कौन मुझमे झर रहा है पतझरो का नाम ले कर
चल पड़ी पुरनम हवाएँ फिर तनिक आराम ले कर
थाप देती है दिशाएँ गन्ध वाले जाम ले कर
रँग बसन्ती बह रहा है
कुछ कथाएं कह रहा है
मौन भी चुप की सकल ही
अब व्यथाएँ कह रहा है
आ गया जैसे के मौसम गुल गुलो गुलफाम ले कर
प्रित वाले रँग लुटाए आज राधा श्याम ले कर
कौन मुझमे झर रहा है पतझरो का नाम ले कर
मुकेश सोनी सार्थक