नीतू की ऑंखें उसकी आँखों से फिसल होठों पर रुक गयीं, मानो पथरा गयी हों I उसकी खामोश निगाहें और गुलाबी होठों की जुम्बिश ने उसे बेचैन कर दिया । वह समझ नहीं पा रही थी कि इस मरीज़ में क्या है? जो उसे बेचैन कर रहा है । वह बार बार रतन ठाकुर और रतन सिंह के भंवर में थी । एकाएक उसे लगा कि उसकी धमनियों का रक्त जम जायेगा , अगर वह खड़ी रही तो गश खा कर गिर पड़ेगी । मरीज़ का मास्क उतारते ही वह अपने आप को संभाल नहीं सकी। मास्क की वजह से मरीज़ रतन ठाकुर उसे देख नहीं पा रहा था लेकिन उसे आभास हो गया कि ज़रूर कोई ऐसी बात है जिसने डाक्टर को बेचैन कर दिया । उसने सोचा शायद मेरे पैर की कुछ ऐसी कैफियत हो जिससे मेरी हालत पर वह इतना विचलित हो गयी है । इसके पहले कि वह कुछ पूछे डाक्टर रितु अपने चैम्बर में आ कर धम्म से सोफे पर गिर पड़ी । इसमें कोई शक नहीं कि रतन ठाकुर ही रतन सिंह है । वही बांकपन ,नश्तर मानिंद ऑंखें और मदहोश करती मुस्कराहट। जिस नश्तर को वह अतीत के सागर में फेक आयी थी आज उसने फिर उसके जिगर को चाक कर दिया ।
जवान हॉस्पिटल की डाक्टर रितु जवान आज सवेरे से बहुत व्यस्त थीं । बसआख़िरी पेशंट को देखना था I उसने उसे बुलाया ।आर्मी के रिटायर्ड कर्नल रतन सिंह ठाकुर व्हील चेयर पर आये । उनके साथ एक महिला थीं । सरसरी निगाह में उन्होंने उस महिला को उनकी पत्नी समझा । कोरोना की वजह से वह महिला, मरीज़ और डाक्टर मास्क में थे इस लिए कोई किसी को जान नहीं सका । महिला ने उन्हें बेड पर लिटा दिया और उनकी रिपोर्ट दिखाई ।
" यह मेरे भाई कर्नल रतन सिंह ठाकुर हैं । सेना से रिटायर हुए हैं कश्मीर इलाक़े में ऑपरेशन के दौरान एक बार इनका पैर बर्फ की चट्टान में फँस गया था , शायद कुछ नस डैमेज हो गयी है , बहुत दर्द रहता है और चलने से मजबूर हैं "। महिला ने अपने भाई का परिचय दिया । उसके आँखों की चमक उसके साहस और शौर्य को दर्शा रहे थे । पर्दा खींच उसने कर्नल से मास्क उतारने को कहा ।बस उसे देखते ही अतीत के कोरोना ने उसके दिल दिमाग़ पर लाक डाउन लगा दिया। ज़िन्दगी ठहरी सी लगी लेकिन माज़ी को रोकना नामुमकिन था । एक भगोड़े सैनिक की तरह वह कर्नल के कोर्ट में खड़ी थी कोर्ट मार्शल के इंतज़ार में । मैं मुजरिम थी रतन सिंह और नीलम दीदी की जिन्हें छोड़ भाग आयी थी । उसी अतीत ने मुझे पच्चीस साल बाद रतन के सामने खड़ा कर दिया अपनी सफाई देने के लिए ।
बीएचयू में मैं यानि नीतू सेठी और रतन साथ साथ बीएससी कर रहे थे । मेरे पिता नंदन सेठी चंदौली विधान सभा क्षेत्र से विधायक थे । गोदौलिया में उनका एक बड़ा साड़ी का शोरूम भी था । बनारस के मशहूर समाजसेवक और राजनीति के चतुर खिलाडी थे । राजनीतिक विरासत की रक्षा के लिए एक बड़ी फ़ौज भी थी । बनारस में उनदिनों कई माफिया या दबंगों का बोलबाला था । औसानगंज में भूषण सिंह , मलदहिया में भोला यादव, बड़ीबाज़ार में जब्बार हाजी । सभी गैंग के लोग अपने इलाक़े के किंग थे । गैर कानूनी उगाही और रंगदारी में हर कोई दूसरे के इलाक़े से परहेज़ करता था । भूषण सिंह की मेरे पिताजी से पुरानी रंजिश थी । कई बार झड़प भी हो चुकी थी, लेकिन दिल्ली में पहुँच की वजह से भूषण मेरे पिता से खौफ खाता था क्योंकि आशापुर से चौबे पुर तक मेरे पिता के समर्थक थे ।
छरहरा बदन,गरूर से लबरेज़ मस्त चाल, घने लहराते बाल और क़ातिल मुस्कराहट रतन सिंह को सबसे अलग बना देता था । क्लास में हमारी कोई जान पहचान नहीं थी ।बस अक्सर हम दोनों गेट तक पैदल चल कर आते, बिना किसी वार्तालाप के । वह सड़क के उस पार चलता मैं इस पार। यह संजोग था या जानबूझ कर हो रहा था कि हम दोनों एक ही टाइम पर साथ साथ चलते लेकिन कोई भी सड़क के बीच की दस फ़ीट की दूरी क्रॉस नहीं कर रहा था, दोनों के मन में यही द्वन्द था कि पहल कौन करे ? रतन सिंह जौनपुर के पास कानुवान गांव का रहने वाला था । उसके पिता कप्तान सुजान सिंह 71 की लड़ाई में शहीद हो गए थे । एक बहन नीलम और मां कामिनी थीं ।नीलम एमए कर रही थीं और ज्योति कुञ्ज हॉस्टल में रहती थीं । रतन ब्रोचा हॉस्टल में था । रतन का इरादा बीएससी कर सेना ज्वाइन करना था और उसके लिए मेहनत कर रहा था I साथ चलते चलते इतना तो था कि मौन वार्तालाप चल रहा था क्योंकि दोनों एक दूसरे के क़दमों की ताल अपनी धड़कन से माप रहे थे । और एक दिन ऐसा भी आया जब मौन को शब्द मिल ही गए । रितु ने देखा कि उस दिन रतन के हाथ में पट्टी बंधी है , तुरंत विचार कौंधा कि गरम खून के ठाकुर ने ज़रूर किसी से मारपीट की होगी , लेकिन वह क्यों बेचैन और आशंकित हुई खुद नहीं जान रही थी ? अकस्मात् उसने दस फ़ीट कि दूरी लाँघ दी और पहुँच गयी रतन के सामने,
" चोट कैसे लगी? किसी से झगड़ा किया है क्या?" रितु ने दोनों सवाल जड़ दिए ।
रतन भी इस आकस्मिक पूछताछ और जिज्ञासा से दंग रह गया । सवाल का जवाब सोच ही रहा था कि दूसरे सवाल की गोली दाग दी गयी ।
" ठाकुरों का कोई भरोसा नहीं, ज़रूर किसी को मारा होगा और चोट लगा लिया होगा ।"
रितु की बेताबी ,बेचैनी से रतन मुस्कुराये बगैर नहीं रह सका ।
" अरे बाबा बोलने दोगी तभी बता सकता हूँ, कोई मारपीट नहीं की, यह तो रूम के दरवाज़े में दब गया ।"
उसके जवाब पर हम दोनों ज़ोर अट्टहास करने लगे । " मुझे एकदम झगड़ालू समझा है क्या? उसने सवाल किया ।"
" नहीं ऐसी बात नहीं है, बस घबरा गयी थी ।" मैंने शरमाते हुई कहा ।
छोटा सा ज़ख्म दे कर नियति ने शायद हम दोनों की नियति सुनिश्चित कर दी थी ।वह क्षणिक वार्तालाप अब लम्बी मुलाक़ातें, भ्रमण और ढेर सारी बातों में बदलने लगी थीं ।एक दूसरे में इतना तल्लीन हो गये कि बेख़ौफ़ होटल, गार्डन और सारनाथ की सैर पर जाने लगे ।अब दोनों का एक ही लक्ष था बीएससी करना । इसके बाद रतन को सेना अधिकारी और रितु को डाक्टर बनना था । एक दूसरे की चाहत और मोहब्बत की कश्ती में चलते चलते दो साल बीत गए और एग्जाम भी हो गया ।अब समय आ गया था कि लुकाछिपी को सरेआम कर दिया जाय । यहीं से समाज धर्म, जाति और हैसियत का आगमन होता है क्योंकि फैसला दोनों परिवार को करना होता है जिन्हें चाहत या किसी पसंद ,नापसंद से कुछ नहीं लेना होता है , वह तो अपने नफे, नुकसान, प्रतिष्ठा और सम्मान के तराज़ू पर तौलते हैं ।
एक दिन नीलम दीदी ने दोनों को हॉस्टल में बुलाया । अपनी मोहब्बत की कामयाबी से लबरेज़ लेकिन आशंकित रितु उनसे मिलने हॉस्टल में आयी ।
" दो साल से तुम दोनों की धमाचौकड़ी चल रही है,तुम्हें क्या लगता है किसी को मालूम नहीं होगा । तुम लोगों की हर हरकत का हिसाब मेरे पास है । तुम दोनों से जानना चाहते हैं कि इसे कहाँ तक ले जाना चाहते हो ?"
नीलम दीदी की बातों में कोई खलिश या उलाहना नहीं था बल्कि वह तो हम दोनों के अगले क़दम के लिए मार्गदर्शन था ।मैं कुछ देर तक कुछ नहीं बोल पायी, नारीसुलभ लज्जा, राज़ खुलने से चेहरे को सुर्ख कर गया ।
" मैं भी इस रिश्ते के लिए गंभीर हूं । मेरे घर वालों का क्या रवैया होगा बता नहीं सकती । इसलिए मुझे दो दिन का समय चाहिए, उनसे बात करने और समझाने के लिए ।" रितु ने अपनी शंका बताई ।
रितु जानती थी की ठाकुर खानदान में शादी के लिए उनका परिवार कभी तैयार नहीं होगा । उसके पिता की ठाकुरों से पुरानी दुश्मनी थी और सभी ठाकुरों को वह एक जैसा ही मानते थे । रतन के सैनिक खानदान के कारण उसे विश्वास था कि वह पिताजी को समझा लेगी ।दो दिन बाद मिलने का वादा कर रितु चली गयी ।
अतीत का झंझावात रितु को झकझोर रहा था, उसे पता ही नहीं चला की कब नीलम दीदी उसके पीछे खड़ी मुझे लड़खड़ाते देख रही थीं I मेरे कंधे पर किसी ने हाथ की कोमलता महसूस हुई ।
" नीतू, मैं तुम्हें पहचान गयी हूं । इस हालात में मुलाक़ात होगी सोचा नहीं था। मैं तुम्हें किसी बात के लिए दोषी नहीं मानती । मैं जानती हूं लड़कियों को इश्क़ में क्या क्या थपेड़े झेलने पड़ते हैं। मुझे सिर्फ इतना बताओ उस दिन के बाद क्या हुआ?
“मैने जब अपनी मंशा मां को बताई तो कोहराम मचना लाज़मी था।
" लो, सुन लो । यह महारानी अपनी मर्ज़ी से शादी करने की सोचने लगी । मैंने पहले ही इसकी पढ़ाई बंद करने को कहा था । ज़्यादा पढ़ाई और आज़ादी का नतीजा है जो अपनी शादी खुद करने की बात करने में कोई भी लज्जा नहीं है । दूसरे जात में शादी कर खानदान का मान सम्मान मिटटी में मिल जायेगा। ये दिन देखने से पहले मैं मर जाऊंगी ।" रितु की मां किशोरी ने उसके पिता को उलाहना दिया और पूरा घर सर पर उठा लिया ।
" अभी रितु की शादी के बारे में सोचने की ज़रुरत नहीं है । उसका लक्ष्य डाक्टर बनने का है उसके बाद सोचा जायेगा । वैसे तुम्हें अच्छी तरह मालूम है कि ठाकुर हमारे खून के प्यासे है, मेरी इज़्ज़त उछालने का उन्हें मौक़ा मिल जायेगा । मेरी खानदानी और राजनीतिक विरासत मिट जाएगी ।" पिताजी ने इस मसले को सिरे से नकार दिया ।
" पिताजी , मैं तुरंत शादी की बात नहीं कर रही हूं । रतन का परिवार जौनपुर का रहने वाला है, उसके पिता आर्मी में थे और देश के लिए शहीद हुए हैं , ऐसे खानदान से रिश्ता कर आप का सम्मान ही बढ़ेगा । मैं रतन को पसंद करती हूं और शादी डाक्टर बनने के बाद ही करूंगी , रतन भी अपने मक़सद में कामयाब होने के बाद ही शादी करेगा । "
मैंने पिताजी को समझाने की कोशिश की । मेरे पिता एक कुशल राजनीतिक खिलाड़ी थे उनका कोई भी फैसला उनके नफे, नुकसान की तराज़ू पर तौला जाता था । वक़्त की नज़ाक़त को समझते हुए उन्होंने कल बात करने के लिए मसले को टाल दिया , लेकिन उनकी मंशा मुझे संदिग्ध लगी । दूसरे दिन ही मुझे नीलम दीदी से मिलना भी था ।न जाने रात में क्या हुआ,सवेरे आश्चर्यजनक रूप से दोनों का रवैया बिलकुल बदला हुआ था। मां ने रतन के परिवार और खानदान के बारे में विस्तार से बात की, मैं आशंका और आशा के झूले में गोते लगा रही थी , इतनी जल्दी दोनों हथियार डाल देंगे सोचा नहीं था । पिताजी ने बात शुरू की,
" देखो रितु, तुम पढ़ी लिखी और समझदार लड़की हो । मैंने तुम्हें दुनियां को समझने और सामाजिक परिवेश में ढलने के लिए शिक्षा दी है । अपना अच्छा बुरा सोचना और भविष्य के बारे में फैसला लेने का तुम्हें पूरा हक़ है । तुम्हारी इच्छा के बारे मैंने तुम्हारे मामा सुदेश से बात की है । मेरी ओर से कोई रूकावट नहीं है तुम्हें मामा को उनके मापदंड पर संतुष्ट करना होगा । "
पिताजी मामा के पाले में बाल डाल बरी हो गए ।मेरे मामा सुदेश रावल देहरादून के प्रसिद्द व्यापारी और समाजसेवी थे। तीन बार विधायक और मंत्री भी रह चुके थे ।
" दो दिन बाद सुदेश दिल्ली जा रहे हैं इसलिए आज ही देहरादून चलना होगा ।" उन्होंने तुरंत चलने का आदेश दे तैयारी करने को कहा । मेरे पास इतना समय नहीं था कि सूचना दे सकूं ।
देहरादून पहुँचते ही पिताजी असली रूप में आ गए, जिसकी मुझे आशंका थी । वहां उससे कोई राय नहीं ली गयी और मामा ने आदेश दे दिया कि रितु अब देहरादून में रह कर डाक्टरी की पढ़ाई करेगी और उसे उनके सख्त पहरे में रहना होगा । रिजल्ट के बाद मेरा दाखला देहरादून मेडिकल कॉलेज में करा दिया गया और बॉडीगॉर्ड के संरक्षण में कॉलेज जाने लगी । मुझे बिना इजाज़त किसी से बात करने की भी छूट नहीं थी । मैं समझ नहीं पायी की किस तरह रतन से संपर्क करून। अब तो मैं खुद को बेवफा और खुदगर्ज़ समझने लगी थी ।मुंबई जाने के पहले मैंने रतन के बारे में पता करने और हालात को बयां करने के लिए यूनिवर्सिटी हॉस्टल में पता किया लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली । मैं सिर्फ गांव के बारे में इतना ही जानती थी कि वह कानुवान के रहने वाले थे लेकिन पता लगाना असंभव था । मुंबई में मैंने जवान मेडिकल सेंटर खोला अपना नाम रितु जवान कर लिया , इस उम्मीद से कि कभी मेरा जवान आएगा और उसकी अदालत में मैं अपनी बेगुनाही बयां कर सकूंगी ।“
इधर जब दूसरे दिन रितु नहीं आयी और उसका कोई सन्देश नहीं आया तो दोनों चिंतित हो गए । उसके घर जाकर पता लगाने पर उनके देहरादून जाने की बात मालूम हुई । नीलम और रतन इस रहस्य को समझ नहीं पा रहे थे । नीलम को विश्वास था कि रितु किसी मुसीबत में है और रतन कुछ समझ नहीं सका । धीरे धीरे एक महीना गुज़र गया I दोनों रितु की ओर से निराश होने लगे क्योंकि अब तक कोई सन्देश न देना इस बात की इशारा कर रहा था की रितु ने रतन के जज़्बात से खेला है और उसे धोखा दे गयी । अभी भी उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि रितु उसके साथ बेवफाई करेगी लेकिन वफ़ा का भी कोई संकेत नहीं था । धीरे धीरे वह अवसाद और निराशा से घिरने लगा । किसी काम में ध्यान नहीं लगता , हर तरफ रितु और उसकी बेवफाई दिखाई पड़ती । एक दिन नीलम दीदी ने समझाया ।
" रतन, रितु को ऐसे दोष देना अच्छा नहीं हैI हमें उसकी मजबूरियों के बारे में भी सोचना चाहिए अगर वह तुमसे प्यार नहीं करती होती तो साफ साफ बता देती क्योंकि वह आधुनिक , सम्पन्न और संस्कारी लड़की है । वादे के अनुसार न आ सकने में कोई अनहोनी घटना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।इसलिए कुछ दिन इंतज़ार करना बेहतर होगा, अभी कोई निर्णय पर नहीं पहुंचना चाहिए । तुमने रितु से अपने कुछ निश्चित लक्ष्य के बारे में वादा किया था। तुम्हें अपना वादा नहीं भूलना है , परिश्रम करके कामयाबी हासिल करो, इससे जब कभी भी तुम उससे मिलोगे तो तुम्हें शर्मिंदगी नहीं होगी । तुम दोनों का इरादा अपनी मंज़िल को पाने के बाद ही शादी करने का था । हो सकता है वह जिस हालत में हो अपने लक्ष को पाने के लिए संघर्ष कर रही हो ।"
दीदी की बातों ने रतन को जीवन संभल दिया और वह जी जान से सेना में जाने की तैयारी करने लगा , और एक साल में ही कमीशन पा कर कॅप्टन हो गया । ट्रेनिंग के बाद उसकी पहली पोस्टिंग कश्मीर में हुई । आतंकवादी संगठनों को नेस्तनाबूद करना उसका लक्ष था । एक परिवर्तन उसमे आया कि उसे अब मृत्यु से एकदम भय नहीं लगता । दुश्मनों पर हमला करते वक़्त वह बड़ी ही मुस्तैदी से उनके अड्डों पर हमला करता और कई जोखिम भरे मिशन में कामयाबी हासिल की ।अपनी बटालियन में वह एक दिलेर और सूझबूझ वाला ऑफिस मशहूर हो गया ।पांच साल के अंदर कश्मीर के इलाक़ों में कई दुरूह मिशन में सफलता मिली और वह कर्नल बन गया । अभी तक रतन को रितु के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी इसलिए वह कभी कभी बेचैन हो जाता और यक़ीन होने लगा कि रितु अब बीते दिनों की यादें और कड़ुई सच्चाई हैIनीलम की भी शादी बनारस में हो गयी और वह यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हो गयीं । उनको कैंपस में बंगला भी मिल गया ।
एक दिन नौशेरा इलाक़े में एक बहुत ही खतरनाक ऑपरेशन के लिए रतन अपने जवानों के साथ लगे थे । आशा के विपरीत आतंकवादियों के पास बहुत हथियार थे और वह बस्ती की भीड़ का भी फायदा उठा रहे थे । रतन को कम से कम नागरिकों की जान जोखिम में डाले उन्हें काबू में करना था या उनका सफाया करना था। बस्ती के बाहर की तरफ बर्फीले नाले में तैर कर उसनेआतंकवादियों को घेर लिया । फायरिंग में एक साथ तीन गोली उसके पैर में लग गयी ,उसका पैर बर्फ में फँस गया , उसे लगा उसका पैर गल कर गिर गया क्योंकि वह तो सुन्न हो गया था, लेकिन वह हिम्मत नहीं हारा और आठ लोगों में पांच को मार दिया और तीन को पकड़ लिया। इतनी देर में गोली अंदर तक घुस चुकी थी काफी खून बह जाने से रतन को बेस हॉस्पिटल लाया गया । बहुत दिनों तक इलाज चला लेकिन उसके पैर का दर्द कम नहीं हुआ और वह चल नहीं सकता था। सेना की ओर से उसे एकसाल के लिए मेडिकल छुट्टी दी गयी । मेडिकल हॉस्पिटल के डीन डॉ मनीष ने रतन को मुंबई जवान हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी । यहां आने पर हमें क्या मालूम था जो क्रूर अतीत हम दोनों छोड़ चुके थे उससे कभी छुटकारा नहीं मिला था । जिसके क़दम के साथ ज़िन्दगी भर साथ चलना था उसी को नयी जान देने का काम अब नीतू तुम्हारे हाथ में है । अपनी बात को बेबाकी और बिना झिझक बयान करने के बाद मैंने रितु को आंसुओं में सराबोर पाया । अपने मरीज़ों को उम्मीद और जीवन दान देने वाली एक डाक्टर को पहली बार इतना टूटा हुआ देखा। उसके आंसू का एक एक क़तरा उसकी बेगुनाही और बेबसी के सबूत थे ।
" रितु जो भी हुआ, जैसे हुआ उसे नियति समझ अपने आप को दोष मत दो । मैंने कभी भी तुम्हें बेवफा और दोषी नहीं माना और रतन का भी यही सोचना था । अब हालत काफी बदल चुके हैं, क्या अभी भी तुम रतन को अपनाने को तैयार हो? तुम मुल्क की एक कामयाब डाक्टर हो और रतन का साहस, शौर्य और बलिदान देश के लिए मिसाल है ।लेकिन वर्त्तमान स्थिति में वह दूसरे पर निर्भर रहेगा । तुम्हें हक़ है कि सभी पहलू और सम्पूर्ण जीवन को ध्यान में रख फैसला करो । मैं ये नहीं पूछूँगी की तुमने अपना सरनेम सेठी से जवान क्यों रखा "I
" दीदी, क्या रतन मुझे माफ़ कर देगा?" मैंने पूछा
रतन किस तरह रियेक्ट करेगा यह तुम्हारे निर्णय पर निर्भर करेगा । मैं हर हालत में तुम्हारे साथ हूँ, मेरी चिंता सिर्फ रतन की ज़िन्दगी में खुशियां तलाशना है साथ मैं तुम्हारी मान मर्यादा और सामाजिक मान्यता को भी नकार नहीं सकती ।" दीदी ने अपनी धारणा बता दी ।
" दीदी अब मैं रतन को कभी भी खोना नहीं चाहती, इसलिए आप का निर्देश सर्वोपरि है ।"
यह फैसला हुआ कि आगे के इलाज के लिए रतन को भर्ती कर लिया जायेगा और अगले क़दम के बारे में सोचने और फैसला करने के लिए नीलम रुक गयी ।