मोहल्ले में होलिका दहन का आयोजन हो रहा था
मन में विचारो का सैलाब उमड़ रहा था
कल करेंगे मज़े, एक दम दिल खोल
रंगो के साथ होगा, मस्ती का माहौल
नाचेंगे, नचाएंगे, रंगो में नहाएंगे
जात-पात का भेद भूल, मिलकर धूम मचाएंगे
एक रंग में रंगे चेहरों की क्या होगी पहचान
न होगा कोई ईसाई, न सिख, न हिन्दू और न मुस्लमान
सब होंगे बस एक रंग, एक रस और एक समान
जमकर खेलेंगे होली, खाएंगे सेव-गुजिया और पकवान
इन्ही विचारो के साथ मैंने भी अबीर-गुलाल उड़ाया
समाप्त हुआ होलिका दहन और मैं अपने घर आया
उस रात मुझे होलिका का स्वपन आया
उसे मुझसे एक प्रश्न करते पाया
मुझे जलाकर तुम क्या हासिल कर जाओगे ?
क्या ऐसा करके विष्णु भक्त कहलाओगे ?
जब तक अपने अंदर के तम को नहीं जलाओगे
क्या तब तक भक्त प्रह्लाद बन पाओगे ?
उसके प्रश्नो से मन विचलित हुआ
सोचा, बात तो उसने सही ही बोली है
होलिका दहन, रंगो का मिलन, मिष्ठानो का सेवन
क्या यही असली होली है ?
जब हम अपने चेहरे पर लगे रंगो के साथ अपने अंदर के मैल को मिटायेंगे
तभी हम इस पर्व के असल उद्देश्य को सार्थक कर पाएंगे
आप सभी को होली की शुभकामनाये