हिंदी हैं हम
========(कहानी)
14 सितंबर का दिन। "हिंदी को कैसे आगे बढ़ायें" इस विषय पर विद्यालय में डिबेट का आयोजन था.!
विकास, रेनू, शालिनी, रितु, कमलिन, सार्थक, कोमल और वंशिका, इन सभी ने इस विषय पर अपने अपने विचार रखे, जिन का सारांश यही था, कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। क्योंकि यह हिंदुस्तान है..! हिंदी है हम वतन है, हिंदुस्तान हमारा..! इसलिए अंग्रेजी का वर्चस्व इस देश से पूरी तरह से समाप्त होना चाहिए..!
और इन सभी वक्ताओं ने बहुत ही सुंदर तरीके से अपनी बात कही।
और अंत में इस विषय पर बोलने के लिए जब वंतिका मंच पर आई, तो सभी ने जोरदार तालियों से उसका स्वागत किया ।
क्योंकि वंतिका कॉलेज की सबसे होनहार छात्रा थी, और अपने कॉलेज में होने वाली प्रतियोगिताओं के साथ साथ राज्य स्तर की भी कई प्रतियोगिताओं में उसने पुरस्कार जीते थे।
अपने भाषण की शुरुआत करते हुए उसने कहा~
मेरे प्यारे भाइयों, बहनों और गुरुजनों,
हिंदी को कैसे आगे बढ़ाए, आज इस विषय पर मैं अपने कुछ महत्वपूर्ण विचार आपके समक्ष रखना चाहूंगी। और इस महत्वपूर्ण विषय के संदर्भ में हमारा सबसे पहला सवाल अपने माता पिता से है, गुरुजनों से है, शिक्षाविदों से है! और वो सवाल ये है, कि जब अंग्रेजी हमारी मातृभाषा नहीं है, तो अपने देश के अधिकांश विद्यालयों में हिंदी को उपेक्षित कर अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने का प्रचलन क्यों है? क्यों अंग्रेजी हम पर जबरदस्ती थोपी जाती है..? क्यों अंग्रेजी को इतनी महत्ता प्रदान की जाती है..?
हमने देखा है, कि ऐसे बहुत से घरों में अंग्रेजी अखबार आता है, जहां किसी को भी अंग्रेजी ढंग से पढ़ना नहीं आता..! अंग्रेजी में बातें करना नहीं आता..!
बाजार में निकलो, तो आधे से ज्यादा साइन बोर्ड अंग्रेजी में मिलेगा..! और उन दुकानों, प्रतिष्ठानों में काम करने वालों से अगर अंग्रेजी में बात करो, तो वो एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं..! क्योंकि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती..!
लोग सिनेमा हॉल में अंग्रेजी फिल्में देखते हैं। उनमें भी आधे से अधिक लोगों को अंग्रेजी समझ में नहीं आती...! और पूरी फिल्म में सिर्फ चलती फिरती फोटो देख कर..बहुत अच्छी फिल्म थी..ऐसा बोलते हुए हाल से बाहर निकल आते हैं..!
और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का तो और भी बुरा हाल है..! कक्षा 3 और 4 का बच्चा भी मोटी मोटी अंग्रेजी की किताब लेकर जाता है..! सोशल स्टडी .. साइंस.. मैथ्स...इंग्लिश..! वो कुछ भी ठीक से पढ़ नहीं पाता, फिर भी अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ता है..!
मैं सच कह रही हूं , कि भाषा के मामले में आज हमारा पूरा देश दिशाहीन हो गया है ..! और सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है, कि कितने लोगों को तो यह भी नहीं मालूम है कि अंग्रेजी माध्यम का मतलब क्या होता है..!
अंग्रेजी माध्यम का मतलब ये होता है, कि अंग्रेजी आपकी स्पीकिंग लैंग्वेज है और इसलिए पढ़ाई का कोई भी विषय आपको हिंदी भाषा में समझ में नहीं आता ..! क्योंकि घर में सब अंग्रेजी में बातें करते हैं..हिंदी किसी को नहीं आती..इसलिए अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई करना मजबूरी है..!
मगर अपने यहां सब उल्टा पुल्टा है..! बच्चे को अंग्रेजी में यह भी नहीं मालूम कि मैं जाता हूं की अंग्रेजी आई एम गोइंग नहीं होती.! बल्कि आई गो होती है ..! फिर भी वो अंग्रेजी माध्यम में पढ़ता है..!
अब इसे क्या कहेंगे आप..? जब बच्चे की मातृभाषा हिंदी है, घर परिवार में सब हिंदी में बातें करते हैं.. हंसी मजाक करते हैं . गंभीर विषय पर भी चर्चा करते हैं .. तो जब आप हिंदी में उसे कोई बात बताओगे, तभी तो उसको समझ में आएगी..!
हमारे देश में महापुरुषों की कोई कहानी हो.. या हमारे पूर्वजों का कोई इतिहास हो, आप उसे हिंदी में बताओगे, तो उसे तुरंत वो सीख लेगा। लेकिन अगर इन बातों को अंग्रेजी भाषा में उसे समझाने की कोशिश करोगे, तो उसको कैसे समझ में आएगी..?
लेकिन सच से वाकिफ होने के बावजूद आपके अंदर इस बात का जुनून है, कि भले ही आपका बच्चा इन सारी बातों को और किस्से कहानियों को हिंदी में समझ लेता है , लेकिन उन्हीं बातों और किस्से कहानियों को उसे अंग्रेजी में भी समझना होगा ..! अब इसे इंसान की बेवकूफी ना कहा जाएगा तो और क्या कहा जाएगा.?
अगर अपने देश में कोई अंग्रेज आ जाए, और वो आपसे पूछे, कि यहां का भूल भुलैया और इमामबाड़ा कहां है..? तो आप उस को अंग्रेजी में बता दो, वो तुरंत समझ जाएगा..! लेकिन वही बात जब आप उसे हिंदी में बताओगे, तो वो नहीं समझ पाएगा..?
और अगर आप उससे ये कहे, कि पहले तुम हिंदी सीखो, इसके बाद हम तुम्हें बताएंगे, कि भूलभुलैया और इमामबाड़ा कहां है, तो क्या इस बेवकूफी का कोई अर्थ है ..?
इसी तरह अगर आपने उसे अपने देश की संस्कृति के बारे में कुछ बताना है, तो आपको उसी की भाषा में उसको समझाना होगा..!
लेकिन वो आपकी बात को समझने के लिए हिंदी भाषा सीखने में अपना कीमती समय बर्बाद नहीं करेगा..!
बल्कि वो अपनी भाषा में ही देश दुनिया के बारे में और अपने देश के विकास के बारे में सोचेगा...और कुछ नई नई खोज करने.. अविष्कार करने के बारे में सोचेगा..!
वो अपनी जिंदगी के पन्द्रह बीस कीमती साल हिंदी सीखने में बर्बाद नहीं करेगा, क्योंकि उसको मालुम है, कि दुनिया के बारे में जानने के लिए उसको सिर्फ अपनी भाषा का ज्ञान होना चाहिए। किसी दूसरी भाषा में देश दुनिया के बारे में जानकारी हासिल करने का कोई मतलब नहीं है.!
लेकिन हमारे देश में लोग इतने बेवकूफ है, कि देश दुनिया और विज्ञान को जानने समझने के लिए अंग्रेजी सीखने में ही अपने कई साल बर्बाद कर देते हैं, जबकि इन विषयों को अपनी भाषा हिंदी में वो सुगमता से सीख सकते हैं..!
और हिंदी की महत्ता तो इसी से साबित हो जाती है, कि जिस बात को आप हिंदी भाषा में एक घंटे दो घंटे में समझ लेंगे, उसी बात को अंग्रेजी भाषा में समझने के लिए आपको बहुत ज्यादा मेहनत और परिश्रम करना होगा..!
और मैं तो इस बात को पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं, कि इंग्लिश मीडियम से कोई बीए एमए पास लड़के या लड़की को भी अगर आप खाना बनाने की रेसिपी बताएं, इतिहास या भूगोल की जानकारी देना चाहें, समाज शास्त्र, शिक्षा शास्त्र, मनोविज्ञान के बारे में उनसे बात करें , तो उनसे आपको यही जवाब मिलेगा, कि इन्हें अंग्रेजी के सापेक्ष हिंदी में समझना ज्यादा आसान है ..!
हां, कुछ लोग ऐसे जरूर आपको मिलेंगे, जिनको हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी में बात ज़्यादा समझ में आएगी। लेकिन उनमें भी अधिकतर लोग अपनी बात को सही तरह से एक्सप्लेन नहीं कर पाएंगे, क्योंकि वो उन्हें समझने की बजाय रट लेते हैं। मतलब अगर उनको प्रश्न का उत्तर आता भी हो, तब भी ज्ञान के मामले में वो शून्य ही होते हैं..!
अब विज्ञान और कंप्यूटर आदि विषय का जहां तक प्रश्न है, तो मित्रों इस संदर्भ में मैं कहना चाहूंगी, कि अगर आपको हिंदी को विश्व भाषा बनाना है , और कालांतर में हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाना है, तो इसके लिए ये बहुत जरूरी है, कि अपनी शुद्ध हिंदी के चक्कर में अंग्रेजी भाषा के प्रचलित शब्दों का हिंदी में रूपांतरण न करें, बल्कि उन्हें हूबहु हिंदी में लिख ले। जैसे platform शब्द का अनुवाद करने के लिए हिंदी में किसी नए शब्द की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे हिंदी में प्लेटफार्म ही लिखा जाए..!
इसी प्रकार विज्ञान और कंप्यूटर आदि के प्रचलित शब्दों को भी उसी रूप में हिंदी में लिखा जाए, और उन शब्दों का हिंदी में अर्थ तलाशने में अपना कीमती समय नष्ट न किया जाए..!
मेरी इन बातों को सुनकर हो सकता है, कि आप कुछ ऐसा सोच रहे हो, कि इस तरह तो हिंदी खिचड़ी भाषा बन जाएगी..!
लेकिन दोस्तों, जब तक विदेशी भाषाओं के लोकप्रिय शब्दों को भी हम हूबहू हिंदी में उपयोग में नहीं लाएंगे, तब तक हिंदी समृद्ध नहीं होगी और हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित भी नहीं किया जा सकेगा। और हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने का सपना फिर कभी पूरा न हो सकेगा..!
क्योंकि इस सच को आप सभी को स्वीकार करना होगा, कि भारत में आज भी केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, गोवा, ओडिशा, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और असम आदि ऐसे कई राज्य हैं, जहां हिंदी बोलने और समझने वाले बहुत कम लोग हैं।
इसलिए विदेशी भाषाओं के साथ-साथ भारत के हर प्रदेश में बोली जाने वाली स्थानीय बोली के प्रचलित शब्दों को भी जब हम अपनी हिंदी भाषा में सम्मान के साथ स्थान देंगे, तभी हिंदी को हम समृद्धि कर सकेंगे..!
🇮🇳जय हिंद, जय हिंदी।
वंतिका के इस भाषण को सुनकर सभी ने जोरदार तालियां बजाई, और इस बात को स्वीकार किया, कि हिंदी की समृद्धि के लिए और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए, यह बहुत जरूरी है, हम देश विदेश की और अपने विभिन्न प्रदेशों की भी स्थानीय भाषा के प्रचलित शब्दों को हिंदी में शामिल करें, तभी आगे चलकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना साकार हो सकता है और हिंदी भाषा को उसका उचित सम्मान मिल सकता है।
और इस बार भी विद्यालय में डिबेट का प्रथम पुरस्कार वंतिका को ही दिया गया।
(समाप्त)
~ विजय कांत वर्मा