“फागुनी दोहा” रंग भरी पिचकारियाँ, लिपटे अधर अबीर गोरी गाए फागुनी, गलियाँ क़हत कबीर॥ फागुन आई हर्षिता, मद भरि गई समीर नैना मतवाले हुए, छैला हुए अधीर॥ नाचे गाए लखि सखी, वन में ढ़ेल मयूर लाली परसा की खिली, मीठी हुई खजूर॥ फगुनाई गाओं सखी, मीठे मदन नजीर आज चली र