शुभ लाभ ( कहानी अंतिम क़िश्त )
अब तक-- अक्षय तृतीया के दिन विभूती और रेहना ने कलेक्टर स्थित मेरिज रजिस्ट्रेशन आफिस में पंजीयन करा लिया और अपने विवाह को कानूनी जामा पहना लिया।)
उधर कलेक्टर आफिस से जब यह बात लीक हुई कि आज किसी मुसलमान लड़की ने किसी हिंदू लड़के से शादी की है । तो कई मुस्लिम तन्जीमें इस निकाह के विरोध में सड़क पर आ गई और फिर वे विभूती के निवास व घर का पता लगा कर उसके घर व आफिस के सामने खड़े होकर प्रदर्शन करने लगे और विभूति और प्रशासन के विरोध में नारे लगाने लगे । इस बीच कुछ लोग अल्लाह हो अकबर का नारा लगाने लगे और फिर अचानक उनका आफिस धू धू कर के जलने लगा । हुआ यूं कि भीड़ में किसी ने आफिस के अंदर आग लगाकर पेट्रोल से भरे बाटल फेंक दिए । साथ ही पास स्थित मंदिर को भी भीड़ ने नुकसान पहुंचा दिया । जब ये जानकारी हिंदू संगठनों को मिली तो वे दंगाईयों के विरोध में खड़े हो गये देखते ही देखते पूना में दंगा हो गया । दंगा तेजी से एक इलाके से दूसरे इलाके में फैलते गया । उधर रेहाना और विभूती को पता चला कि मुसलमानों का एक गुट उनके घर की ओर आ रहा है तो वे तुरंत कुछ जरूरी सामान के साथ डेबिट व क्रेडिट कार्ड रखकर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की ओर रवाना हो गये । पहली फ्लाइट से अमेरिका रवाना हो गये । वे दोनों अमेरिका के ग्रीन कार्ड होल्डर्स तो थे ही । अमेरिका पहुंचकर उन्होंने अपने सारे पुराने साथियों औ पुराने संपर्कों के सहयोग से अपनी कंपनी पावर आफ फिफ्टी खड़ी कर ली । सारे साजों सामान बैंक से लोन लेकर इन्स्टाल करवा लिया गया । अब तक अमेरिका में मंदी का दौर खत्म हो चुका था । महीने भर के अंदर उन्हें वहां की बड़ी बड़ी कंपनियों से काम मिलने लगे । साल भर के अंदर पावर आफ फिफ्टी अमेरिका की जानी मानी कंपनी के रूप में स्थापित हो गई उनके व्यापार का टर्न ओवर करोड़ों में पहुंच गया । आज विभूति और रेहाना की शादी हुए दस साल हो गये हैं । उनक एक पुत्र है अमर । जो पांच साल का हो गया है और वह स्कूल भी जाने लगा है । इस परिवार की जिंदगी अमेरिका में बड़े ही अच्छी तरह से गुजर रही है । उनकी कंपनी के क्लाइंट ज्यादातर भारत और पाकिस्तान की कंपनियां बन चुकी थीं। । भारत व पाकिस्तान की कम्पनियों के मुखिया जिनसे विभूती की कंपनी का बेहतर व्यावसायिक रिश्ता बन चुका था। वे अक्सर ही विभूती और रेहाना को भारत और पाकिस्तान कम से कम घूमने आने को कहते हैं पर उन दोनों ने कसमें खायी हैं कि अब इस जिंदगी में तो वे कभी किसी ऐसे मुल्क एक दिन के लिए भी नहीं आयेंगे जहां धार्मिक उन्माद का जरा भी अंश लोगों के दिलों में बहता हो । अब अमेरिका ही उनका वतन है । वहीं वे अपने साथियों के साथ होली , दिवाली , ईद व अन्य त्योहार बड़े धूमधाम से मनाते हैं । विभूती ने यह भी कसम खायी है कि अब किसी भी काम के लिए न ही वो मुहूर्त देखेगा , न ही वो किसी पंडित से सलाह लगा पूजा पाठ की जो भी परंपरा निभानी होगी वह रेहाना दोनों मिलकर निभायेंगे भले ही इस प्रक्रिया में कोई कमी क्यूं न रह जाये । पंडितों का सहारा ले किसी भी हालात में नहीं लेंगे । विभूती और रेहाना का कभी अपने देश भारत जाने का मन तो होता है पर वे जाते नहीं । अपने ही देश जाने में उन्हें बेहद डर लगता है । वे अक्सर सोचते हैं कि उनके ही देश में जातीय गठबंधन और धार्मिक कठमुल्लेपन की गांठ इतनी मजबूत क्यूं है ? क्यूं धार्मिक मामले में लोग एक दूसरे की जान लेने में उतारू हो जाते हैं ? वहीं अमेरिका जो मूलतः हमारा देश नहीं है यहां ऐसे कोई पेचीदगी नहीं है । यहां तो जात पात कोई पूछता ही नहीं । वैसे भारत देश अनेकता में एकता के नाम से प्रसिद्ध है फिर ये एकता धर्म के नाम से अनेकता का रूप क्यूं धारण कर लेती है ? क्यूं हमारे देश में धर्म के कद को इंसानियत के कद से बड़ा कर दिया गया है । धरम की गलत व्याख्या करने वालों को उपर वाला सजा क्यूं नहीं देता ? क्या उपर वाले को भी धर्म का महत्व कम होने से खुशी का अहसास होता है । ऐसे में किसी धर्म का वजूद दुनिया में कब तक रहेगा । ऐसे ही चलते रहा तो एक दिन जरूर आयेगा कि ऐसे धर्म खुद पंचतत्व में विलीन हो जायेंगे । उधर विभूती के पिता हरिनारायण मिश्रा जी अब पंडिताई नहीं करते । वे अपना अधिकांश समय भगवान की पूजा पाठ व आरती में बिताते हैं । कुंडली देखने का काम
वे त्याग चुके हैं। ज्योतिषी के काम से न जाने वे क्यूँ किनारा कर चुके हैं ? ये तो वही जानते हैं कि क्या उन्हें अपने ज्योतिष ज्ञान पर भरोसा नहीँ रहा या फिर ज्योतिष शास्त्र से ही उनका भरोसा टूट गया है? उनकी एक ही दिली इच्छा है की जीते जी कम से कम एक बार अपने पोते यानी विभूती के बेटे का दर्शन कर लें। इसके खातिर वे अमेरिका भी जाना चाहते हैं पर अब उनका बूढ़ा शरीर इतनी दूरी की यात्रा के लिये हामी नहीं भर पा रहा है।
( समाप्त )