जगह का नाम: पूना शहर।
बहोत तेज चलती हवा आजुबाजू का सारा कचरा उडा रही है।
बाकी सब तरफ रात का सन्नाटा छाया हुवा है। लकड़ी पुल के निचे मुला - मुठा नदी मे पाव छोड़कर सामने वाले लोहे के खंबे पर टंगा जिग्मीगता पीला लाइट वो एकटक देखे जा रही है, उसके बाजू मे सात - आठ दारू की बोतल पड़ी है.., दो से तीन सिग्रेट् के पाकिट भी।
वो पिली रोशनी किसी मरते हुए पतंगे की तरहा फड़फड़ा रही है।
ब्रिज के उपर कभी ना सोने वाली गाड़िया, स्कूटर, सायकल, pmc बसे.., चली जा रही है।
उसने अपनी दो पहिया गाडी बुक स्टाल के पास छोड़ी है। दुकान वाले रमेश अंकल उसे अच्छी तरह से जानते है, वो जब भी कभी उदास, मायूस होती है यही आकर पानी मे अपने पाव छोड़ अल्कोहोल् मे समा जाती है।
दूर... अवकाश मे स्थित पूर्ण चंद्रमा उसे देख रहा था।
उसने देखा की लड़की की सिग्रेट् खत्म हो चुकी है बाजू में टैम्पास कर रहे कुछ लड़को को उसने आवाज लगाई, उन्मेसें एक दुबला - पतला लडका आया उसके हाथ मे उसने दो - हजार का गुलाबी नोट टीकाया।
"ये..लो इसमें...से ..एक हजार ...की सिग्रेट् लॉ.. व बा.. की.. ब.. च्चे.. की.. तुम.. कर.. लो.. पार्.. टी"..!
" मैडम... जी आपने बहोत पी है..हमारे पास दो पाकिट है सिग्रेट् के.. चाहें तो"...
नहीं शुक्रिया..! दारू है..? उसने अपना
गुलाबी नोट वापस लेते हुए कहाँ।
"अबे ये शेखु इधर आ"...! उस दुबले को
उनके ग्रुप के एक दाड़ी वाले लड़के ने आवाज दी
वो भागता सा उसके पास गया।
लड़की पहचान की है शेखु..! और अच्छे घर की भी"
उसकी दोस्त को फोन करना होंगा..!
ऐैसा बोलकर उसने फोन कान से लगाया..
हैल्लो.. ss
मैं अजन्ता बोल रहा हु..!
"हा.. बोल आजु कैसे याद किया, तु पूना मे ही...है ना"...!
"हा मैं यही हु दिया कल् ही लौटा हु.. पर सुन
तेरी वो दोस्त नहीं क्या जॉय की पार्टी मे तूने
मिलवाया था ना वो... वही यहाँ लकड़ी पुल के निचे
बैठ कर पुरा फुल्ल टू हो गई है"...!
कोण.. अंशु..! लेकिन उसे तो यहाँ नहीं होना
चाहिए था आज तो उसकी marriage anniversary
है ना..!
" देख ये सब मुझे नहीं पता, मैं उसपर ध्यान रखता हु तु यहाँ आकर उसे ले जा"..।
और तभी..! अंशु के पास से कुछ भागता हुवा अंधेरे मे गया
अंजन्ता बोलते - बोलते एकदम साइलेन्ट ही हो गया
उसके हाथ से फोन गिरने ही वाला था। क्योकि जो कुछ अभी उसने देखा था वो बहोत ही विचित्र था।
दूर अंधेरे मे जहाँ रोशनी का एक भी कण मौजूद नहीं था वही उस पुल के बड़े - बड़े पिल्लर से थोड़ा आगे जहाँ थोड़ी घास बड़ी हुई है ठीक वही वो दो लाल जर्द सी आँखे चमक रही थी।
वो जो कुछ भी था..., अपने दातो पे दात घिस कर मुं से किसी जंगली जानवर जैसी गुराहट'' निकाल रहा था।
वो सभी लड़के चौक गए..!
अजन्ता होश मे आया। ''अब एक - एक करके सभी धीरे धीरे सीडीओसे उपर जाओं ".. जल्दी..!
वो एक एक रफू - चक्कर होने लगे।
सब के जाते ही, अजन्ता आगे बड़ा उसके हाथ में जलती हुई सिग्रेट् थी उसे पता था की इतनी आग काफी नहीं है वो जो भी है उसे दूर रखने के लिए..., फिर भी वो आगे बढ़ा।
कुछ भी करके उस अंशु नाम के लड़की को उसे बचाना था।
उसी वक्त अंशु का मोबाईल बजा.. Ssss
उसने उठाया और..., ब्ल्डि.. डी.. ब्लादि.. ब्ल्दी.. दी.. ब्लडी..!!!
उसनें गुस्से से फोन जमीन पर पटक दिया..., लडखड़ाते हुए जोर से उठी..
खाड..Sss खाड.., Sss सीढ़िया चढ़ कर भागने लगी।
वो अंधेरे मे खड़ा जानवर जैसी बनावट का उस गोल पूर्ण चांद को देखकर जोर से चिल्लाया..., आऊ..Sss.. आऊ.. Sss..!!!
वो दहाड़ सुनते ही अजंता के हाथ से सिग्रेट् निचे गिर गई और वो भी कुछ ना सूझ कर अंशु के पीछे भागने लगा, उसने जरा भी पीछे मुड़कर नहीं देखा.., देखता तो उसे पता चलता की अपने धार - धार और लंबे नाखूनों से वो चीज रोशनी को चिर.. रही थी..!
अंशु झट से गाडी पर सवार हो गई, उसने लेफ्ट हैंड के क्लच को दबाया, फिर सेल्फ start किया .. क्लच दबा कर पहले गैर मे डाल दीया.. रेस देकर् धीरे - धीरे क्लच छोड़ती गई जरा भी गड़बड़ नहीं की।
अजंता कमाल से देख रहा था, लड़की एक तो पी है, उपर से गुस्से मे है फिर भी एकदम आसानी से बाइक चालू कर रही है।
अरे जल्दी करो..!! अजंता जोर से चिल्लाया।
"तुमसे मतलब"..! अंशु बोली
"वो देखो सीढियोपर,,,, उसने सीढ़ी की तरफ अपनी उम्लि की"।
"क्या है वहाँ पे कुछ भी तो नहीं"..! ऐैसा बोलकर उसने बाइक की रेस बढ़ाई और वो चली गई।
अजंता देखता ही रहा वहाँ कोई भी तो नहीं था..!
तेज हवा से बाते करती बाइक पर सवार वो चली जा रही थी थोड़ी - थोड़ी देर मै वो अपनी रेस बढ़ा रही थी।
की तभी उसने वो देखा...!
रोशनी को खाकर अंधेरे मे बदलती हुई एक परछाई..! ! !
उसके अतीत के काले बादलों के भीतर से उस अनाम परछाई ने फिर एक बार दस्तक दी थी..., जिसे वो अपने जहन से निकाल चुकी थी।
उसे देखते ही वो ब्रेक् दबाना भूल गई.., गाड़ी एक ट्राफिक खंबे से जाकर टकराई...!
जख्मी हालत में वो एक ही बात बड़बड़ा रही थी।
वो वापस आ गया..Sss
वो वापस आ गया.. Sss
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2.
अंशु बेड पर पड़ी थी वो कोई बहोत बड़ा हॉस्पिटल् नहीं था। जहाँ उसे अजन्ता लेकर आया था।
बेड के पास वाले स्टूल पे दिया बैठी थी, उसके होश मे आने का इंतजार कर रही थी ; उसने अंशु के पति वरूण को फोन कर दीया था।
वरूण छाबड़ा एक बहोत बड़ा बिझनेस टाइकून था। उसके कहीं सारे बिझनेस थे और नए स्टार - अप् को वो मदत भी करता था।
दिया अंशु को बहोत सालों से जानती थी, बचपन से वो दोनों साथ ही थी।
हॉस्पिटल के बाहर एक लैबोर्गिनी रुकी उसके अंदर से हवा से भी तेज चलता हुवा वरूण हॉस्पिटल् के उस रूम मे गया जहाँ बेड पर अंशु पड़ी थी।
"डॉक्टर क्या हुवा है इसे"...?
बेहोश है..! डॉक्टर ने जवाब दीया..!
" वरूण वो एक एक्सीडेंट था, लेकिन तुमने उसे इतनी रात गए बाहर निकलने ही क्यू दीया"
दिया.., वो मेरे साथ झगडा कर के बाहर आई थी...
"क्या हो गया है तुम्हारे रिश्ते को, लव मैरेज है ना तुम दोनों की"..?
" पता नहीं उसे क्या हो जाता है अचानक ही, अच्छी खासी बात को वो झगड़े तक लेकर जाती है ; मैं सबकुछ ठिक करना चाहता हु पर कुछ भी समज में नहीं आ., रहा है क्या करू..?
" ये ब्रो तुम उसे कहीं घुमाने क्यू नहीं लेकर जाते"..! इतनी देर से बाजू मे चुप खडा अजंता बिच में ही बोला...
तुम कौन हो..? वरूण ने उसे पूछा
"ये मेरा दोस्त है, यही अंशु को हॉस्पिटल तक लेकर आया था".., दिया ने वरूण को बताया
वो...! थैंक्स यार, और तुम्हारा आईडिया भी अच्छा है ग्रेट...
डॉक्टर..! मरीज को होश आ रहा है..! एक नर्स बोली
अंशु ने धीरे - धीरे आँखे खोली, तबतक राउंड मे भटकती डॉक्टर आ चुकी थी...
अंशु ने आँखें मिचमीचाई, इधर - उधर देखा लेकिन उसको आँखों के सामने काला पडदा ही नजर आ..रहा था., उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था..!
मुझे कुछ भी नहीं दिख रहा है, मैं इस वक़्त कहाँ हु..?
अंशु घबराओ मत मैं तुम्हारे पास हु और तुम हॉस्पिटल मे हो..!!
"व.. वरूण कुछ भी तो नहीं दिखाई दे रहा है", उसकी शक्ल रोती बन गई थी।
" डॉक्टर ये सब..? वरूण ने पूछा
देखिये आप डरे नहीं, ये कायमस्वरूपी नहीं है सिर पे चोट लगने के कारण ये हुवा है; आपको शुक्र मनाना चाहिए की इतनी दारू इसके शरीर मे थी, थोड़ी और जोर से अगर चोट लग् जाती तो इसकी जान भी जा सकती थी...
" ये कबतक ठिक होंगीं डॉक्टर"...?
"कह नहीं सकते, कुछ दिन भी लग सकते है या कुछ महिने भी.. अगर रेटिना पर कुछ चोट ना आई हो तो..! कह नहीं सकते जाच के बाद ही पता चलेंगा"।
वो सब जब ये बाते कर रहे थे, तो उन्मेसें किसी का ध्यान भी बाजू वाली खिड़की पर नहीं था अगर वहाँ वो देखते तो पता चलता की एक लंबे हाथों वाला साया कितनी देर से अपनी लाल आँखों से उन्हें घूर रहा था।
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