हिंदुस्तान :एक आह्वान
सोचिये ! वो भारत कितना प्यारा होता जब मस्तक पर जगतगुरु का ताज होता |
केवल खुद पर ही गर्व नहीं करते वरन दुनिया के दिल पर हमारा राज होता ||
हम न करते 'परदेसियों ' की नकल, गर अपने हुनर, संस्कृति पे नाज़ होता |
अपनत्व को भरसक लगा पाते गले, तो समृद्ध कितना कितना स्वराज होता ||१||
यूँ तो शहादत व जंग -ए-आज़ादी का एहसास है हमें |
फिर भी , हम हैं बेखबर और आज माँ भारती बुलाती पास है हमें ||
आह्वान ये उसका कि रखना है ममता की लाज हमें |
हम हैं सपूत दर्शा दें ताकि खुद पर हो सके नाज़ हमें ||२||
विश्व में सर्वाधिक युवाओं की बुलंद यंगिस्तान हैं हम|
एकाध का नहीं , पूरी दुनिया का आकर्षित कर चुके ध्यान हैं हम||
कब तक 'पराये ' याद दिलाएंगे हमारी ताक़त का अंदाजा |
अरे! सोचें , क्या एकदम से बन चुके "हनुमान " हैं हम||३||
हमें अकूत गर्व है अपनी विरासत पे ,पर खुद की संभावनाओं से अनजान हैं हम|
हमें संभलना होगा अन्यथा पराये चिढ़ाते रहेंगे की कितने नादान हैं हम||
बहुत हो गयी जगहंसाई "आओ दर्शा दे यारों " कि संवरते भारत की पहचान हैं हम |
कतई नहीं हैं "नादान परिन्दे " क्यूंकि उड़ते खुले आसमान हैं हम ||४||
न भूलें आज़ादी के दीवानों की दीवानगी , मान-रक्त हर जवान का |
तभी यथार्थ हो पाएगा मतलब , "वन्दे मातरम" के गान का||
जब हम फिर से न भूलें सन्देश ,"माँ भारती " के आह्वान का |
इसी तरह से दिल में जगे अलख व उमड़े लहर "भारत-स्वाभिमान " का ||५||
-- कुलदीप "आज़मगढ़ी"