आ गया सावन सुहाना ।
मेघ वृष्टि से धरा का ,
लगे करने मृदुल सिंचन ।
मोर हर्षित नृत्य रत हैं,
गा रहे दादुर मुदित मन ।
नहाकर वसुधा ने तन पर ,
ओढ़ लीन्हा हरित बाना ….|
क्षीण सरिताओं की काया ,
पा गई फिर से जवानी ।
भरे सूखे ताल वापी,कूप,
जिनमे न था पानी ।
हो रहे मदमस्त निर्भर,
चाहते मन मीत पाना …॥
विटप से लतिका लिपट कर ,
झूमती गिरती मचलती ।
शीतमयी समीर कोमल ,
मोद भरने को उछलती ।
छेड़ मीठी तान कोई,
गा रहा सुरमय तराना....|