अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँअंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँअंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते
निःशुल्क
विद्रोह
सत्य समर्थन करता हूँमैं आत्ममंथन करता हूँजड़ता में विश्वास नहींनित परिवर्तन करता हूँअहंकार की दे आहुति मैं आत्मचिंतन करता हूँहर नए आगंतुक का मैं अभिनन्दन करता हूँमन के चिकने तल परवैचारिक घर्षण करता हूँ
तेरी तरहा मैं हो नहीं सकता नहीं ये करिश्मा हो नहीं सकतामैंने पहचान मिटा दी अपनी भीड़ मे अब खो नहीं सकताबहुत से काम याद रहते है दिन मे मैं सो नहीं सकताकि पढ़ लूँ पलकों पे लिखी इतना सच्चा हो नहीं सकतासमीर कुमार शुक्ल
धूप मे धूप साये मे साया हूँ बस यही नुस्का आजमाया हूँएक बोझ दिल से उतर गया कई दिनों बाद मुस्कुराया हूँदीवारें भी लिपट पड़ी मुझसेमुद्दतों के बाद घर आया हूँउसे पता नहीं मेरे आने का छुप कर के उसे बुलाया हूँ समीर कुमार शुक्ल
तुम शाश्वत में प्रतिपल मेंतुम आज में कल मेंतुम पवन में जल मेंतुम भस्म में अनल मेंतुम रहस्य में हल मेंतुम मौन में कोलाहल मेंतुम कर्कश में कोमल में तुम मलिन में निर्मल मेंतब क्या तुमको पानातब क्या तुमको खोना समीर कुमार शुक्ल
एक अकेली लड़की कोजबसब देखते हैक्या क्या सोचते हैकुछ यूँ ही गुजर जाते हैकुछ आँखों से जिस्म नोचते हैकुछ जिस्म से जिस्म नोचते हैफिर यूँ ही गुजरने वालेआते हैऔर उसके आंसू पोछते हैऔर उसकी सहानभूति लेते हैताकिउसकी सहमति सेउसका जिस्म नोच सकें।समीर कुमार शुक्ल
हाल ही में विश्व की सबसे सम्मानित और वैज्ञानिक पत्रिका नेचर मे छपे शोध के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता 5000 वर्ष पुरानी ना हो कर 8000 वर्ष पुरानी है। इस शोध से यह सिद्ध होता है की सिंधु की सभ्यता विश्व की प्राचीनतम सभ्यता है, और इससे वामपंथ एवं मुगल चाटुकार इतिहासकारों के इस दावों का भी खंडन होता है की
सनातन के पुरे इतिहास में जो त्रासदी सबसे बड़ी हुई वो थी नालंदा विश्वविद्यालय का नष्ट किया जाना। हमें हमारे शानदार इतिहास से वंचित कर दिया गया। सनातन के इतिहास को जो नुकसान इससे हुआ वो नागाशाकी और हिरोशिमा त्रासदियों के समतुल्य है। एक झटके से एक पीढ़ी को अपने पौराणिकता से वंचित कर दिया गया। इसी त्रासदी
गर्मियों में जलता ये अलाव कैसाख्वाहिसों का बेढब फैलाव कैसामत कहो की अभावों में जियाअगर जिया तो फिर अभाव कैसाचूमते हो जिस्म जोंक की तरहप्रेम का ये कुंठित भाव कैसाकर रहा मौन संवाद वो मगरपड़ रहा मुझपे अशांत प्रभाव कैसामहक रहा है टूट कर भी वोफूल का ये समर्पित स्वभाव कैसासमीर कुमार शुक्ल
सींचा है किसी ने किसी ने रौदां किया हैजिससे जो बन पड़ा उसने वो किया हैहक़ीक़त को हमने पलकों पे सजायाइसने हर काम मेरा आसान किया हैहमने इंसान को इंसान है समझा इस बात ने सबको हैरान किया हैकभी ठहर कर दिल मे देखो तो जरा हमने वहाँ अच्छा इंतजाम किया है समीर कुमार शुक्ल
सच के बाज़ार में महगाईं बहुत हैंझूठ के शॉपिंग मॉल में आशनाई बहुत हैंपहले चीनी थोड़ी थी बच्चे ज्यादा थेआज घर में बच्चे नहीं हैं मिठाई बहुत हैंजिनमे रखते थे घड़ियां और चश्मे सम्हाल केकमबख्त आज उन डिब्बों में दवाई बहुत हैंसमीर कुमार शुक्ल