है वो एक आम सा चेहरा, किसी कसबे की आम सी लड़की जैसे
निहार रहा हूँ मैं उसको, मानो है धरती पे चाँद जैसे
मुझको कोई भी मुखड़ा, कोई तितली रास नहीं आती
बस उसकी है वही प्रतिमा, जो कि अब दिन रात है भाती
छोटे कद कि, थोड़ी सांवली सी लगती है
कुछ बोले तो मानो, एक कविता सी लगती है
सुंदरता के मुकाबले में, गगन ने चाँद को बिठा रखा है
चाँद ने भी सहारे में, सारे तारों को जगा रखा है
उस खूबसूरती के पिटारे की, एक झलक आँखों में पड़ी है
छत पे आई है तो मानो, नैनों को ठंडक मिली है
लहराते बालों की महकती, एक खुशबू सी आ रही है
जुल्फों से छनती चांदनी से, शीतलता सी छा रही है
बारिश की बूंदें उसके चेहरे से, यूँ फिसल कर सरक रही हैं
यूँ छू रहीं है मानो, होठों से साज़िश कर रही हैं
ठंड से तन मन यौवन सब, वो खुद भी काफी सिहर रही है
उसके घुँघरू की हल-चल, मानो रागिनी सी गा रही है
इधर व्याकुल ये मेरा मन, मगर हो रहा है
उसके सुंदरता के जिजीविषा में, मानो कहीं खो रहा है
प्रेम रोग में ना पड़ जाए, ये बावरा मन मेरा है
बस एक वही रात का दृश्य, जो अब हर दर्पण में दिख रहा है
मुझे कोई भी मुखड़ा, कोई तितली रास नहीं आती
बस उसकी है वही प्रतिमा, जो कि अब दिन रात है भाती..!!!