shabd-logo

गढ़वाल विश्व विद्द्यालय -संघर्ष , नायक और यादें।

6 दिसम्बर 2016

116 बार देखा गया 116

गढ़वाल विश्व विद्द्यालय श्रीनगर ने अपनी स्थापना के 42 वर्ष पूर्ण कर लिए। ग्राउंड ज़ीरो की खबर ने मेरा ध्यान इस और खींचा और मैं अतीत में 43 वर्ष पीछे चला गया। मुझे छात्र संघर्ष के वे दिन याद हो चले जब मुझे अपनी छोटी सी दुनिया से बाहर झाँकने का मौका मिला। गढ़वाल विश्व विद्द्यालय की स्थापना से पूर्व हम मेरठ विश्व विद्द्यालय से सम्बद्ध थे।इस आंदोलन ने से मुझे एक नए फलक पर नए लोगो के साथ काम करने का मौका मिला। अपनी यादों को आगे बढ़ने से पहले मैं इस आंदोलन के प्रणेता और सूत्रधार, निष्काम समाजसेवी स्वर्गीय स्वामी मन्मथन का स्मरण और वंदन करना चाहूंगा।

इस आंदोलन के दौरान मुझे स्वामी जी से अनेक बार मिलने का अवसर मिला। देश के सुदूर दक्षिण के केरल प्रान्त से आकर टिहरी को अपना कार्य क्षेत्र बना उन्होंने सामजिक जागरूकता के अनेक आंदोलन प्रारम्भ किये। महिलाओ को संगठित किया और उन्हें स्वावलंबी बनाने की अनेक योजाओं पर काम शुरू किया। इनके व्यक्तित्व ने मुझे प्रभावित किया। वे मेरे आत्मीय बने और अनेक बार मेरे घर आये। अनेक विषयों पर चर्चा भी होती थी। विश्व विद्धालय की मांग को आगे बढ़ने और अधिक से अधिक छात्रों - नौजवानों को इससे जोड़ने के लिए एक संस्था विश्व विद्धालय निर्माण समिति का गठन टिहरी के जगदम्बा प्रसाद रतूड़ी के संयोजन में किया गया था। इस समिति की अगुवाई में पहाड़ की महिलाओं और नौजवानों नेअनेक प्रदर्शन , धरने व जलूसों का आयोजन कर विश्व विद्यालय स्थापना की मांग को ताकत दी। समिति की अनेक मीटिंग पुराने टिहरी शहर, पौड़ी और देहरादून में हुयी। इन मीटिंग्स के माध्यम से मुझे पहाड़ के नौजवान बौद्धिक वर्ग से मिलाने और संवाद करने का अवसर मिला।

इस आंदोलन के जरिये मैंने सार्वजानिक जीवन के बड़े केनवास पर पहला कदम रखा था। वर्ष 1973 के प्रारम्भ में मैं कांग्रेस की नव स्थापित छात्र शाखा नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन का प्रथम ज़िला अध्यक्ष नामित हुआ। इस संगठन की शक्ति का प्रयोग करते हुवे इसी वर्ष सितंबर माह में राष्ट्रिय छात्र संगठन के आह्वान पर, अग्रवाल धर्मशाला देहरादून में विश्व विद्धालय स्थापना पर विषाद चर्चा और स्वरूप पर दस्तवेज़ तैयार करने के लिए सम्मलेन का आयोजन किया गया। सम्मलेन में स्वामी मन्मथन ,स्वर्गीय अवध बिहारी पन्त , कृषणा मैठाणी , स्वर्गीय कैलाश जुगरान , प्रो वीरेंद्र पैन्यूली , जगदम्बा प्रसाद रतूड़ी , राकेश थपलियाल , मंज़ूर एहमद बेग सहित बड़ी संख्या में पहाड़ और देहरादून के छात्रों ने इसमें भाग लिया। मेरी अध्यक्षता में हुए सम्मलेन में मेरी टीम से विनोद चंदोला , वीरेंदर उनियाल ,विवेकनंद खंडूरी , सुरेंद्र अग्रवाल , राकेश चंदोला ,देव व्रत नैथानी, शिव सिंह बिष्ट आदि का सहयोग रहा। इस सम्मलेन के कुछ माह बाद ही स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा जी की उत्तर प्रदेश सरकार ने विश्व विद्धालय स्थापना की घोषणा कर दी और श्री ओ पी भट्ट जी को इसका ओएसडी नियुक्त कर श्रीनगर तैनात किया। समिति के सदस्यों ने तब भट्ट जी से श्रीनगर मुलाकात की और उन्हें सम्मलेन में पारित प्रस्तावों की प्रति सौंपी। आज गढ़वाल विश्व विद्द्यालय ने अपनी यात्रा के 42 वर्ष पूर्ण कर लिए यह मेरे लिए उसकी स्थापना के लिए हुवे संघर्ष की यादों में खो जाने का अवसर भी है।

सुरेन्द्र सिंह आर्य की अन्य किताबें

किताब पढ़िए