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गजल

23 मार्च 2022

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सो सपने थे राह हजारों
पर हम पार हुवे ना यारो

जाने कोन कमी थी हम में
चित है हम खाने में चारो

याद नही है खुद की हमको
चाहे तुम जिस नाम पुकारो

दाँव लगे है खुद हम खुद पर
चाहे जीतो चाहे हारो

आज सितारे है गर्दिश में
अँधियारो की बाट बुहारो

रातों की तुम कर लो पूजा
आरती तम की आज उतारो

चाँद हमारा ही होता था
याद रखो ये तुम भी तारो

लहरों का कब कोई भरोसा
सोच समझ कर नावँ उतारो

लाख हवाएँ आवारा है
कुछ अहसान करो तुम धारो

फिर दावा दुनियाँ पर करना
पहले अपने मन को मारो

लाख निछावर हो खुशियों पर
मुश्किल पर भी कुछ तो वारो


मुकेश सोनी सार्थक

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सो सपने थे राह हजारोंपर हम पार हुवे ना यारोजाने कोन कमी थी हम मेंचित है हम खाने में चारोयाद नही है खुद की हमकोचाहे तुम जिस नाम पुकारोदाँव लगे है खुद हम खुद परचाहे जीतो चाहे हारोआज सितारे है गर्दिश में

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