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पेंशन

16 अप्रैल 2022

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'आजी' मर गयी।

रात में दूध रोटी खा के सोयी थी। माई से तेल लगवाई थी। बाबू से दवा खाई थी। सुबह कुसुमिया गयी थी चाय देने तो आँख नहीं खुल रहा था। 

बबलू दौड़ा। 

बबलिया दौड़ी। 

बाबु-माई दौडे।

गाँव भर दौड़ा। 

"आजी हो आजी, का भइल आजी।"

" आँख खोsलs हो आजी।"

"कईसे जीयब हम आजी।"


बाबू पथरा गए  ।

 माई को दांत पर दांत लग रहा । 

कुसुमिया दूनो को संभालने में निढाल । बबलुआ रो रहा था। बबलिया टुकुर-टुकुर देख रही थी। 


चौरानवे साल की आजी का मरना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। आजी, ताजिंदगी स्वस्थ ही रही, ऐसी बात भी नहीं थी। 


अभी छह महीने ही हुए थे कि अब तब की हालत हुई थी। बड़का अस्पताल में भर्ती कराया गया था। खूब दौड़ भाग हुआ था। बरहम बाबा को मनाया गया था।बुढ़िया माई के पास भी गोहार लगाया गया था।ए आजी कहते, भर रात काटा गया था। एको सेकेण्ड अकेला नहीं छोड़ा गया था।  


आ बच गयी थीं। आ बच गया था परिवार। 


पर कल रात तो उन्होंने छल किया। धोखा दिया। 


सब आश्वस्त थे। 

अपने अपने काम में मगन थे। 


बबलूआ पढ़ रहा था। 

कुसुमिया बाल में तेल लगा रही थी। अगले लगन में ही उसका ब्याह लगा था। 

बबलिया को माई दूध पिला रही थी। 

बाबु हिसाब लिख रहे थे कि ब्याह में केतना खर्चा लगेगा। कहाँ से आएगा। 


सब निश्चिन्त थे कि आजी थीं। 

सबको ढाढस था कि आजी थीं।

आजी थीं तो छोटूआ की पढ़ाई थी।

आजी थीं तो बबलिया का दूध था। 

आजी थीं तो कुसुमिया का बियाह था।

आजी थीं तो घर था।


काहे कि आजी थी तो पेंशन था। आजी थीं तो पेंशन का पैसा था।


और आजी चल बसी। इसके साथ ही रुक गयी हैं इस परिवार की साँसे। 


कैसे होगी बबलुआ की पढ़ाई

बबलिया का दूध कैसे आएगा

कैसे चलेगा परिवार का खर्चा

आ कुसुमिया का बियाह तो हो ही नहीं पाएगा। 


बाकिर आजी तो आजी थी न ..घर को ऐसे कैसे छोड़ देतीं

तो आजी मरी अप्रैल में, मृत्यु प्रमाण पत्र लिया गया फरवरी में। 

दस महीना का पेंशन भेंटा गया आ कुसुमिया का बियाह  हो गया। 

-स्वयम्बरा

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