इस अंजान से शहर में माँ तेरी याद आती तो है...
लड़ने के लिए लोग कम नहीं मगर बेहना तेरी याद आती तो है...
कितनी भी कर लूँ कोशिश मैं भूलने कि मगर...
माँ, मुझे घर की याद आती तो है.....
सात समंदर पार भेजकर क्यूँ मुझे निराश किया...
ना जाने मैंने ऐसा भी है क्या अपराध किया...
गुसताखी गलती तो होती ही रहती है मगर...
माँ, ना जाने तुने क्या सोच कर मुझको यहाँ अनाथ किया....
आज ना जाने क्यूँ मेरी आँखें भर आई...
सात समंदर पार माँ की याद दिल को छूने चली आई...
यादों को ना भेजा कर माँ मुझे रुलाने को...
सूखी रोटी क्या कम हैं, तेरी याद दिलाने को....
सोच रहा फिर से नादान हो जाऊँ...
तेरी ममता की आँचल में फिर एक बार सो जाऊँ...
काफी दिन बीत गए तेरे बिना अकेले माँ...
तू कहे तो एक बार मिलने मैं घर चला आऊँ...!!!