एक कविता जो चलती है। खाती है ठोकर भी गिरती है.. फिर उठती है। एक नई नजर लेकर अपना सबकुछ खोकर उस खोने मे सबकुछ पा कर। वो चलती रहती है.. उस आदिम अनंत 'राह' पर। पर वो कभी रुकती नहीं.. एक चलती हुई कविता, चलती रहती है...
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1. पथएक विशाल सा पहाड़ है खड़ा। अनेक पथ को खा गयाये दानव बड़ा.. कभी किसी पुराण काल मे