वक़्त कटता ही रहता है कैसी आरी है
भागते बादल पे मौसम की सवारी है
बदलता ही नहीं तमाम चाहतो के बाद
उस शक्स की मुझसे अजीब यारी है
भोर के वक़्त मद्धम सा उजाला
माँ ने बेटे की आरती उतारी है
समीर कुमार शुक्ल
2 जनवरी 2016
वक़्त कटता ही रहता है कैसी आरी है
भागते बादल पे मौसम की सवारी है
बदलता ही नहीं तमाम चाहतो के बाद
उस शक्स की मुझसे अजीब यारी है
भोर के वक़्त मद्धम सा उजाला
माँ ने बेटे की आरती उतारी है
समीर कुमार शुक्ल
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अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आते,अपनी लिखी यू ही पढ़ देता हूँ
अंदाज़ मे मुझे गज़ल कहने नहीं आतेD