इधर कई दिनों से अज़ान में लाउडस्पीकर बंदी, हनुमान चालीसा, रामनवमी जलूस, बुलडोज़र से घर गिराना, ज़बरदस्ती जय श्री राम का नारे से दहशत फैलाने जैसी सूचनाओं से मन व्यथित था। वोट की राजनीति अब नफरत की राजनीति में बदलती जा रही थी । देश के सामने आर्थिक तबाही, बेरोज़गारी,अराजकता , असंतोष और युवा आक्रोश की समस्याओं को नज़रअंदाज़ करने का सबसे आसान मुद्दा लोगों में दूसरे धर्म के प्रति नफरत की आग भर दो । चाहे मस्जिद पर चढ़ कर भगवा लहराने वाले चाहे, रामनवमी के जुलूस पर पत्थर फेकने वाले दोनों को सिर्फ कुछ लाभ का लालच दे कर उकसाया गया था और नफरत का उन्माद पैदा किया गया। यह सब करने वाले ज़्यादातर नौजवान चाहे किसी भी कौम के हों सभी बेरोज़गार, महगाई से मारे हुए ग़रीब तबके के लोग थे जिन्हें बरगलाया गया था। खिन्न होकर मैंने न्यूज़ देखना बंद कर दिया था I रमजान का महीना चल रहा है इसलिए मन को इबादत में लगाने में ही सकून था । मस्जिद में इफ्तार भेजने के लिए कुछ सामान खरीदने बाजार गया । इफ्तारका वक़्त हो रहा था, इसलिए काफी भीड़भाड़ थी । बस यहीं पर कोई नफरत और जातिवाद नहीं था , एक ही रिश्ता था दुकानदार और ग्राहक का । रोज़ के गाड़ी वाले लल्लन की दुकान पर खड़ा था । वर्षों से मैं लल्लन की दुकान से फल ले रहा था लेकिन अभी तक ये कभी जिज्ञासा नहीं हुई कि लल्लन हिन्दू है या मुस्लिम है। एक अभिन्न चाचा भतीजे का रिश्ता था । गाड़ी के पास ही एक ऑटो वाला भी माथे पर छोटा तिलक लगाए खड़ा था । मैंने लल्लन को दो तरबूज़ , दो दर्जन केले और एक किलो अंगूर देने को कहा ।
" चाचा क्या आज कोई पार्टी है? " लल्लन ने जिज्ञास ज़ाहिर की ।
" आज मस्जिद में रोजदारों के लिए इफ्तारी ले जा रहा हूँ " । मैंने जवाब दिया ।
" बहुत अच्छा चाचा" ।उसने सभी सामान रख दिया मैंने पेमेंट कर दिया I
अभी तक हम लोगों का वार्तालापएक ऑटो वाला सुन रहा था I
" भैया, खाली हो? मस्जिदतक चलना है?" मैंने उससे पूछा ।
" हाँ चाचा चलूँगा, बस थोड़ा फल मैं भी खरीद लूँ "। उसने कहा ।
उसने दो तरबूज़ और एक दर्जन केला ख़रीदा और ऑटो स्टार्ट करने के लिए आया ।
" चाचा मेरी ओर से रोजदारों को खिला दीजियेगा " इतना कह उसने थैला मेरी ओर कर दिया ।
कुछ देर तक मैं सकते में उसकी श्रद्धा को नतमस्तक हो गया । उस ऑटोवाले ने एक ही पल में भारत की हज़ारों साल पुरानी तहज़ीब और भाईचारे का अक्स दिखा दिया । नफरत की राजनीति कर सत्ता के गलियारे में पहुँच मौज मस्ती का जो मज़ा संविधान ने राजनेताओं को दिया है उसका खामयाज़ा देश के निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ रहा है । उस ऑटोवाले को
न तो अज़ान से तकलीफ थी नहीं हनुमान चालीसा से । वह तो इंसानियत की जीती जागती मिसाल था । मस्जिद में उतरने के बाद मैंने किराया दिया और बेसाख्ता मेरे हाथ दुआ के लिए उठ गए कि आज कि अल्लाहताला आज की मेरी नेकी और उसके आमाल का अजर उसे देना ।
बड़ी देर तक मैं उसके जाते हुएऑटो को देखता रहा ।