गीतिका
आधार छंद-बिहारी
वाचिक मापनी-
221__1221__1221__122
समांत-आओ___पदांत-अपदांत
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दिलदार दबे आँख गजब तीर चलाओ।
अरमान बने खार चुभे यूँ न सताओ।
~~~~~(1)
बरसात हरे बाग खिले फूल कली भी,
अनुराग जगे प्यास बढ़े प्रीत निभाओ।
~~~~~(2)
मन मोह विहग बृन्द उड़े पाँख पसारे।
आकाश सजे मेघ आज नैन लड़ाओ।
~~~~~(3)
ये खेल नही प्यार रखो मान हुआ जब,
नादान मुखर प्रीत करो रीत बनाओ।
~~~~~(4)
बेकार हठो और पले शौक हटाकर,
सौ बार गुनो सोच समझ पाँव बढ़ाओ।
~~~~~(5)
मदहोश हवा होश लिए भाग रही है,
सम्हाल मुझे आज गले यार लगाओ।
~~~~~(6)
गा गा न थकें लोग रहे याद सदा ही,
श्रृंगार बना स्नेह प्रणय छंद सजाओ।
~~~~~(7)
सुनील प्रसाद शाहाबादी