दोस्तों ,मेरी यह कविता समाज के उन वहशी गुनहगारों के लिए है, जो वहशियत की सीमाएँ लाँघने के बाद भी स्वयं के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं। गुहार क्यों ?साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं ,फिर ये दया की गुहार क्यों ?हाँ , यह तेरा ज़हर ही है ,जो तुझे असभ्य बनाता है ,जो तेरे मस्तिष्क के साथ , हलक में आकर वहशियत फै