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फ्री ई-बुक : हिंदी कहानी

24 नवम्बर 2016

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इलज़ाम

20 अक्टूबर 2016
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हर दिन एक नया इल्ज़ामसमझ नहीं आता कि कैसे, बदलें अपना चाम कोई कहता कठमुल्ला तो कहता कोई वाम ताना कसते इस अंगने में नहीं तुम्हारा काम कैसे आगे आयें देखो लगा हुआ है जाम ये ही दुःख है हर घटना में लेते हमारा नाम कैसे आयें मुख्यधारा में भटक रहे दिनमान हर दिन एक नया इ

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घेराबंदी को धता बताकर

8 नवम्बर 2016
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नरगिस

8 नवम्बर 2016
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पता नहीं नरगिस नाम क्यों रखा गया था उसका। सांवली सूरत, कटीले नक्श और बड़ी अधखुली आंखों के कारण ही नरगिस नाम रखा गया होगा। नरगिस बानो। बिना बानो के जैसे नाम में कोई जान पैदा न होती हो। नाम कितना भी अच्छा क्यों न हो तक़दीर भी अच्छी हो ये ज़रूरी नहीं। नरगिस अपने नाम के मिठास और खुश्बू से तो वाकिफ़ थी लेकि

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पहचान : उपन्यास अंश

9 नवम्बर 2016
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यहकोतमा और उस जैसे नगर-कस्बों में यह प्रथा जाने कब से चली आ रही है कि जैसे ही किसी लड़के के पर उगे नहीं कि वह नगर के गली-कूचों को ‘टा-टा’ कहके ‘परदेस’ उड़ जाता है।कहते हैं कि ‘परदेस’ मे सैकड़ों ऐसे ठिकाने हैं जहां नौजवानों की बेहद ज़रूरत है। जहां हिन्दुस्तान के सभी प्रान्त के युवक काम की तलाश में आते है

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फ्री ई-बुक : हिंदी कहानी

24 नवम्बर 2016
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अल्पसंख्यक समाज के अक्स

24 नवम्बर 2016
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खदानों के जीवन पर हिंदी में पहले भी संजीव के उपन्यास आए हैं किंतु अनवर सुहैल का ‘पहचान’ इस कथ्य पर एक नर्इ कथा-भूमि का उत्खनन करता है। सिंगरौली क्षेत्र कथानक के केंद्र में है। उपन्यास का दूसरा सबल पक्ष इस देश के अल्पसंख्यक समुदाय-मुसलमानों के निम्नवर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का ऐसा आलेखन है जो

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सबकुछ को बदलने की ज़िद में गैंती से खोदकर मनुष्यता की खदान से निकाली गई कविताएँ

23 जुलाई 2017
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-----------------शहंशाह आलम मैं बेहतर ढंग से रच सकता था प्रेम-प्रसंग तुम्हारे लिए ज़्यादा फ़ायदा था इसमें और ज़्यादा मज़ा भी लेकिन मैंने तैयार किया अपने-आपको अपने ही गान का गला घोंट देने के लिए… # मायकोव्स्की मायकोव्स्की को ऐसा अतिशय भावुकता में अथवा अपने विचारों को अतिशयीक

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