त्वरित करो तय जो करना है।
अ-निर्णय की आशंका से, कर्महीन बन क्यों मरना है ।
असमंजस में समय गॅवाया, हाथ न कुछ आने वाला ।
पछतावा ही साथ रहेगा, फिरा न पल जाने वाला ।
निज जीवन के स्वप्न सुहाने व्यर्थ में फिर किससे डरना है.....।
अपनी अनुभव की झोली में, चुन चुन कर मोती भर लो ।
मग के कंटक बीन परे कर, सुमन बिछा पीड़ा हर लो ।
दुखी दीन के अश्रु पोंछकर, जीवन में खुशियाँ भरना है .......।
अहंकार है शत्रु स्वयं का, दूर इसे करना होगा ।
सरल नीर बन पथ बाधा को, जीत सहज चलना होगा ।
ज्ञानदीप से घोर निशा में, अंध तिमिर भी तो हरना है.......।
पग पग पर दुष्टो ने अपना, कूटजाल है फैलाया ।
मानवता को कुचल रहे हैं, कैंसा यह कुसमय आया ।
जग की भीषण तपन मिटाने, शीतल निर्झर बन झरना है ।
- सतीश शर्मा