कविता
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रमुआ की करुण गाथा
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लॉक डाउन
फैक्टरी बन्द
घर से निकलने पर रोक
पैसा खत्म
भाड़े का मकान
मालिक ने किया बाहर
सरकारी मदद झूठीH
वो पैदल चल पड़ा
अपने गांव को
सौ कोस दूर
सरकार कहती रही
हर मजदूर को घर पहुंचाएंगे
फिर रमुआ पैदल क्यो..?
क्या सरकार को रमुआ नहीं दिखा..?
रमुआ चलता रहा
चना खाता रहा
पानी पीता रहा
फिर मदद मिली
चार रोटियाँ मिली
सरकारी आदेश बताया
रास्ता बंद कर दिया
और आधे रास्ते में ही
उसे रोक दिया गया
रमुआ अब पैसों से खाली
बन गया भिखारी
कुछ मिले तो खा ले
न मिले तो भूखा रहे
पैदल चलने पर रोक
घर जाने पर रोक
मदद को तरसता रमुआ
अश्रु के समुंदर में डूब
सोच रहा ये रमुआ
अपने गांव के बारे में
बीवी शायद भूखी होगी
बच्चे भी भूखे ही होंगे
कौन उन्हें खिलायेगा
इस माह उसने पैसा नहीं भेजा
बीवी ने फोन किया था
सरकार मदद करेगी
पांच सौ रुपये देगी
वो बैंक गई थी
उसे नहीं मिला
कारण कुछ अजीब सा था
बाबू ने कोई नियम बताया था
जो
उसे समझ में न आया
उसे मुफ्त राशन भी न मिला
वहाँ भी कोई नियम आ गया
पैसों वालों को राशन मिल गया
और उसका हाथ रिक्त रह गया
रमुआ की बीवी कराहती रही
रो-रो कर रमुआ को अपनी विपदा बताई
यहाँ
हम गरीबों की
नहीं हो रही सुनवाई..@
रमुआ से उसका दर्द बर्दाश्त न हुआ
हताश, निराश उसने फोन बंद कर दिया
तभी पटरी पर कोई ट्रेन उसे आती दिखी
और वो मर गया,
लाचार होकर
और
अपनी मजबूरी से हार कर
अचानक
उसकी बीवी को
एक गज़ब की खुशखबरी मिली
रमुआ मर गया
अब
उसे मुआवजा मिलेगा
पूरे
दो लाख
यह सुनकर
बहुत
खुश हुई वो
और उसके बच्चे भी
उसने सोचा
रमुआ चला गया
अच्छा हुआ
ज़िंदा कुछ कर न सका
मर कर भला कर गया
परिवार का
बच्चों का
बेटी की शादी का..!
लेकिन समस्या हल न हुई
दो लाख मिलेगा
कब मिलेगा
कैसे मिलेगा
कुछ पता ना था
घर में खाने को ना था
पत्नी भूखी थी
बच्चे भूखे थे
कोई खबर लेने न आया
प्रधान ने कहा-
यहां जाना है
वहां जाना है
इस से मिलना है
उससे मिलना है
इस बाबू से मिलना है
उस बाबू से मिलना है
इस अधिकारी से मिलना है
उस अधिकारी से मिलना है
सरकारी पैसा है यह
इतनी आसानी से नहीं मिलता
पूरे
दो लाख का मामला है
रमुआ की बीवी समझ न पाई
क्या करना है उसे
कैसे करना है उसे
खाने की रोटी न थी
बच्चों के पीने को दूध न था
प्रधान घंटों बाहर खड़ा रखता
घूर घूर कर उसको निहारा करता
कोरे कागज पर अंगूठा लगवाता
दया आती, तो दो रोटी फेंक देता
फिर
उसने सोचा
शहर जाना चाहिये उसे
बड़े बाबू से मिलना चाहिये
बड़े अफसर से मिलना चाहिये
वो स्टेशन गई
ट्रेन आई
तभी उसका दिमाग घूमा
टिकट कहां है
पैसे कहाँ हैं
और शहर पहुंचने पर
कहां जाएगी
किस ऑफिस जाएगी
कहां रहेगी
क्या खाएगी
और बाबू ने न सुना
फिर क्या होगा
अफसर ने दुत्कार दिया
फिर क्या होगा
किसी ने उसकी इज्जत लूटी
फिर क्या होगा
और
तब उसने फैसला किया
एक कठोर फैसला
वो रमुआ का साथ देगी
उसे धोखा नहीं देगी
वो भी ट्रेन के नीचे आ गई
बच्चे भी ट्रेन के नीचे आ गए
अब मुआवजा मिलेगा
शायद और भी ज्यादा
पन्द्रह या
बीस लाख
किंतु कब मिलेगा
उसे नहीं मालुम
कैसे मिलेगा
उसे नहीं मालुम
और किसे मिलेगा
यह भी नहीं मालुम
अब भगवान से ही पूछेगी वो
कि किसके हिस्से का पैसा
किसको देता है वो
कब देता है वो वो
और क्यों देता है वो .?
-विजय कांत वर्मा