की बात सुन अज्जी बोली  -बेटा तेरा डर बिल्कुल जायज है पर जरूरी नहीं कि हर बार वही हो... यह भी तो हो सकता है कि वह तेरा दामन खुशियों से भर दे । और जहां तक मैं समझती हूं , वह सच में तुमसे बहुत प्यार करता है और मुझे नहीं लगता वह तुम्हें धोखा देगा ।

        " अज्जी !  माँ ने भी यही सोचा होगा उस वक्त पर उनके साथ क्या हुआ ? सारी जिंदगी पागलपन में गुजार दी और वह आज तक नहीं लौटे  ।"

        "बेटा तभी तो कहती हूं कि वह आया ही नहीं ...क्या पता क्यों नहीं आया....?  फिर भी सावधानी रखनी चाहिए। अगर उसे शादी करनी हैं तो पूरे रीति-रिवाज से, घरवालों और समाज के सामने तुझे अपनी दुल्हन बनाए तो कोई बुराई नहीं है । तू कहे तो मैं बात करूं ?"

        "नहीं नहीं अज्जी !!!! हमारे और उसके बीच जमीन आसमान का फर्क है , ऐसा कभी नहीं हो पाएगा ...। और अज्जी जब तक माँ ठीक हो कर घर नहीं आएंगीं और वह नहीं कहेंगे कि , "हां धरा यह लड़का ठीक है, कर ले शादी" तब तक तो बिल्कुल भी नही ।"

         "बेटा यह क्या जिद है ?  तुम्हारी मां पता नहीं कब..

         .?"

          "अज्जी ऐसा मत कहो !  वह ठीक होकर घर आएंगीं ,मेरी शादी करवाएगी , मुझे यकीन है और आपको भी होना चाहिए ! उससे पहले कुछ नहीं । वह उठकर अज्जी के गले लग गई । अज्जी भी प्यार से उसे सहलाने लगी ।

          वह दिन और आज का दिन धरा और अनुज दूर ही रहे एक दूसरे से । अनुज ने अपना वादा दिल से निभाया । धरा भी उसे प्यार तो करती थी पर इससे कहीं ज्यादा वह अपनी मां से प्यार करती थी । अनुज ने अपने घर में सबको बता दिया कि वो धरा से ही शादी करेगा वरना नहीं करेगा ।

          दोनों का इंतजार रंग लाया... धरा की मां ठीक हो कर घर आ रही थी  ।अज्जी और धरा की खुशी का ठिकाना नहीं था ।

          अज्जी ...!! अज्जी...!!  धरा की आवाज से अज्जी का ध्यान टूटा ।

          "अरे ! वो लोग आते ही होंगे . जल्दी-जल्दी सब कर ।"

          दरअसल धरा की मां को लेने अनुज और उसके चाचा जी गए थे । धरा ने कहा कि वह घर में अपनी मां का वेलकम करेगी और अज्जी भी ।

          हॉस्पिटल में जब धरा की मां ने धरा को नहीं देखा तो अनुज से पूछा तो उसने बताया - आंटी वो आपके इंतजार में पागल हुई जा रही है , उसके आंसू नहीं थम रहे थे इसी

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मनीष एक पढ़ा-लिखा, जोशीला, युवा किसान है और वह अपने गांव और गांव के अन्य युवाओं को भी नई तकनीक से जोड़ कर अपने गांव के युवाओं को पलायन करने से रोकना चाहता है।        इसीलिए वह हमेशा नई-नई तकनीकों के बा

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