प्यार से आजकल प्यार नहीं मिलता जिस तरह दो पैसा उधार नहीं मिलता अमीरी का रंग जहाँ चाहो फेको तुम क़रार वालों से बेक़रार नहीं मिलता छोड़ देते हैं जलने के लिये कहो उनसे तड़पने का दिन बार बार नहीं मिलता मेरी तस्वीर दौलत उनकी खरीद लेती मगर दिल का तो बाज़ार नहीं मिलता ज़मी हिलती आसमाँ रोते ज़लज़ले आते आदमी को आदमी का किरदार नहीं मिलता ग़मज़दा नहीं है खुश क्यूँ नहीं आखिर तू पल तन्हां तन्हा दो चार नहीं मिलता सहारे वाले बेसहारों का दर्द क्या जाने कुछ चमन को फूलों का सिंगार नहीं मिलता शहर में सांस का आना जाना मुश्किल गाँव में नदीम कोई बीमार नहीं मिलता. .........ग़ज़ल.......नदीम हसन चमन रिकाबगंज टिकारी गया बिहार मो.7061684801 मौलिक अप्रकाशित स्वरचित