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ग़ज़ल

4 सितम्बर 2016

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तेरी तरहा मैं हो नहीं सकता
नहीं ये करिश्मा हो नहीं सकता

मैंने पहचान मिटा दी अपनी
भीड़ मे अब खो नहीं सकता

बहुत से काम याद रहते है
दिन मे मैं सो नहीं सकता

कि पढ़ लूँ पलकों पे लिखी
इतना सच्चा हो नहीं सकता

समीर कुमार शुक्ल

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सतविन्द्र कुमार

सतविन्द्र कुमार

उम्दा शेर कहे हैं समीर जी।कम से कम एक शेर तो और कहिये

4 सितम्बर 2016

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गज़ल

2 जनवरी 2016
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वक़्त कटता ही रहता है कैसी आरी है भागते बादल पे मौसम की सवारी है बदलता ही नहीं तमाम चाहतो के बाद उस शक्स की मुझसे अजीब यारी है भोर के वक़्त मद्धम सा उजाला माँ ने बेटे की आरती उतारी है समीर कुमार शुक्ल

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कविता

22 अगस्त 2016
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तुम शाश्वत में प्रतिपल मेंतुम आज में कल मेंतुम पवन में जल मेंतुम भस्म में अनल मेंतुम रहस्य में हल मेंतुम मौन में कोलाहल मेंतुम कर्कश में कोमल में तुम मलिन में निर्मल मेंतब क्या तुमको पानातब क्या तुमको खोना समीर कुमार शुक्ल

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ग़ज़ल

4 सितम्बर 2016
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धूप मे धूप साये मे साया हूँ बस यही नुस्का आजमाया हूँएक बोझ दिल से उतर गया कई दिनों बाद मुस्कुराया हूँदीवारें भी लिपट पड़ी मुझसेमुद्दतों के बाद घर आया हूँउसे पता नहीं मेरे आने का छुप कर के उसे बुलाया हूँ समीर कुमार शुक्ल

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ग़ज़ल

4 सितम्बर 2016
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तेरी तरहा मैं हो नहीं सकता नहीं ये करिश्मा हो नहीं सकतामैंने पहचान मिटा दी अपनी भीड़ मे अब खो नहीं सकताबहुत से काम याद रहते है दिन मे मैं सो नहीं सकताकि पढ़ लूँ पलकों पे लिखी इतना सच्चा हो नहीं सकतासमीर कुमार शुक्ल

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कविता

9 सितम्बर 2016
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सत्य समर्थन करता हूँमैं आत्ममंथन करता हूँजड़ता में विश्वास नहींनित परिवर्तन करता हूँअहंकार की दे आहुति मैं आत्मचिंतन करता हूँहर नए आगंतुक का मैं अभिनन्दन करता हूँमन के चिकने तल परवैचारिक घर्षण करता हूँ

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