हमेशा से सोचता था और कहीं पढ़ा भी था कि हिंदी लिखा जाना चाहिए, yun नहीं ऐसे| पर फिर ये सोचता था कि "ऐसे" लिखने में बहुत परेशानी है, झंझट है इसलिए yun लिख दो| कभी गौर से बैठ कर इस मसले पर सोचा नहीं| आज जब शब्दनगरी कि इस पहल को देखता हूँ तो पाता हूँ कि भले ही कुछ बुद्धिजीवी लोग हम IIT से पढ़े लोगों को चाहे कितना भी भला बुरा बोल लें, कुछ चीज़ें, जैसे कि शब्दनगरी, एक IIT का छात्र ही दे सकता है| निर्माता को सिर्फ धन्यवाद देकर अपना काम नहीं खत्म करूँगा बल्कि साथ मिलकर, जो भी सहयोग हो सके, वो करने कि कोशिश करूँगा|