दोस्तों ,मेरी यह कविता समाज के उन वहशी गुनहगारों के लिए है, जो वहशियत की सीमाएँ लाँघने के बाद भी स्वयं के लिए माफ़ी की उम्मीद रखते हैं।
गुहार क्यों ?
साँप तुम सभ्य तो हुए नहीं ,
फिर ये दया की गुहार क्यों ?
हाँ , यह तेरा ज़हर ही है ,
जो तुझे असभ्य बनाता है ,
जो तेरे मस्तिष्क के साथ ,
हलक में आकर वहशियत फैलाता है।
चीत्कार तो उन मासूमों ने भी की थी ,
पर तूने ख़ामोश कर , उनका अस्तित्व ही मिटा दिया ,
आज अपना जहर कम होते देखकर ,
अमृत के लिए तेरी यह पुकार क्यों ?
उन मासूमों की आँखों में डर देखकर ,तू बहुत मुस्कुराया था,
आज अपने सामने मौत देख कर , तेरी याचना की गुहार क्यों ?
साँप , तुम तब तक सभ्य नहीं हो सकते ,
जब तक अपने ज़हर का पान स्वयं नहीं करोगे।
अब चीखें तुम्हारी होंगी,
और
ज्वाला हमारी होगी।
तुझे तेरा दंड भोगना होगा ,
ताकि, समाज की आड़ में, फिर कोई वहशी न पनप सके।
अब बस ,
कानून के साथ खिलवाड़ कर ,
अब कोई गुहार नहीं।।
मेरी कलम से
परमजीत कौर
27 .12 .2019