लगाकर मेहेंदी हाँथों में, वो पंछी उड़ गई
इस द्वार से उस द्वार तक, वो रोती चली गई
बाप सिसकता रहा, गले से लगाता रहा
माँ को अकेला छोड़, वो पिया के घर चली गई
भाई आज हार सा गया, आँसू बहाने लगा
वो मुसाफ़िर, अपनी मंजिल की ओर चली गई
घर सूना हुआ,आँगन शांत हो गया
उसके पायल की हल-चल अब कहीं और चली गई
खत वो लिखती रही, रोटी पोती रही
किसी साथी की याद में, माँ को वो याद आती रही
अब वो टूट सा गया, रौनक मिट सा गया
किसी नट-खट की याद में, बाप को वो याद आती रही
क्या करे, किससे लड़े, अब वो सोचता है
भाई को बचपन की वो यादें सदा याद आती रही
इनायत लेने अब वो गर्मियों में आती है
ज्यादा तो नहीं, बस एक मेहमान बन रह जाती है
पेहले रिश्ता कुछ अलग था, हर बात बताती थी
उस घर के इज्ज़त के खातिर, अब माँ से बात छुपाती है
हर बार वो आकर खुशियाँ बिखेर देती है
मगर बिदाई के वक्त, हर बार वो बाप का सीना तोड़ देती है
सिखो कुछ साहब, बेटी चिराग होती है
घर में बेटी से बढ़कर कोई चीज़ नहीं होती है..!!