मामा के साथ रह कर बिताए क्षण जब न तब आंखों के सामने घूम से जाते।
हमेशा की तरह आज भी मैं झील के उस कोने पर जाकर बैठा था जहां से पानी में अठखेलियां करता चांद मुझे साफ नजर आता।
चांद उसका मामा नहीं हो सकता था उसमें उसको अपना ही चेहरा नजर आता था। वो जैसा करता चांद में उसे वैसा प्रतिबिंब नजर आता। चांद से उसकी गुफ्तगू उसे बहुत सुकून देती और ढेर सारे तारों से उसकी दोस्ती उसे बहुत मजा देती।घंटों वो उसमें खोया रहता और उसकी जिंदगी का वो सबसे हसीन पल होता।
आज वो धुंधलके से थोड़ा पहले आ गया था इसलिए भांपने में चूक हो गयी अगर चांद ने इशारा न किया होता।वो पलट के देखता तभी हरे रंग की फ्राक में पड़ोस की एक लड़की जो अक्सर उसे गहरी नजरों से देखा करती थी अल्हडता से आकर उसके बगल बैठ गई, वो थोड़ा चिहुंक कर सरक गया।
" तुम रोज यहां आकर बैठते हो ,क्यूं?"
मैंने बिना उसकी तरफ देखते हुए बेरूख़ी से कहा " पता नहीं"
वो उलझन भरी आंखों से मेरी तरफ देखते हुए फिर बोली_ "तूम्हारा कोई दोस्त नहीं है क्या?
नहीं, क्यों...? मैं चिढ़ कर बोला।
"मुझसे दोस्ती करोगे" वो बोली।
मैंने ना में सिर हिला कर सीधे कहा " नहीं"।
वो कुछ देर मुझे देखती रही फिर कुछ बड़बड़ाते हुए पैर पटकती चली गयी।
मैंने गले से थूक निगलते हुए राहत की सांस ली कि तारों की खिलखिलाहट ने मुझे और चिढ़ा दिया, पास पड़ी कंकड़ी को जोर से झील में फेंका तो सब गायब हो गये। चांद ने मानो सरगोशी की "गलत बात है, दोस्त ही तो बना रही थी।"
" नहीं करनी मुझे दोस्ती वोस्ती, तुम सब ही काफी हो मेरे लिए।"
वो हंसकर बोला " बेवकूफ हो तुम।*
"हां हूं, तो तुमको क्या" चिढ़कर बोलते हुए मैं यूं ही लेट गया।कब मेरी आंख लग गई और मैं सो गया पता ही नहीं चला, वो तो जैसे चांद ने मेरे कानों में सरगोशी की " वो फिर आयी है।"
मैंने चिहुंक कर कुहनी के बल पलट के देखा तो उंचाई पर वो खड़ी थी मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा और तल्खी से बोला "क्या है।"
वो भी जैसे चिढ़कर बोली "तेरा मामा आया है, तुझे ढूंढ़ रहा है।" कहकर पैर पटकती चली गयी।
मैं हैरान था कि अचानक उसे मुझसे इतना मतलब कैसे?
मैं उठा और कपड़े झाड़ता अपनी कोठरी की ओर जाने वाले रास्ते पे चल पड़ा, जबकि वो तब तक छू मंतर हो चुकी थी न जाने किस ओर।