खदानों के जीवन पर हिंदी में पहले भी संजीव के उपन्यास आए हैं किंतु अनवर सुहैल का ‘पहचान’ इस कथ्य पर एक नर्इ कथा-भूमि का उत्खनन करता है। सिंगरौली क्षेत्र कथानक के केंद्र में है। उपन्यास का दूसरा सबल पक्ष इस देश के अल्पसंख्यक समुदाय-मुसलमानों के निम्नवर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का ऐसा आ लेख न है जो अब तक हिन्दी उपन्यास के लिए अजाना है। साथ ही आज का एक अहम सवाल कथात्मक संवेदन के धरातल पर अपना विमर्श रचता है कि केवल नाम लेने से मुसलमान की एक अलग पहचान, हिकारत भरी पहचान, मुख्य-धारा के समाज के लिए पूरे भारत में हो जाती है। कथानायक ‘यूनुस’ के माध्यम से उस वर्ग के भुक्तभोगी उपन्यासकार ने मुस्लिम ‘चिति’ /साइके का बहुत अच्छा परिचय दिया है, और इसी बहाने मुस्लिम समाज के दो ज़ख्मों ‘बाबरी मस्जिद विध्वंस’ तथा गोधरा कांड पर भी अपना खुला सोच प्रकट किया है। उपन्यास की विशेषता है यह है कि ये सभी समस्याएं लेखक ने छोटे तबके के मुसलमानों के माध्यम से चित्रित की हैं। यूनुस मियां और उसका परिवार जिस दकियानूसी जीवन-पद्धति को जी रहा है, उनकी तंग-ज़ेहनीयत को भी वह बख्शता नहीं है। उपन्यास इसीलिए और प्रभावी हो उठता है कि यहां चित्रित निम्नवर्गीय मुस्लिम समाज केवल सिंगरौली क्षेत्र का ही नहीं है बल्कि वह पूरे भारत के इस समाज का प्रातिधिनिक चित्रण करता है। उपन्यास अपने शिल्प और आकार के कारण भी विशिष्ट बन गया है।
-पुष्पपाल सिंह, इंडिया टुडे 8 दिसम्बर 2010
पहचान इस उपन्यास की पृष्ठभूमि में भारतीय समाज का वह सीमान्त इलाका है जहाँ के बच्चों की शिक्षा सिनेमा–हॉलों, गैरेजों और चाय–पान की गुमटियों में होती है, जिन्हें भूगोल का ज्ञान ट्रक चालकों से, इंजीनियरिंग का ज्ञान गैरेजों में खटकर, ड्रेस डिजाइनिंग का हुनर दर्जी की दुकान से और ब्यूटीशियन का डिप्लोमा नाई की दुकान से मिलता है । यूनुस इसी धरती पर उगा हुआ एक पौ/ाा है, जिसे अपने लिए एक पहचान की तलाश है । लेकिन उसके साथ चिपकी हुई एक पहचान उसका मुसलमान होना भी है, पर वह उसे हर कहीं उजागर नहीं करता, कम–से–कम अपने सलीम भाई की तरह तो नहीं जिसे गुजरात में ऑटो में बैठे–बैठे जिन्दा जला दिया गयाय उसके लिए उससे ज्यादा मायने अपनी वह छवि रखती है जिसे वह सनूबर की आँखों में देखता है । सनूबर जो उसकी महबूबा है और जो उसे मुहम्मद यूनुस नहीं, अंग्रेजी में संक्षेप करके ‘एम–वाई’ अर्थात् ‘माई’ बुलाती है । एक आदमी की पहचान क्या होती है उसका धर्म, उसका पेशा या उसका हृदय ? यह उपन्यास अपने नायक यूनुस के माध्यम से यही सवाल हमारे सामने रखता है । यूनुस निम्नमध्यवर्गीय भारतीय मुस्लिम समाज का एक प्रतिनिधि चरित्र है, और अपने बनने की प्रक्रिया में हमें अपनी स्मृतियों के साथ उस पूरे परिदृश्य से परिचित कराता है जिसमें साम्प्रदायिक ताकतों की राष्ट्रीय राजनीति में घुल–मिल जाने के बाद, आज भारत का गरीब मुस्लिम तबका रह रहा है ।