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गजल

3 मार्च 2022

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अब बुरे का क्या बुरा हो जाएँगा
नभ बदल कर क्या धरा हो जाएँगा

आस के मोती पिरोना छोड़  दे
ख्वाब है जो क्या तिरा हो जाएँगा

जो महक पाया नही मिल कर कभी
टूट कर वो क्या हरा हो जाएँगा

जी जरा ले आज कल की क्या खबर
पूर्ण जाने कब जरा हो जाएँगा

ये हुनर भी खूब आता है उसे
बस समय खोटा खरा हो जाएँगा

आज मीठा जो जबानों को लगा
क्या पता कल किरकिरा हो जाएँगा

हाथ हल्के वक्त गर दलने लगा
आदमी तो दरदरा हो जाएँगा

जब जहन ही साथ छोड़े देह का
कोन सा फिर सँग सिरा हो जाएँगा

मुकेश सोनी सार्थक

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3 मार्च 2022
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अब बुरे का क्या बुरा हो जाएँगानभ बदल कर क्या धरा हो जाएँगाआस के मोती पिरोना छोड़ देख्वाब है जो क्या तिरा हो जाएँगाजो महक पाया नही मिल कर कभीटूट कर वो क्या हरा हो जाएँगाजी जरा ले आज कल की क्या खबर

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