तुम शाश्वत में प्रतिपल में
तुम आज में कल में
तुम पवन में जल में
तुम भस्म में अनल में
तुम रहस्य में हल में
तुम मौन में कोलाहल में
तुम कर्कश में कोमल में
तुम मलिन में निर्मल में
तब क्या तुमको पाना
तब क्या तुमको खोना
समीर कुमार शुक्ल
22 अगस्त 2016
तुम शाश्वत में प्रतिपल में
तुम आज में कल में
तुम पवन में जल में
तुम भस्म में अनल में
तुम रहस्य में हल में
तुम मौन में कोलाहल में
तुम कर्कश में कोमल में
तुम मलिन में निर्मल में
तब क्या तुमको पाना
तब क्या तुमको खोना
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेD